
बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना से कैसे बढ़ेगा उत्पादन और किसानों को कैसे होगा लाभ?
क्या है खबर?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को बिहार के पूर्णिया जिले में एक रैली को संबोधित करेंगे और 36,000 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का शुभारंभ करेंगे। इसमें एक नव-विकसित हवाई अड्डे के टर्मिनल और राष्ट्रीय मखाना बोर्ड का उद्घाटन भी शामिल होगा। इस मखाना बोर्ड की स्थापना की घोषणा इस साल की शुरुआत में केंद्रीय बजट में की गई थी। ऐसे में आइए जानते हैं कि मखाना बोर्ड की स्थापना से उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ किसानों को कैसे लाभ मिलेगा।
तारीफ
प्रधानमंत्री मोदी ने मखाना को बताया 'सुपर फूड'
देश में मखाना या भारतीय मखाना के उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत अकेले बिहार में ही होता है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी अपने कई भाषणों में 'सुपर फ़ूड' करार दिया है। मखाना बोर्ड की स्थापना को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार शाम को एक्स पर लिखा था, 'मखाना और बिहार का बहुत गहरा संबंध है। कल पूर्णिया से राष्ट्रीय मखाना बोर्ड का शुभारंभ किया जाएगा। इससे इस क्षेत्र से जुड़े हजारों किसानों को सीधा लाभ मिल सकेगा।'
जानकारी
बिहार के इन जिलों में होता है मखाना का सर्वाधिक उत्पादन
बिहार के पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज जिलों को मखाना उत्पादन का गढ़ माना जाता है। इन जिलों में भारत के कुल उत्पादान का 80 प्रतिशत उत्पादन होता है। यहां के किसान लंबे समय से बेहतर मार्केटिंग और उचित मूल्य की मांग कर रहे थे।
बोर्ड
राष्ट्रीय मखाना बोर्ड क्या है?
राष्ट्रीय मखाना बोर्ड एक सरकारी पहल है जो मखाना के उत्पादन, विपणन और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। यह बोर्ड किसानों और प्रसंस्करणकर्ताओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करते हुए उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए तकनीकी, वित्तीय और अवसंरचनात्मक सहायता प्रदान करेगा। इसकी घोषणा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में की थी। इसके संचालन के लिए 100 करोड़ रुपये के शुरुआती बजट दिया गया है।
उद्देश्य
क्या है मखाना बोर्ड का उद्देश्य?
राष्ट्रीय मखाना बोर्ड कई केंद्रित पहलों के माध्यम से उद्योग को बदलने के लिए समर्पित है। इसमें उपज और गुणवत्ता में सुधार के लिए वैज्ञानिक कृषि तकनीकों का इस्तेमाल, बेहतर बीज किस्मों और कीट नियंत्रण विधियों को विकसित करने के लिए ICAR और बिहार कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों के साथ सहयोग करना, किसानों की वित्तीय और तकनीकी सहायता, विपणन और निर्यात संवर्धन, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन के साथ सब्सिडी और ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना शामिल है।
उत्पादन
मखाना बोर्ड की स्थापना से कैसे बढ़ेगा उत्पादन?
मखाना बोर्ड की स्थापना से इसके उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। बोर्ड अनुसंधान और विकास के माध्यम से उच्च त्पादकता वाली मखाना किस्मों को विकसित करने में सहयोग करेगा, कृषि पद्धतियों में सुधार के लिए नई तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देगा, उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाएगा और देश-दुनिया में ब्रांडिंग के जरिये बिक्री बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसी तरह बोर्ड प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग के क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को राज्य में निवेश के लिए प्रेरित भी करेगा।
लाभ
मखाना बोर्ड से किसानों को कैसे होगा लाभ?
मखाना बोर्ड बीज, उर्वरक और मशीनरी के लिए सब्सिडी देकर किसानों की वित्तीय सहायता करेगा और सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों को सिखाने के लिए समय-समय पर कार्यशालाएं भी आयोजित करेगा। इसी तरह किसानों को बेहतर बाजार मूल्य दिलाने के लिए सरकारी खरीद और उचित मूल्य निर्धारण नीतियां तैयार करेगा, पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को आसान कृषि ऋण दिलाने में मदद करेगा, मखानों की बर्बादी रोकने के लिए भंडारण और प्रसंस्करण की सुविधा भी बढ़ाएगा।
निर्यात
मखाना बोर्ड फसल के निर्यात के अवसर भी बढ़ाएगा
मखाना बोर्ड का गठन होने से इसकी वैश्विक बाजारों में पहुंच तेजी से बढ़ेगी और किसानों एवं निर्यातकों के लिए नए अवसर पैदा होंगे। दरभंगा हवाई अड्डे और आगामी पूर्णिया हवाई अड्डे के माध्यम से मखाना को दुनियाभर में पहुंचाने में सुविधा मिलेगी। इससे उत्तर बिहार में लाखों की संख्या में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। बोर्ड किसानों को सीधे बाजार से जोड़कर बिचौलियों की भूमिका कम कर देगा। इससे उत्पाद का सही मूल्य मिल सकेगा।
चुनौती
बिहार में मखाना उद्योग के सामने मौजूदा चुनौतियां
बिहार में सरकारी प्रयासों के बावजूद मखाना उद्योग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कई किसान अभी पुरानी तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिसके उपज कम होती है। कटाई और प्रसंस्करण में मशीनों की कमी से लागत बढ़ रही है। किसानों को बाजार तक सीधी पहुंच सीमित होने के कारण उचित मूल्य नहीं मिलता है। उचित भंडारण सुविधाएं न होने से मखाना की गुणवत्ता कमजोर रहती है। इसका सीधा असर किसानों की वित्तीय स्थिति पर पड़ता है।