मोरबी पुल हादसा: ये संभावित कारण आ रहे नजर, प्रधानमंत्री ने दिए विस्तृत जांच के आदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोरबी पुल हादसे की गहन और विस्तृत जांच के आदेश दिए हैं। इस हादसे में 140 से अधिक मौतें हुई हैं। प्रधानमंत्री ने मंगलवार को मोरबी पहुंचकर पीड़ितों का हालचाल जाना और एक उच्च स्तरीय बैठक की। इसमें उन्होंने साफ निर्देश दिए कि मामले की विस्तृत जांच होनी चाहिए। इस हादसे की पीछे जल्दबाजी में की गई मरम्मत और इस पर प्रवेश के लिए नियम न होने समेत कई कारण जिम्मेदार माने जा रहे हैं।
रविवार को हुआ था हादसा
मोरबी पुल टूटने की घटना रविवार शाम लगभग 7 बजे हुई। मच्छू नदी पर बने अंग्रेजों के जमाने के इस पुल पर छठ पूजा के लिए सैकड़ों लोग जमा हो गए थे, जिस कारण इसकी एक तरफ की केबल टूट गई और यह पानी में जाने लगा। पुल टूटने पर सैकड़ों लोग नदी में गिर गए, जबकि कुछ लोग बचकर किनारे पर आने में कामयाब रहे। घटना के समय पुल पर लगभग 400 लोग मौजूद थे।
जांच के लिए उच्च स्तरीय समिति गठित
इस हादसे को लेकर आपराधिक मामला दर्ज किया गया है और कुछ गिरफ्तारियां भी हुई हैं। गुजरात सरकार ने इसकी जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति गठित की है। अभी तक हादसे के पीछे निम्नलिखित कारण नजर आ रहे हैं।
जल्दबाजी में किया गया काम
765 फीट लंबे इस पुल का मरम्मत कार्य जल्दबाजी में किया गया था। सात महीनों से मरम्मत कार्य के लिए बंद इस पुल को दिसंबर में खोला जाना था, लेकिन गुजराती नव वर्ष और त्योहारों को देखते हुए इसका काम जल्दबाजी में पूरा कर इसे अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में खोल दिया गया। जब पुल को दोबारा खोला गया, तब इसकी मजबूती को टेस्ट नहीं किया गया और न ही इसका फिटनेस सर्टिफिकेट लिया गया था।
मरम्मत के दौरान बढ़ा पुल का वजन
मरम्मत के दौरान पुल पर लोगों के चलने के लिए एल्युमिनियम की चार परतें जोड़ी गई थीं, जिससे इसके फर्श का वजन बढ़ गया। हालांकि, इस वजन को सहने के लिए पुल की तारों को मजबूत नहीं किया गया था। पुल की तारों को नया दिखाने के लिए इन्हें मजबूत करने की बजाय इन पर पेंट कर दिया गया था। जाहिर है कि पुराने तार इतना वजन नहीं सहन कर पाए और पुल टूट गया।
पुल पर प्रवेश के लिए नहीं थी कोई रोक
एल्युमिनियम की चार सतहें जोड़े जाने से पुल का भार पहले ही बढ़ गया था, वहीं इस पर जाने वालों का प्रवेश भी अनियंत्रित था। यहां पर तैनात सुरक्षागार्ड भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पा रहे थे। इसके अलावा हादसे वाले दिन बड़ी संख्या में लोगों को इस पुल पर जाने के लिए टिकट दिया गया था। इसके चलते क्षमता से ज्यादा लोग इस पर पहुंच गए और पुल इनका भार सहन नहीं कर पाया।
अयोग्य ठेकेदारों को सौंपा गया काम
इस पुल की देखरेख करने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुप ने मरम्मत का काम ऐसे ठेकेदारों को सौंपा था, जो इसके लिए पूरी तरह योग्य नहीं थे। अब इस बात की जांच होगी कि कैसे कंपनी ने यह ठेका आगे सौंप दिया। इसके अलावा ओरेवा ग्रुप के पास दुर्घटना की स्थिति में राहत या बचाव के लिए कोई इंतजाम नहीं था। हादसे के समय भी पुल के पास लाइफ जैकेट और गोताखोरों वाली कोई नाव नहीं थी।
न्यूजबाइट्स प्लस (जानकारी)
यह पुल 140 साल से ज्यादा पुराना था। यह पूरे देश के लिए ऐतिहासिक धरोहर था। इसका उद्घाटन 20 फरवरी, 1879 को मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने किया था। यह पुल उस समय लगभग 3.5 लाख की लागत से 1880 में बनकर तैयार हुआ था। इसके निर्माण के लिए पूरा सामान इंग्लैंड से मंगवाया गया था। उसके बाद कई बार इसका रेनोवेशन किया जा चुका है। दिवाली से पहले इसकी मरम्मत पर दो करोड़ रुपये खर्च किए गए थे