कर्नाटक कोविड घोटाला: जांच आयोग ने कहा- ज्यादातर लेनदेन में अनियमितता, व्यापक भ्रष्टाचार हुआ
कर्नाटक में कोरोना काल के दौरान कथित कोविड फंड घोटाले को लेकर सियासत गरमा गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का फैसला लिया है। बसवराज बोम्मई की सरकार के दौरान हुई इस कथित घोटाले को लेकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इस बीच घोटाले की जांच कर रहे सेवानिवृत्त न्यायाधीश माइकल डी कुन्हा द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में व्यापक भ्रष्टाचार होने की बात कही गई है।
क्या है मामला?
दरअसल, कोरोना काल के दौरान कर्नाटक को केंद्र सरकार से करीब 13,000 करोड़ रुपये का फंड मिला था। आरोप है कि इसमें करीब 1,000 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई। कुन्हा आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, कई दस्तावेज और फाइलें गायब हैं, जो बार-बार अनुरोध के बावजूद जांच आयोग के समक्ष पेश नहीं की गई। आयोग अगस्त तक 7,223 करोड़ रुपये के खर्च की जांच कर चुका है।
किसे मिला थी कितनी राशि?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग (HFWD) ने 1,754.34 करोड़ रुपये के सामानों की खरीद की थी। इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने 1,406.56 करोड़, चिकित्सा शिक्षा निदेशालय ने 918.34 करोड़, कर्नाटक राज्य चिकित्सा आपूर्ति निगम लिमिटेड (KSMSCL) ने 1,394.59 करोड़ के चिकित्सा उपकरण और 569.02 करोड़ रुपये की दवाएं और किदवई मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑन्कोलॉजी ने 264.37 करोड़ रुपये की खरीद की थी।
जांच रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
कुन्हा आयोग ने रिपोर्ट में कहा है कि खरीद प्रक्रिया के हर चरण में गंभीर अवैधता, कदाचार और भ्रष्टाचार किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर लेनदेन में अनियमितताएं पाई गई हैं। ऑक्सीजन संयंत्रों की खरीद और गहन चिकित्सा इकाई (ICU) के निर्माण के लिए बोलीकर्ता को चुनने में गलत तरीकों को अपनाया गया, जिसकी वजह से कर्नाटक सार्वजनिक खरीद अधिनियम में पारदर्शिता का उल्लंघन हुआ है।
रिपोर्ट में और किन गड़बड़ियों का जिक्र किया गया है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि निविदा प्रक्रियाओं में बड़ा घोटाला हुआ है। कई निविदाएं को पहली ही बोली में बिना किसी जांच के स्वीकार कर लिया गया। जांच आयोग ने कहा कि 30 से अधिक मामलों में बोली लगाने से पहले कोई बैठक आयोजित नहीं की गई और विज्ञापनों के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई। इसके अलावा एक ही लैबोरेटरी ने कई बोलियों को जीता, जो संभावित पक्षपात की ओर इशारा करता है।
मामले पर राज्य सरकार का क्या कहना है?
कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने कहा, "31 अगस्त को 11 खंडों में प्रस्तुत आंशिक रिपोर्ट में आयोग ने 7,223.64 करोड़ रुपये के खर्च की जांच की है। आयोग ने इतनी बड़ी राशि के दुरुपयोग को इंगित नहीं किया, लेकिन 500 करोड़ रुपये की वसूली किए जाने की सिफारिश की है। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के 4 जोन और 31 जिलों से रिपोर्ट मांगी है, जो उसे अभी तक नहीं मिली है।"