कहीं आपका बच्चा कलर ब्लाइंड तो नहीं? इन संकेतों के जरिए लगाएं पता
क्या है खबर?
आम तौर पर लोगों को आस-पास के रंग अच्छी तरह नजर आते हैं। हालांकि, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो रंगों के बीच फर्क नहीं कर पाते।
इसका कारण होती है एक स्वास्थ्य संबंधी परेशानी, जिसे कलर ब्लाइंडनेस या वर्णांधता कहते है। इससे पीड़ित लोगों को कुछ रंग बिलकुल नहीं दिखते और कुछ एक समान लगते हैं।
आप इन 4 संकेतों पर ध्यान दे कर पता लगा सकते हैं कि आपका बच्चा कलर ब्लाइंड है या नहीं।
#1
रंगों को पहचानने में कठिनाई होना
रंगों को पहचानने या उनमें अंतर करने में कठिनाई होना इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में से एक है। इससे पीड़ित बच्चे लाल और नारंगी या नीले और हरे रंगों के बीच फर्क नहीं कर पाते।
यह संकेत आमतौर पर तब दिखता है जब वे स्कूल में रंगों के बारे में पढ़ रहे होते हैं। अगर, आपका बच्चा बार-बार टोकने या याद दिलाने के बाद भी अक्सर रंगों का गलत नाम ले तो समझ जाएं कि वह कलर ब्लाइंड है।
#2
कलरिंग करते हुए गलत रंग भरना
जिन बच्चों को यह बीमारी होती है, वे कलरिंग करते समय चित्रों में गलत रंग भर देते हैं। वे आम चीजों के रंग भी पहचान नहीं पाते और रंगों की अदला-बदली कर देते हैं।
उदाहरण के लिए, पेड़ को हरे ही जगह नीला रंग देना या सूरज को पीले की जगह हरा रंग देना।
वैसे तो बच्चों में यह आदत आम होती है, लेकिन अगर बार-बार बताने के बाद भी वह ऐसा करे तो डॉक्टर से परामर्श जरूर कर लें।
#3
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता महसूस करना
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता महसूस करना भी कलर ब्लाइंडनेस का एक मुख्य संकेत हो सकता है।
इस बीमारी से ग्रसित बच्चे रोशनी तेज होने पर तो रंगों के बीच अंतर करने में सक्षम होते हैं, लेकिन कम रोशनी में उन्हें रंग पहचानने में मुश्किल हो सकती हैं।
यह लक्षण बेहद गंभीर मामलों में ही नजर आता है। ऐसी स्थिति में बच्चों को तेज रोशनी से परेशानी भी हो सकती है।
#4
कोई भी रंग न देख पाना
कलर ब्लाइंडनेस का सबसे दुर्लभ लक्षण होता है किसी भी रंग को न देख पाना। अगर आपके बच्चे को पूरी दुनिया केवल काले या सफेद रंग की नजर आती है तो वह इस बीमारी से पीड़ित हो सकता है।
इस स्थिति को एक्रोमैटोप्सिया भी कहा जाता है, जिसके कारण सभी चीजें ग्रे रंग के अलग-अलग शेड की दिखाई देती हैं।
कलर ब्लाइंडनेस का कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके लिए खास तरह का चश्मा बनवाया जा सकता है।