क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड, जो हिजाब विवाद के बाद एक बार फिर चर्चा में आया?
क्या है खबर?
देश में एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड यानि समान नागरिक संहिता (UCC) की बहस तेज हो गई है और इस बार इसका कारण कर्नाटक में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब को लेकर हुआ विवाद बना है।
मौके को भुनाते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तो राज्य में भाजपा के चुनाव जीतने पर UCC पर उच्चस्तरीय समिति बनाने और इसे लागू करने का ऐलान भी कर दिया है।
लेकिन UCC आखिर है क्या, आइए जानते हैं।
परिभाषा
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है- देश के सभी वर्गों पर एक समान कानून लागू होना। अभी देश में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद जैसे मुद्दों पर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग निजी कानून हैं और वे उन्हीं के मुताबिक चलते हैं।
UCC लागू होने पर सभी धर्मों के लोगों को इन मुद्दों पर भी एक जैसे कानून का पालन करना होगा।
ये महज एक अवधारणा है और विस्तार में इसका रूप कैसा होगा, इस पर कुछ तय नहीं है।
संविधान
संविधान का UCC पर क्या कहना है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में UCC का जिक्र किया गया है। इसमें सरकार को सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफॉर्म सिविल कोड बनाने का निर्देश दिया गया है।
अभी देश में हिंदू, सिख, बौर्ध और जैन जैसे भारतीय धर्मों के लिए तो हिंदू कोड बिल हैं जो शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों में लागू होते हैं, लेकिन अन्य धर्मों के अलग-अलग कानून हैं।
मुस्लिमों पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू होता है जिसमें 1937 से खास सुधार नहीं हुआ।
कारण
आजादी के समय क्यों नहीं लागू किया गया UCC?
भारत में आजादी के समय से ही UCC पर चर्चा होती आ रही है और संविधान सभा में इस पर बहस हुई थी।
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर भी UCC जैसे कानून के पक्ष में थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी UCC के पक्षधर थे, लेकिन उनका मानना था कि विभाजन के दर्द से उभर रहे अल्पसंख्यकों के लिए UCC ठीक नहीं रहेगा और इसके लिए सही समय का इंतजार करना चाहिए।
फायदे
क्या हैं UCC के फायदे?
UCC के पक्षधरों का कहना है कि सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में लैंगिक पक्षपात है और UCC लागू करने पर इस भेदभाव को मिटाया जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर, UCC लागू होने पर तीन तलाक जैसी महिला विरोधी प्रथाओं की समाज में कोई जगह नहीं रह जाएगी।
UCC से निजी कानूनों का सरलीकरण भी होगा और विभिन्न वर्गों के बीच एकता और राष्ट्रवादी भावना मजबूत होगी।
इससे देश के धर्मनिरपेक्ष होने के सिद्धांत को भी बल मिलेगा।
विरोध
UCC के खिलाफ क्या तर्क दिए जाते हैं?
UCC के विरोधियों का सबसे बड़ा डर है कि इसके बहाने अल्पसंख्यकों पर हिंदुओं के बहुसंख्यकवाद को थोपा जा सकता है।
इसके अलावा UCC के खिलाफ संंविधान के अनुच्छेद 25 का भी हवाला दिया जाता है जिसमें हर भारतीय नागरिक को अपने धर्म को मानने और इसका पालन और प्रचार करने का अधिकार दिया गया है।
उनका तर्क है कि अगर UCC लागू किया जाता है तो ये लोगों की धार्मिक आजादी और निजी कानूनों में दखलअंदाजी होगी।
आगे का रास्ता
कोर्ट और सरकार का क्या रुख और आगे क्या?
देश की विभिन्न कोर्ट कई मौके पर सरकार को UCC लागू करने की दिशा में कदम उठाने का निर्देश दे चुकी हैं, लेकिन सरकार इस दिशा में आगे बढ़ने से हिचकती रही हैं।
UCC लागू करना मौजूदा भाजपा सरकार का एक बड़ा वैचारिक वादा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इसे लागू करने से पहले इस पर पर्याप्त बहस की जानी चाहिए और अगर UCC का इस्तेमाल केवल सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में किया जाता है तो ये नुकसादायक होगा।