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केरल में 'दिमाग खाने वाले' अमीबा से 19 मौतें; जानें लक्षण, उपचार और बचाव के तरीके
केरल में 'दिमाग खाने वाले अमीबा' से 19 मौतें हो गई हैं

केरल में 'दिमाग खाने वाले' अमीबा से 19 मौतें; जानें लक्षण, उपचार और बचाव के तरीके

लेखन आबिद खान
Sep 17, 2025
07:26 pm

क्या है खबर?

केरल में 'दिमाग को खाने वाले अमीबा' का कहर देखने को मिल रहा है। यह अमीबा शरीर में घुसकर सीधे दिमाग को निशाना बना रहा है। राज्य में इस साल अब तक 67 लोग इस संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं, जिनमें से 19 की मौत हो गई है। हालिया समय में बढ़ते मामलों के बीच सरकार ने अलर्ट जारी किया है। आइए इस संक्रमण के बारे में जानते हैं।

संक्रमण

क्या है ये संक्रमण?

चिकित्सकीय भाषा में इसे संक्रमण को अमीबिक मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहा जाता है। यह संक्रमण नेगलेरिया फाउलेरी नामक अमीबा के कारण होता है, जिसे आमतौर पर 'दिमाग खाने वाले अमीबा' के रूप में जाना जाता है। सीधे दिमाग को प्रभावित करने की वजह से इस संक्रमण से प्रभावित लोगों में मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती है। इसे गंभीर और दुर्लभ संक्रमण माना जाता है। आमतौर पर प्रभावित होने के बाद मरीज में बचने की संभावना कम होती है।

गंभीर

कितना घातक है संक्रमण?

केरल सरकार के मुताबिक, ये संक्रमण केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और दिमाग के ऊतकों को नष्ट कर देता है। इससे दिमाग में सूजन आ जाती है। आमतौर पर बच्चे, युवा और किशोर इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं। अमेरिकी रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (CDC) के अनुसार, "संक्रमित लोगों की लक्षण दिखने के 18 दिनों के भीतर मौत हो जाती है। मरीज पहले कोमा में चला जाता है और 5 दिन बाद मर जाता है।

लक्षण

क्या हैं लक्षण, शरीर में कैसे प्रवेश करता है अमीबा?

नेग्लेरिया फाउलेरी अमीबा आमतौर पर नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है और दिमाग तक पहुंच जाता है। इसके शुरुआती लक्षणों में सिरदर्द, बुखार, मतली और उल्टी शामिल हैं। बाद में मरीज की गर्दन में अकड़न हो सकती है और उसे मतिभ्रम का अनुभव होने लगता है और धीरे-धीरे कोमा में चला जाता है। लक्षण एक से 9 दिनों के बीच दिखाई दे सकते हैं और उनकी तीव्र शुरुआत कुछ घंटों से लेकर 1-2 दिन में हो सकती है।

केरल

कैसे फैलता है अमीबा?

ज्यादातर मामले केरल के अलप्पुझा, मलप्पुरम, कोझीकोड और त्रिशूर में सामने आए हैं। आमतौर पर इसके ज्यादातर मरीज वे हैं, जो स्थिर और मीठे पानी में नहाए थे। अभी तक अमीबा के इंसानों से इंसानों में फैलने के कोई सबूत नहीं हैं। भारत में PAM का पहला मामला 1971 और केरल में 2016 में सामने आया था। पिछले साल भी केरल में PAM के 36 मामले सामने आए थे और 9 मौतें हुई थीं।

इलाज

क्या है इलाज?

वैज्ञानिक अभी तक इस बीमारी का कोई प्रभावी इलाज नहीं खोज पाए हैं। फिलहाल डॉक्टर एम्फोटेरिसिन, एजिथ्रोमाइसिन, फ्लुकोनाजोल और डेक्सामेथासोन जैसी दवाओं से इसका इलाज करते हैं। केरल सरकार ने कहा है कि सैद्धांतिक रूप से सर्वोत्तम उपचार में एक अमीबानाशक दवा या दवाओं का संयोजन शामिल होना चाहिए, जिसमें अच्छी इन-विट्रो गतिविधि हो और जो रक्त-मस्तिष्क अवरोध को पार करने में सक्षम हो। इस बीमारी के लिए कोई वैक्सीन भी उपलब्ध नहीं है।