क्या है हल्द्वानी में लगभग 4,000 घरों को हटाए जाने का मामला, जो सुप्रीम कोर्ट पहुंचा?
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी में रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से बने हजारों घरों और अतिक्रमण को हटाए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस मामले पर सुनवाई करेगा। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर हुए इस अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे। आइए जानते हैं कि यह पूरा मामला क्या है।
क्या है पूरा मामला?
हल्द्वानी के बनभूलपुरा और गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर बने 4,000 से अधिक घरों के लोगों को जमीन खाली करने का नोटिस दिया गया है। इसके चलते इन परिवारों पर बेघर होने का खतरा है। बतौर रिपोर्ट्स, इस इलाके में रेलवे की जमीन पर 50,000 से अधिक लोग (अधिकांश मुस्लिम) बसे हुए हैं और कुछ परिवार यहां पर कई दशकों से रह रहे हैं। उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुताबिक, 8 जनवरी को क्षेत्र से अतिक्रमण हटाया जाना है।
हाई कोर्ट ने क्या आदेश दिया था?
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी में रेलवे की करीब 29 एकड़ भूमि पर हुए इस अतिक्रमण को हटाने के लिए आदेश सुनाया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि रेलवे की जमीन पर कब्जा करने वालों को एक सप्ताह का नोटिस देकर जमीन खाली करवाई जाए। हाई कोर्ट ने नोटिस के बावजूद जमीन खाली नहीं करने वालों को पुलिस और अर्धसैनिक बलों की मदद से बलपूर्वक हटाने का निर्देश भी दिया गया था।
क्षेत्र में क्या-क्या अतिक्रमण है?
NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इस इलाके में हजारों घरों के अलावा चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, 10 छोटी-बड़ी मस्जिद, चार मंदिर और दो पानी की टंकी भी बनी हुई हैं, वहीं पिछले कुछ वर्षों में बनीं दुकानें भी यहां मौजूद हैं। रेलवे के अधिकारियों ने हाल ही में इस इलाके में अपनी भूमि पर हुए अवैध अतिक्रमण का जायजा लेने के लिए ड्रोन की मदद से हवाई सर्वेक्षण भी किया था।
क्षेत्र के लोग कर रहे हैं प्रदर्शन
इलाके में रहने वाले लोग हाई कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। काफी संख्या में लोगों ने कैंडल मार्च भी निकाला। कुछ लोगों ने पट्टा दिखाते हुए पूछा कि प्रशासन ने उन्हें पहले बस जाने देने की अनुमति क्यों दी थी।
कांग्रेस विधायक ने हाई कोर्ट के फैसले को दी uw चुनौती
हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश के नेतृत्व में क्षेत्र के निवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मामले को सुप्रीम कोर्ट के आगे रखा, जिसके बाद भारत के मुख्य न्यायधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसए नजीर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने इसे स्वीकार कर लिया। मामले की सुनवाई गुरुवार को होगी।
मौन व्रत पर बैठे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने घरों को हटाए जाने के विरोध में बुधवार को एक घंटे के लिए मौन व्रत धारण किया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों समेत 50,000 से अधिक लोगों को अपना घर खाली करने और सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर किया जाता है तो यह बहुत ही दुखद दृश्य होगा। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से कार्रवाई रोकने की दिशा में कदम उठाने की अपील भी की।
बसपा और सपा ने भी दी प्रतिक्रया
बसपा प्रमुख मायावती ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट किया, 'उत्तराखंड के हल्द्वानी में बर्फीले मौसम में अतिक्रमण हटाने के नाम पर हजारों गरीब और मुस्लिम परिवारों को उजाड़ने का अमानवीय कार्य अति दुखद है। सरकार का काम लोगों को बसाना है, न कि उजाड़ना।' उन्होंने कहा कि सरकार को मामले में सकारात्मक कदम उठाने चाहिए। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल को हल्द्वानी भेजा है।
पुलिस और प्रशासन ने क्या तैयारी की है?
कुमाऊं रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (IG) नीलेश आनंद भरणे ने बताया कि अतिक्रमण हटाए जाने के लिए PAC की कई कंपनियों को तैनात किया गया है और अर्धसैनिक बलों की 14 कंपनियों की मांग भी की गई है। उन्होंने कहा कि मौके पर 4,000-5,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती होगी, जिसमें महिला पुलिसकर्मी भी शामिल होंगी। इसके अलावा प्रशासन पर्याप्त संख्या में JCB मशीन समेत अन्य उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की तैयारी कर रहा है।