हिमाचल प्रदेश में तबाही के क्या हैं प्रमुख कारण?
क्या है खबर?
हिमाचल प्रदेश में इस मानसून के दौरान बारिश और भूस्खलन से 328 लोगों की जान गई है। एक रिपोर्ट में राज्य में आगे और अधिक आपदा की संभावनाओं के बारे में चिंता जताई गई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मूसलाधार बारिश ने भूजल के स्तर को बढ़ा दिया है। इसके कारण रिहायशी इलाकों के नीचे की मिट्टी दलदल में तब्दील हो गई है, जिससे अधिक भूस्खलन हो सकता है।
आइए जानते हैं कि इस रिपोर्ट में और क्या कहा गया है।
रिपोर्ट
बारिश में हुई 157 प्रतिशत की वृद्धि
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल हिमाचल प्रदेश में पहले ही भूस्खलन और तेज बाढ़ (फ्लैश फ्लड) की 180 घटनाएं हो चुकी हैं। इस आपदाओं के लिए बारिश में 157 प्रतिशत की वृद्धि मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
साथ ही हिमालय के पहाड़, उनकी मिट्टी और पेड़ अतिरिक्त बारिश के पानी को सोखने में असमर्थ हैं, जिससे यहां लगातार भूस्खलन और मिट्टी का कटाव हो रहा है।
निर्माण
शहरों में अनियंत्रित और अवैध निर्माण भी जिम्मेदार
हिमाचल में सड़क चौड़ीकरण कार्य के दौरान ब्यास और सतलुज नदियों में अवैज्ञानिक रूप से ढलान काटने और मलबा डालने से तटीय इलाकों में बाढ़ का संकट खड़ा हुआ है।
साथ ही शिमला, धर्मशाला, मनाली और मंडी जैसे शहरों में अनियंत्रित और अवैध निर्माण भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार है।
इसका एक प्रमुख उदाहरण हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की इमारत है, जो 11 मंजिल ऊंची है। यह राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की अनुशंसित अधिकतम 2.5 मंजिल से कई अधिक है।
भूस्खलन
जलविद्युत परियोजनाओं में होने वाले विस्फोट भी आपदा का कारण- रिपोर्ट
रिपोर्ट के मुताबिक, जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए होने वाले विस्फोटों में वृद्धि भी आपदा के लिए जिम्मेदार है। सड़कों और बिजली परियोजनाओं के लिए सुरंगों की खुदाई ने भी क्षेत्र में जमीन को और कमजोर कर दिया है।
हिमाचल प्रदेश में केवल 5-10 फीट की रिटेनिंग दीवारों के साथ सड़क निर्माण के लिए पहाड़ों की कटाई की जा रही है। यहां तलहटी में चट्टानों की कटाई और उचित जल निकासी न होने से भी भूस्खलन बढ़ रहा है।
वैज्ञानिक
भूवैज्ञानिक बोले- आपदा प्राकृतिक से ज्यादा मानवजनित
प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक प्रोफेसर ओएन भार्गव का कहना है कि हिमालयी राज्य में आपदा प्राकृतिक से ज्यादा मानवजनित है। उनका तर्क है कि नदी के किनारों पर कंक्रीट संरचनाएं प्राकृतिक रिसाव प्रक्रियाओं में बाधा डालती हैं, जिससे बाढ़ आती है।
उन्होंने कहा, "तटीय इलाकों में निर्माण के कारण नदी के मार्ग बदल जाते हैं। ब्यास नदी ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और मंडी जिलों में कई स्थानों पर बाढ़ के दौरान अपना मार्ग बदला था।"
वैज्ञानिक
अवैज्ञानिक तरीके से सड़क चौड़ीकरण भी आपदा के लिए जिम्मेदार- भूवैज्ञानिक
प्रोफेसर भार्गव आपदा को बढ़ाने के लिए अवैज्ञानिक तरीके से सड़क चौड़ीकरण और नदियों में मलबा गिराने को भी जिम्मेदार मानते हैं।
उन्होंने कहा, "हिमालय की नदियां, जिनमें बर्फ पिघलने पर ही बाढ़ आती थी, अब सड़क और जलविद्युत परियोजना निर्माण के कारण अप्रत्याशित हो गई हैं।"
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में तापमान बढ़ रहा है, जिससे बर्फ की रेखाएं सिकुड़ रही हैं और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
नुकसान
हिमाचल में अब तक 74 लोगों की मौत
हिमाचल में पिछले 4 दिनों में बारिश से संबंधित घटनाओं में 74 लोगों की मौत हो गई है। साथ ही करीब 10,000 करोड़ रुपये की राज्य संपत्ति को नुकसान पहुंचा है।
इसके अलावा राज्य में सैकड़ों पेयजल योजनाओं और बिजली आपूर्ति लाइनों के साथ-साथ 1,400 से अधिक सड़कें प्रभावित हैं।
चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग सहित अनुमानित 950 सड़कें भूस्खलन के कारण अवरुद्ध हो गई हैं, जिससे लगभग 2,100 मार्गों पर आवाजाही प्रभावित है।
यहां राहत और बचाव कार्य जारी है।