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#NewsBytesExplainer: अरावली पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कहा कि सड़क से सोशल मीडिया तक छिड़ा विवाद?
अरावली पर्वतमाला से जुड़ी नई परिभाषा के विरोध में लोग सड़कों पर उतर आए हैं

#NewsBytesExplainer: अरावली पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्या कहा कि सड़क से सोशल मीडिया तक छिड़ा विवाद?

लेखन आबिद खान
Dec 21, 2025
04:39 pm

क्या है खबर?

दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली की पहाड़ियों की एक जैसी परिभाषा तय किए जाने के बाद राजस्थान से लेकर दिल्ली और सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक लोग विरोध में उतर आए हैं। सोशल मीडिया पर #SaveAravalli हैशटैग ट्रेंड कर रहा है। खासतौर से राजस्थान में इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गई है। आइए पूरा मामला समझते हैं।

कोर्ट

कैसे हुई विवाद की शुरुआत?

इस विवाद की शुरुआत अरावली को लेकर अलग-अलग परिभाषाओं के चलते हुई है। अलग-अलग राज्यों और एजेंसियों द्वारा अलग-अलग परिभाषाओं के चलते कई खामियां सामने आईं। इसे दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय वन सर्वेक्षण, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, राज्यों के वन विभागों और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) के प्रतिनिधियों वाली एक समिति बनाई थी। अब कोर्ट ने इस समिति द्वारा दी गई परिभाषा को स्वीकार कर लिया है।

परिभाषा

क्या कहती है अरावली की नई परिभाषा?

नई परिभाषा के अनुसार, अरावली श्रृंखला की 100 मीटर से नीचे की छोटी पहाड़ियों और ढलानों को अब 'अरावली' नहीं माना जाएगा। यानी स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा मानी जाएंगी।। वहीं, 500 मीटर के दायरे में 2 या 2 से ज्यादा ऐसी पहाड़ियों को 'अरावली' माना जाएगा। केंद्र का तर्क है कि इससे पूरे देश में अरावली की एक समान और स्पष्ट परिभाषा लागू होगी।

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राजस्थान

राजस्थान में क्यों हो रहा है ज्यादा विरोध?

राजस्थान के लिए यह मुद्दा इसलिए बड़ा है, क्योंकि अरावली का ज्यादातर हिस्सा यहीं से गुजरता है। ये पर्वतमाला राज्य में वर्षा जल को रोकने, भूजल रिचार्ज, धूल भरी आंधियों को थामने और थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर अरावली का संरक्षण नहीं किया गया, तो अलवर, जयपुर, दौसा, सीकर, झुंझुनूं, उदयपुर और राजसमंद जैसे जिलों में भूजल स्तर गिरेगा और खनन को अनियंत्रित बढ़ावा मिलेगा।

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असर

नई परिभाषा का विरोध क्यों हो रहा है?

जानकारों का कहना है कि नई परिभाषा से लगभग 90 प्रतिशत अरावली क्षेत्र 'अरावली' के दायरे से बाहर हो जाएगा। अरावली क्षेत्र खनिज संसाधनों से समृद्ध है। नई परिभाषा लागू हुई, तो यहां खनन गतिविधियां बेलगाम हो जाएगी। 100 मीटर से ऊंची पहाड़ियों को भी कम दिखाकर खनन शुरू कर दिया जाएगा। यानी ये फैसला अरावली को मिले कानून संरक्षण को खत्म कर देगा, जिससे कई पर्यावरणीय चुनौतियां भी सामने आएंगी।

अहमियत

कितनी अहम है अरावली पर्वतमाला?

पर्यावरणीय दृष्टि से अरावली पर्वतमाला बेहद अहम है। यह थार रेगिस्तान को पूर्व दिशा में फैलने से रोकती है और उपजाऊ मैदानों की रक्षा करती है। साथ ही यह भूजल रिचार्ज, जलवायु संतुलन और जैव विविधता संरक्षण के लिए भी अहम है। यहां से चंबल, साबरमती और लूणी जैसी कई प्रमुख नदियां निकलती हैं। अरावली को दिल्ली-NCR का प्राकृतिक कूलिंग सिस्टम कहा जाता है। इसमें छेड़छाड़ से गर्मियों में तापमान और ऊपर जा सकता है।

राजनीति

NSUI सड़कों पर उतरेगी, अशोक गहलोत भी विरोध में

राजस्थान NSUI ने अरावली से जुड़े फैसले के विरोध में 26 दिसंबर को जयपुर में 'अरावली बचाओ पैदल' मार्च निकालने का ऐलान किया है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, "अरावली उत्तर भारत के लिए प्राकृतिक सुरक्षा दीवार है, जो थार मरुस्थल की रेत और लू को दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पहुंचने से रोकती है। अगर पहाड़ियों को खनन के लिए खोला गया, तो मरुस्थलीकरण तेज होगा और तापमान में खतरनाक बढ़ोतरी होगी।"

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