क्या है कोरोना संक्रमित बच्चों को अपनी चपेट में ले रही MIS-C नामक बीमारी?
क्या है खबर?
कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच देश में अलग-अलग बीमारियां नई चुनौतियां पैदा कर रही हैं। अभी ब्लैक फंगस के मामले लगातार बढ़ ही रहे थे कि एक नई बीमारी ने बच्चों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है।
पिछले कुछ दिनों में देश में कई बच्चों को MIS-C नाम बीमारी से ग्रस्त पाया जा चुका है। फिलहाल इस बीमारी को कोरोना संक्रमण से ही जोड़कर देखा जा रहा है। आइए इस बीमारी के बारे में जानते हैं।
परिचय
क्या है MIS-C बीमारी?
मशहूर मेडिकल पत्रिका द लैंसेट के मुताबिक, MIS-C का पूरा नाम मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेट्री सिंड्रोम होता है। यह बच्चों में होना वाला गंभीर रोग है।
कई जानकारों का कहना है कि महामारी की दूसरी लहर में संक्रमित होकर ठीक होने वाले बच्चों में MIS-C के मामले बढ़े हैं।
अकेले दिल्ली में इसके 200 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि इस रोग के होने की स्पष्ट वजह अभी तक पता नहीं चल पाई है।
जानकारी
देश में पिछले कुछ दिनों में बढ़े हैं MIS-C के मामले
इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक इंटेसिव केयर ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में MIS-C के मामले बढ़े हैं। इससे 4-18 साल के वो बच्चे प्रभावित हुए हैं जो कोरोना संक्रमण को हराकर ठीक हुए हैं। छह माह तक के बच्चे भी इससे प्रभावित हुए हैं।
लक्षण
MIS-C के लक्षण क्या हैं?
अमेरिकी सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के अनुसार, यह एक दुर्लभ, लेकिन खतरनाक बीमारी है। इससे बच्चों के हृदय, आंतों, आंखों, गुर्दे और फेफड़ों पर असर पड़ता है।
इससे ग्रसित बच्चों में गर्दन के पास दर्द, शरीर पर दाने, आंखों में सूखापन, थकान बने रहना और बुखार जैसे लक्षण नजर आते हैं। हर बच्चे में अलग-अलग लक्षण नजर आ सकते हैं।
कुछ बच्चों को उल्टी, दस्त और पेट दर्द जैसी शिकायतें भी होती हैं।
खतरा
इलाज न करने पर काम करना बंद कर सकते हैं कई अंग
द लैंसेट में लिखा गया है कि इस बीमारी के कारण बच्चे 7-8 दिन तक अस्पताल में रह सकते हैं। पिछले लगभग एक साल में अमेरिका में इसके कई मामले सामने आ चुके हैं और वहां के वैज्ञानिक इसकी जांच-पड़ताल में जुटे हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर समय रहते इस बीमारी का इलाज नहीं किया जाता तो यह तेजी से बढ़ती रहती है और कुछ ही दिनों में कई अंग एक साथ काम करना बंद कर देते हैं।
सवाल
अभी कई अहम सवालों का जवाब मिलना बाकी
शोधकर्ता अभी तक यह पता नहीं लगा पाए हैं कि यह बीमारी किन बच्चों को और क्यों चपेट में ले रही है। अभी तक जो बच्चे इस प्रभावित हुए हैं, वो खुद कोरोना से संक्रमित हुए थे या किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में थे।
दुनिया की सबसे पुरानी मेडिकल पत्रिकाओं में से एक BMJ ने ऊपर बताए गए लक्षणों के कारणों के अलावा आंखों के संक्रमण (कंजंक्टिवाइटिस) को भी MIS-C की बड़ी वजह माना है।
खतरा
71 प्रतिशत बच्चों को पड़ी ICU की जरूरत
द लैंसेट के एक अध्ययन में सामने आया है कि MIS-C से ग्रसित बच्चो की CRP, ESR और ECG टेस्ट की रिपोर्ट सामान्य नहीं थी।
अध्ययन में सामने आया कि इस बीमारी की चपेट में आने वाले 71 प्रतिशत बच्चों को इलाज के दौरान इनटेंसिव केयर यूनिट (ICU) और 22 प्रतिशत बच्चों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी।
वहीं 1.7 प्रतिशत बच्चे ऐसे रहे जो इस बीमारी से ठीक नहीं हो सके और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी।
बचाव
जल्दी पहचान और सही इलाज से कम होता है खतरा
द लैंसेट का कहना है कि MIS-C की जल्दी पहचान और सही इलाज मिलने से अधिकतर बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इसके इलाज में स्टेरॉयड्स और इंट्रावेनस इम्युनोग्लोब्यूलिन का इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि अभी तक इस बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है कि ऐसा इलाज बच्चों की सेहत पर आगे चलकर कैसा असर डाल सकता है।
विशेषज्ञ परिजनों को बच्चों में इसके लक्षण दिखने के तुरंत बाद डॉक्टरों से संपर्क करने की सलाह देते हैं।