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ज्वालामुखी से कैसे बनता है राख का बादल और इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?
ज्वालामुखी से बना राख का बादल पर्यावरण को करता है प्रभावित

ज्वालामुखी से कैसे बनता है राख का बादल और इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Nov 25, 2025
03:09 pm

क्या है खबर?

पूर्वी अफ्रीकी देश इथियोपिया के अफार क्षेत्र में 10,000 साल बाद अचानक फटे हेली गुब्बी ज्वालामुखी की राख का बादल सोमवार देर रात दिल्ली पहुंच गया और मंगलवार शाम तक इसके चीन पहुंचने की संभावना है। इसने हवाई सेवाओं को बुरी तरह से प्रभावित किया है। राख का बादल सबसे पहले पश्चिमी राजस्थान के ऊपर से भारत में पहुंचा था। आइए जानते हैं यह राख का बादल कैसे बनता है और इसका पर्यावरण पर क्या असर होता है।

विस्फोट

इथियोपिया में कैसे हुआ ज्वालामुखी विस्फोट?

इथियोपिया के इरिट्रिया बॉर्डर के पास अदीस अबाबा से करीब 800 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में मौजूद अफार इलाके में स्थित हेली गुब्बी ज्वालामुखी पिछले 10,000 सालों से शांत था। यह मृत या शांत ज्वालामुखी की श्रेणी में आता है। हालांकि, रविवार सुबह यह अचानक फट पड़ा। इस धमाके से निकली राख के मोटे गुबार आसमान में 14 किलोमीटर तक ऊपर उठ गए। यह ज्वालामुखी जियोलॉजिकली एक्टिव रिफ्ट वैली में है, जहां दो टेक्टोनिक प्लेट्स मिलती हैं।

सवाल

हेली गुब्बी ज्वालामुखी के राख के बादल में क्या-क्या हैं?

यह चट्टानों, खनिजों और ज्वालामुखीय कांच के बारीक, तीखे कणों से बना एक विशाल वायु बादल है। यह ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान उसमें मौजूद मैग्मा के सूक्ष्म टुकड़ों में बिखरने से बनता है। गर्म गैसें इन पदार्थों को ऊपर की ओर धकेलती हैं और हवाएं इन्हें धूल की तरह अत्यधिक ऊंचाई तक ले जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप राख कई दिनों या हफ्तों तक हवा में लटकी रहती है और वायुमंडलीय धाराओं के साथ लंबी दूरी तय करती है।

सफर

राख का बादल कैसे आगे बढ़ता है?

ज्वालामुखी के फटने के बाद उसमें फंसी गैसें तेजी से फैलती हैं और ऊपर उठते मैग्मा से दबाव छोड़ती हैं। बढ़ते दबाव के कारण एक विस्फोट होता है जो मैग्मा को छोटे-छोटे कणों में तोड़ देता है और उन्हें वायुमंडल में ऊपर उछाल देता है, जिससे एक 'विस्फोट प्लम' बनता है। ऐसा प्लम पृथ्वी से 15-20 किलोमीटर ऊपर तक पहुंच सकता है। बाद में, ऊपरी परतों तक पहुंचने के बाद राख का बादल शक्तिशाली हवाओं के साथ बह जाता है।

प्रभाव

ज्वालामुखी से बना राख का बादल पर्यावरण को कैसे करता है प्रभावित?

राख के बादल का एक शक्तिशाली प्रभाव यह है कि यह जेट इंजनों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है, क्योंकि यह पिघलकर टर्बाइन ब्लेड पर जम सकता है, जिससे इंजन फेल हो सकता है और हवाई यात्रा बाधित हो सकती है। इसका अगला प्रभाव हवा में SO2 के स्तर में बढोतरी करना है, जो हिमालय और नेपाल जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों को प्रभावित करता है, क्योंकि यह श्वसन तंत्र को परेशान कर सकता है।

अन्य

तेजाब की बारिश का भी बन सकता है कारण

ज्वालामुखी विस्फोट से बना राख का बादल जिन क्षेत्रों से यह गुजरता है, वहां का आसमान सामान्य से अधिक काला और धुंधला दिखाई देता है। इसके अलावा, ज्वालामुखी गैसों और वायुमंडल में नमी के बीच परस्पर क्रिया से प्रभावित क्षेत्रों में हल्की अम्लीय यानी तेजाब की बारिश होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे वनस्पति को भी नुकसान हो सकता है। ऐसे में यह राख का बादल पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ने में भूमिका निभाता है।

अलर्ट

उड़ानों के लिए अलर्ट जारी किया गया

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने तमाम चेतावनी के बाद सभी भारतीय विमानन कंपनियों के लिए तत्काल परामर्श जारी किया है। परामर्श के मुताबिक, "राख से प्रभावित क्षेत्रों और उड़ान के स्तर से सख्ती से बचना अनिवार्य है। पायलट इंजन के किसी असामान्य व्यवहार या केबिन गंध की तुरंत सूचना दें। डिस्पैच टीम रातभर NOTAM, ASHTAM और मौसम संबंधी अपडेट पर नजर रखें। एयरलाइनों को अपने परिचालन मैनुअल में सूचीबद्ध ज्वालामुखी-राख प्रक्रियाओं के बारे में चालक दल को जानकारी देना होगा।"