उत्तराखंड: हाई कोर्ट का मुख्यमंत्री पर लगे आरोपों की CBI जांच का आदेश, पत्रकार को राहत
क्या है खबर?
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने मंगलवार को पत्रकार उमेश शर्मा के खिलाफ दायर FIR रद्द करने का आदेश दिया है।
दरअसल, शर्मा ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये दावा किया था कि नोटबंदी के बाद झारखंड के रहने वाले एक व्यक्ति ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़े एक दंपत्ति के खाते में पैसे जमा कराए थे।
साथ ही कोर्ट ने इस मामले की CBI जांच के आदेश दिए हैं।
आइये, यह पूरी खबर जानते हैं।
पृष्ठभूमि
क्या है मामला?
दरअसल, उमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये दावा किया था कि झारखंड के अमृतेश चौहान ने नोटबंदी के बाद मुख्यमंत्री रावत से व्यक्तिगत लाभ लेने के लिए रिटायर्ड प्रोफेसर हरेंद्र रावत और उनकी पत्नी डॉ सविता रावत के खाते में पैसे भेजे थे।
शर्मा का दावा था कि सविता रावत मुख्यमंत्री रावत की सगी बहन हैं। उन्होंने अपनी पोस्ट में बैंक खाते की इस ट्रांजेक्शन की जानकारी भी दी थी।
जानकारी
FIR रद्द करवाने हाई कोर्ट गए थे शर्मा
यह पोस्ट सामने आने के बाद हरेंद्र रावत ने आरोपों का खंडन किया और शर्मा के खिलाफ देहरादून में FIR दर्ज करवा दी। इसे रद्द करवाने के लिए शर्मा ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
आदेश
याचिका में गंभीर आरोप, CBI जांच की जरूरत- कोर्ट
शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की जस्टिस रविंद्र मैठाणी की एकल बेंच ने यह FIR रद्द करने का आदेश दिया।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि याचिका में मुख्यमंत्री के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसलिए यह राज्य के हित में होगा कि इस मामले की हकीकत लोगों के सामने आए।
उन्होंने CBI को मामले में FIR दर्ज कर जांच शुरू करने को कहा है ताकि आरोपों की सच्चाई सामने आ सके।
उत्तराखंड
मामले के दस्तावेज CBI को सौंपने के आदेश
कोर्ट ने मामले की सभी फाइलें और दस्तावेज 48 घंटों के भीतर देहरादून स्थिति CBI कार्यालय में पहुंचाने को कहा है। इन फाइलों के ईमेल और हार्ड कॉपी CBI को सौंपे जाएंगे।
इस मामले में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल शर्मा की तरफ से पेश हुए थे। उन्होंने कहा कि शर्मा के खिलाफ झारखंड में भी मामला दर्ज किया गया था और उस मामले में जमानत पर हैं। ऐसे में एक ही मामले में दो बार गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
जांच
देहरादून पुलिस ने रावत के दे दी थी क्लीन चिट
सोशल मीडिया पर इस कथित लेनदेन की जानकारी सामने आने के बाद देहरादून पुलिस ने इसकी जांच की थी।
तब पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हरेंद्र और त्रिवेंद्र सिंह रावत रिश्तेदार नहीं है और डॉ सविता रावत भी मुख्यमंत्री रावत की सगी बहन नहीं हैं।
आजतक के मुताबिक, बाद में बैंक खातों और अन्य दस्तावेजों से पता चला कि देहरादून पुलिस की रिपोर्ट झूठी थी क्योंकि सभी आरोपी आपस में करीबी रिश्तेदार निकले थे।