वाराणसी घूमने जाएं तो इन 5 प्रसिद्ध स्थलों का जरूर करें रुख
उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी एक खूबसूरत और धार्मिक शहर है, जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने और शांति से अपनी छुट्टियां बिताने के लिए एक आदर्श स्थान है। यह पर्यटन स्थल गंगा नदी, कई विशाल मंदिरों और प्राचीन घाटों के लिए प्रसिद्ध है। यहां भारतीय यात्रियों के साथ-साथ विदेशी पर्यटक आना भी काफी पसंद करते हैं। आइए आज हम आपको इस शहर के 5 सबसे खूबसूरत पर्यटन स्थलों के बारे में बताते हैं।
दशाश्वमेध घाट
दशाश्वमेध घाट गंगा आरती का स्थान है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने 10 घोड़ों की बलि देकर इस घाट का निर्माण किया था। सूर्यास्त के समय तीर्थयात्री आरती की रस्म देखने के लिए इस स्थान पर आते हैं। कुछ लोग पानी के अनुष्ठान देखने के लिए नाव भी किराए पर लेते हैं। अगर आप अनुष्ठानों के दृश्य का आनंद लेना चाहते हैं तो घाट के पास किसी भी छत पर बने रेस्टोरेंट में जाएं।
सिंधिया घाट
अगर आप घाट की सीढ़ियों पर बैठकर कुछ क्षण शांति से बिताना चाहते हैं तो इसके लिए सिंधिया घाट या शिंदे घाट एकदम बेहतरीन है। मेडिटेशन का अभ्यास करने के लिए भी यह घाट काफी लोकप्रिय है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी घाट पर अग्नि भगवान का जन्म हुआ था। इस घाट पर एक छोटा-सा भगवान शिव का मंदिर भी है, जो आंशिक रूप से नदी में डूबा हुआ है।
काशी विश्वनाथ मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर एक धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ ऐतिहासिक स्थल भी है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर में विराजित ज्योतिर्लिंग देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसकी वजह से इस मंदिर को वाराणसी का सबसे खास मंदिर कहा जाता है। बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन लगभग 3,000 भक्त आते हैं और खास उत्सव पर इस मंदिर में आने वाले लोगों की संख्या करीब एक लाख तक हो जाती है।
काल भैरव मंदिर
यह मंदिर विशेशर गंज के पास स्थित है, जो सुबह 5:00 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। किंवदंतियों के अनुसार, जब वेदों और ऋषियों ने भगवान शिव को सबसे बड़ी शक्ति घोषित किया तो भगवान ब्रह्मा ने इसका मजाक उड़ाया। तब शिव ने काल भैरव का रूप धारण करके ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया और कहा कि उनका नया रूप काल भैरव दुनिया से पापों को दूर करने के लिए वाराणसी में हमेशा के लिए रहेगा।
तुलसी मानस मंदिर
यह मंदिर 20वीं शताब्दी में बनाया गया था और यह भगवान राम को समर्पित है। मंदिर ठीक उसी स्थान पर बनाया गया, जहां संत गोस्वामी तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में रामचरितमानस लिखी थी। यह मंदिर सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 3:30 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। मंदिर के दाहिनी ओर आपको एक हरा-भरा तुलसी का बगीचा मिलेगा, वहीं बाईं ओर चार घाटों वाला एक शांत तालाब है।