हिमालयी क्षेत्रों में क्यों अधिक भूस्खलन हो रहे, जानें विशेषज्ञों की राय
क्या है खबर?
मानसून ट्रफ अपनी सामान्य स्थिति से उत्तर की ओर बढ़ रहा है। इस गतिविधि से हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई दिनों से भारी बारिश हो रही है, जिसके कारण यहां भूस्खलन और अचानक बाढ़ की कई घटनाएं देखने को मिल रही हैं।
इन घटनाओं के लिए केवल बारिश ही जिम्मेदार नहीं, बल्कि अवैज्ञानिक तरीके से किये गए निर्माण कार्य भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।
आइए जानते हैं कि भूस्खलन की घटनाओं को लेकर भूवैज्ञानिकों की क्या राय है।
वैज्ञानिक
भूवैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र को लेकर क्या कहा?
देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक कलाचंद सेन ने हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि हिमालयी क्षेत्र भूगर्भीय रूप से काफी संवेदनशील हैं और यहां जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है।
उन्होंने कहा, "हिमालय के ढलान वाले अधिकांश क्षेत्रों में तापमान का असंतुलित चक्र मिट्टी के ऊपरी भाग को खराब कर रहा है, जिसके कारण भू-कटाव की घटनाएं बढ़ी हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में बहुत सारी मानवजनित गतिविधियों ने जोखिम को और बढ़ा दिया है।"
सेन
भूवैज्ञानिक बोले- हिमालयी क्षेत्र में दखल विनाशकारी साबित हो सकती है
सेन ने कहा, "हिमालयी क्षेत्र के संवेदनशील इलाकों में अल्पकालिक आर्थिक लाभ के लिए अगर मानदंडों का पालन नहीं किया गया तो यह बहुत विनाशकारी साबित हो सकता है।"
उन्होंने कहा, "हिमालय क्षेत्र में सभी प्रकार की मानवजनित गतिविधियों की इजाजत नहीं दी जा सकती। यह लोगों को स्पष्ट होना चाहिए। हम संभावित भूस्खलन वाले क्षेत्रों की पहचान करके इनका मानचित्र विकसित कर सकते हैं। इससे उन क्षेत्रों में ही निर्माण की स्वीकृति दी जा सकेगी, जो सुरक्षित हैं।"
सेन
हिमालय में चल रही है कई सतही गतिविधियां- सेन
सेन ने कहा कि हिमालय एक बहुत ही नई पर्वत श्रृंखला है और यहां बहुत सारी उपसतह और सतही गतिविधियां चल रही हैं, इसलिए भी भारी बारिश के कारण यहां भू-कटाव हो रहा है।
उन्होंने कहा कि हिमालय में चट्टानों और टेक्टोनिक प्लेट का टकराव कारण भू-गतिशीलता जोखिम को और बढ़ाता है। उन्होंने डाउनस्ट्रीम प्रभाव का हवाला देते हुए कहा कि जुलाई में दिल्ली में बारिश के कारण हिमाचल और उत्तराखंड में भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं हुईं।
शिमला
विशेषज्ञ बोले- आक्रामक निर्माण गतिविधियों से हो रहा भूस्खलन
वैश्विक आपदा जोखिम प्रबंधन फर्म RMSI के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पुष्पेंद्र जौहरी ने कहा कि अत्यधिक बारिश हुई है, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि हिमालयी राज्यों में बारिश हो रही है।
उन्होंने कहा, "डायनामाइट के उपयोग और अन्य आक्रामक निर्माण गतिविधियों ने भी ऊपरी मिट्टी को प्रभावित किया है। यही कारण है कि यहां भारी बारिश में कई भूस्खलन होते हैं। शिमला में भी यही स्थिति है, जहां बीते साले में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हुए हैं।"
निर्माण
सड़क निर्माण परियोजनाओं में पहाड़ी ढलानों को किया गया नजरअंदाज- विशेषज्ञ
RMSI के उपाध्यक्ष जौहरी ने कहा कि शिमला में सड़क निर्माण परियोजनाओं में पहाड़ी ढलानों के स्थिरीकरण को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है।
उन्होंने कहा, "परियोजना समर्थकों और निर्माण कंपनियों के लिए ढलानों को स्थिर करना और तैयार परियोजना को छोड़ने से पहले वृक्षारोपण करना अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। इसके अलावा इमारतों और घरों की नींव गहरी होनी चाहिए। हम देख रहे हैं कि हिमाचल में भवन संरचना के साथ ऊपरी मिट्टी भी खिसक रही है।"
सचिव
आपदा प्रबंधन को किया जाना चाहिए मजबूत- पूर्व सचिव पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय
जलवायु और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन ने नीति निर्माताओं से अच्छे विज्ञान और भविष्यवाणी क्षमता का उपयोग करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, "मानसून अपने कमजोर चरण के कारण हिमालय की तलहटी तक ही सीमित है। पहाड़ी क्षेत्र में मानसून में बहुत भारी बारिश होती है। ये तो होना ही है। हमें अत्यधिक भारी बारिश और लंबे समय तक सूखे दोनों के लिए तैयार रहना और आपदा प्रबंधन को मजबूत करना चाहिए।"