DCGI ने नजर का चश्मा हटाने का दावा करने वाली दवा पर लगाई रोक
नजर का चश्मा हटाने का दावा करने वाली आई ड्रॉप 'प्रेस्वू' पर बाजार में आने से पहले ही रोक लगा दी गई है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने इस दवा के उत्पाद और ब्रिकी के लिए दिया गया लायसेंस अगले आदेश तक रद्द कर दिया है। इस दवा को मुंबई स्थित एनटोड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड द्वारा बनाया गया था। कंपनी ने दावा किया था कि इसके नियमित इस्तेमाल ने नजर का चश्मा हट सकता है।
क्यों रद्द किया गया लायसेंस?
दवा के बारे में सोशल मीडिया पर किए गए दावों को लेकर CDSCO ने 5 सितंबर को कंपनी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। CDSCO ने कंपनी को जवाबों को पर्याप्त नहीं माना है। CDSCO ने कहा, "कंपनी के जवाब की समीक्षा करने के बाद यह स्पष्ट है कि वे प्रश्नों का पर्याप्त रूप से समाधान करने में विफल रहे हैं। कंपनी ने आवश्यक स्वीकृति प्राप्त किए बिना उत्पाद के लिए दावों को उचित ठहराने का प्रयास किया।"
अगले महीने बाजार में आने वाली थी दवा
4 सितंबर को भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने इस दवा को मंजूरी दी थी। खास बात है कि CDSCO की एक विषय विशेषज्ञ समिति (SEC) ने ही दवा की सिफारिश की थी, जिसके बाद DGCI ने इसे मंजूर किया था। इसके बाद कंपनी ने कहा था कि वो अक्टूबर, 2024 तक दवा को बाजार में उतारने की तैयारी कर रही है। कंपनी ने बताया था कि एक ड्रॉप की कीमत करीब 350 रुपये होगी।
दावे को लेकर क्या था विवाद?
कंपनी का कहना था कि ये दवा प्रेसबायोपिया से प्रभावित व्यक्तियों के लिए नजर के चश्मे पर निर्भरता को कम करने के लिए विकसित की गई है। प्रेसबायोपिया आमतौर पर 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। इसमें पास की चीजों को देखने में परेशानी होती है। दवा की एक बूंद 15 मिनट में काम शुरू कर देती है, जिसका असर 6 घंटे तक रहता है।
मंजूरी मिलने के बाद से ही विवादों में थी दवा
दवा को मंजूरी मिलने के बाद से ही डॉक्टरों ने इसके दावों पर सवाल उठाए थे। न्यूज18 से बात करते हुए सर गंगाराम हॉस्पिटल के ऑप्थेल्मोलॉजी विभाग के डॉक्टर तुषार ग्रोवर ने कहा, "दुनिया में ऐसा कोई आई ड्रॉप नहीं बना है, जो आंखों से चश्मे को स्थायी तरीके से हटा सके। इस ड्रॉप को डालने से लोगों को कुछ घंटों के लिए साफ नजर आ सकता है, लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं।"
न्यूजबाइट्स प्लस
चिकित्सा विज्ञान में प्रेसबायोपिया शब्द का इस्तेमाल आंखों के फोकस बदलने की क्षमता खो जाने के होता है। यह तब होता है, जब आंखों का प्राकृतिक लेंस उम्र बढ़ने के साथ कम लचीला हो जाता है। इससे पढ़ना या पास की चीजों को देखना पहले की तुलना में कठिन हो जाता है। प्रेसबायोपिया आमतौर पर 40 साल की आयु के आसपास विकसित होना शुरू होता है और 60 की उम्र तक बढ़ता चला जाता है।