भारत ने क्यों रोका पाकिस्तान जाने वाला रावी नदी का पानी, कैसे जम्मू-कश्मीर को होगा फायदा?
क्या है खबर?
भारत ने 25 फरवरी को रावी नदी पर डाउनस्ट्रीम शाहपुर कंडी बैराज का काम पूरा कर पाकिस्तान जाने वाले पानी को पूरी तरह से रोक दिया।
लंबे समय से इस बांध को बनाने का काम चल रहा था, जो करीब 45 वर्षों बाद पूरा हो सका है।
इससे जम्मू-कश्मीर और पंजाब के किसानों को लाभ मिलेगा।
आइए जानते हैं क्यों और कैसे रोका गया रावी नदी का पानी और कैसे जम्मू-कश्मीर को इस पानी से होगा लाभ।
जल संधि
जल संधि क्या है, जिसके तहत हुआ इस बांध का निर्माण?
विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी, जिसके तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा हुआ था।
इसके तहत भारत का 'पूर्वी' नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) के जल पर पूरा अधिकार है। इसके बदले भारत 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, चिनाब और झेलम) को पाकिस्तान के लिए छोड़ता है।
इस संधि के तहत भारत को 19.5 प्रतिशत जबकि पाकिस्तान को 80 प्रतिशत पानी मिलता है।
आधारशिला
1995 में रखी गई थी कंडी बैराज परियोजना की आधारशिला
संधि के तहत रावी नदी के पानी का पूरा इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए 1979 में रणजीत सागर बांध और कंडी बैराज बनाने के लिए जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और उनके पंजाबी समकक्ष प्रकाश सिंह बादल ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
इसके बाद 1995 में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने शाहपुर कंडी बैराज परियोजना की आधारशिला रखी।
हालांकि, दोनों राज्यों के बीच विवाद के बाद 4 साल तक यह आगे नहीं बढ़ा।
बाधा
बैराज के निर्माण कार्य में कब-कब बाधाएं आईं?
इस बैराज का काम 2002 तक पूरा होने था, लेकिन तमाम बाधाओं के कारण ऐसा नहीं हो सका। दूसरी तरफ रणजीत सागर बांध का निर्माण 2001 तक पूरा कर लिया गया था।
इसके बाद 2008 में शाहपुर कंडी परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया गया, लेकिन इसके निर्माण का कार्य 2013 में शुरू हुआ।
हालांकि, 2014 में पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवादों के कारण यह परियोजना फिर से रुक गई।
मध्यस्थता
केंद्र के दखल के बाद 2018 में शुरू हो सका निर्माण कार्य
आखिरकार 8 सितंबर, 2018 को केंद्र सरकार ने मध्यस्थता कर दोनों राज्यों के बीच समझौता करवाया और फिर इसका निर्माण काम शुरू हो सका, जो अब पूरा हो चुका है।
यह बैराज बांध रणजीत सागर बांध परियोजना से 11 किमी नीचे रावी नदी पर बनाया गया है। यह 725 मीटर लंबा तथा 55.5 मीटर ऊंचा है। इसे 2715 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है।
इससे 206 मेगावाट बिजली पैदा होगी।
कार्यबल
2016 में एक कार्यबल का किया गया था गठन
2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि सतलुज, ब्यास और रावी नदियों का बूंद-बूंद पानी पर भारत का अधिकार है और इस पानी को पंजाब और जम्मू-कश्मीर के किसानों को दिया जाएगा और पाकिस्तान जाने से इसे रोका जाएगा।
इसके बाद एक कार्यबल का गठन किया गया, जो यह सुनिश्चित करेगा कि इन तीनों नदियों का पानी पंजाब और जम्मू-कश्मीर तक पहुंचे।
लाभ
इस बांध से जम्मू कश्मीर को कैसे होगा लाभ?
दरअसल, पुराने लखनपुर बांध के जरिए रावी के पानी को जम्मू-कश्मीर और पंजाब की ओर मोड़ा जा सकता है।
इस बैराज से रोका जाने वाला लगभग 1,150 क्यूसेक पानी अब जम्मू-कश्मीर के कठुआ और सांबा जिले के लिए इस्तेमाल हो सकेगा, जिसके जरिए 32,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन की सिंचाई हो सकेगी।
इससे बांध से पैदा होने वाली पनबिजली का भी 20 प्रतिशत हिस्सा जम्मू-कश्मीर को मिल सकेगा।
इसके अलावा पानी से पंजाब और राजस्थान को भी फायदा होगा।
कदम
भारत ने संधि के तहत पानी रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाए?
बता दें कि भारत ने सिंधु जल संधि के तहत सतलज पर भाखड़ा बांध, ब्यास नदी पर पोंग और पंडोह बांध तथा रावी नदी पर रणजीत सागर (थीन) बांध का निर्माण किया।
इसके अलावा ब्यास-सतलुज लिंक, इंदिरा गांधी नहर और माधोपुर-ब्यास लिंक जैसी अन्य परियोजनाएं भी बनाई गईं, जिससे भारत को पूर्वी नदियों का करीब 95 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिली।
हालांकि, रावी का पानी तब भी पाकिस्तान जाता था, जिसे अब रोक दिया गया है।