लखनऊ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल, मौका मिलते ही घूम आएं
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक ऐसी जगह है, जो खुद में कई कहानियां समेटे हुए है। नवाबों के शहर के नाम से मशहूर यह मंत्रमुग्ध कर देने वाले शहर में यात्रियों के लिए इतिहास, संस्कृति, शांति, खरीदारी, प्राचीन वास्तुकला और बहुत कुछ है। यदि आप अपनी अगली यात्रा पर लखनऊ घूमने की योजना बना रहे हैं तो आइए आज हम आपको यहां की पांच सबसे प्रसिद्ध जगहों के बारे में बताते हैं।
बड़ा इमामबाड़ा
बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला ने 1784 में करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि इस ऐतिहासिक स्थल को 1784 के अकाल के दौरान रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए बनाया गया था, वहीं इसे भ्रामक रास्तों के कारण भूल-भुलैया भी कहा जाता है। गोमती नदी के किनारे स्थित बड़ा इमामबाड़ा की वास्तुकला, ठेठ मुगल शैली को प्रदर्शित करती है और इसे दुनिया की सबसे बड़ी पाचंवी मस्जिद भी माना जाता है।
दिलकुशा कोठी
औपनिवेशिक काल की इमारत का अवशेष दिलकुशा कोठी एक भुतहा लॉज था, जिसे शाही परिवारों के लिए एक महल में बदल दिया गया था। पहले यह अंग्रेज जनरल मेजर गोर का निवास था, लेकिन बाद में नवाब नसीर-उद-दीन-हैदर ने इसे अपना बनाया। इस कोठी के पास एक सुव्यवस्थित दिलकुशा बगीचा है, जो लखनऊ में एक शानदार पिकनिक स्थल है। यह इलाका काफी शांत और लखनऊ की हलचल से दूर है।
रूमी दरवाजा
रूमी दरवाजा 60 फीट ऊंचा एक आकर्षक प्रवेश द्वार है, जो पुराने लखनऊ की गलियों में स्थित है। यह स्मारक अवध वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है और यह बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा के बीच स्थित है। रूमी दरवाजा नवाब आसफ-उद-दौला ने बनवाया था और इसे तुर्की गेट के नाम से भी जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, अवधी कार्यकर्ताओं ने इस दरवाजे को नवाब के लिए प्रतिदिन के भोजन के बदले में बनवाया था।
जूलॉजिकल गार्डन
जूलॉजिकल गार्डन शहर के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। यह स्तनधारियों, सरीसृपों और सफेद बंगाल टाइगर और एशियाई शेर जैसे कई जीवों का घर है। नवाब नसीरुद्दीन हैदर द्वारा साल 1921 में निर्मित करवाया गया यह चिड़ियाघर 71 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है और इस चिड़ियाघर के अंदर आप टॉय ट्रेन की सवारी का भी मजा ले सकते हैं। यहां राजकीय संग्रहालय भी है।
जामा मस्जिद
इस्लामिक पूजा स्थल जामा मस्जिद लखनऊ के तहसीनगंज इलाके में स्थित है। इस विशाल मस्जिद का निर्माण राजा अली शाह बहादुर ने साल 1423 में करवाया था। इस मस्जिद में आपको इस्लामिक विशेषताओं के साथ हिंदू-जैन वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिल सकता है। चूने के खंभों पर फैंसी सजावट, ऊंची मेहराबदार छतें और खूबसूरत नक्काशी वाले खंभे इस मस्जिद की सुंदरता को कई गुना बढ़ा देते हैं।