असम: बोडो समझौते पर हुए हस्ताक्षर, जानिए क्या था अलग राज्य की मांग का ये मामला
क्या है खबर?
केंद्र और असम सरकार ने आज अलग बोडोलैंड की मांग करने वाले समूहों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए।
राज्य में दशकों से चल रहे संघर्ष को खत्म करने वाला ये त्रिपक्षीय समझौता प्रतिबंधित संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) और ऑल बोडो स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ABSU), असम सरकार और भारत सरकार के बीच हुआ है।
समझौते के समय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल मौजूद रहे।
समझौता
क्या है समझौते में?
ये पहली बार है जब अलग बोडोलैंड की मांग से संबंधित सभी संगठनों ने किसी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
इसके तहत बोडो समुदाय को 1,500 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज दिया गया है। बोडो समुदाय को 'पहाड़ी जनजाति' का दर्जा भी दिया जाएगा।
वहीं देवनागरी लिपि के साथ बोडो भाषा को पूरे असम की सहायक आधिकारिक भाषा बनाया गया है।
अलग राज्य की मांग के लिए हथियार उठाने वाले बोडो लोगों के प्रति सरकार नरम रुख अपनाएगी।
विकास
इलाके के विकास में होगा फंड का इस्तेमाल
समझौते के तहत बोडो इलाके के विकास के लिए जो 1,500 करोड़ रुपये दिए गए हैं उनमें असम सरकर और भारत सरकार आधा-आधा हिस्सा देंगे। असम सरकार अपना हिस्सा तीन साल में 250-250 करोड़ रुपये की किस्तों में देगी।
इस फंड का इस्तेमाल इलाके में उद्योग लगाने, रोजगार पैदा करने और ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने में किया जाएगा।
इसके अलावा उपेंद्रनाथ ब्रह्मा के नाम पर एक केंद्रीय यूनिवर्सिटी और एक राष्ट्रीय खेल यूनिवर्सिटी भी बनाई जाएगी।
जानकारी
इन योजनाओं पर भी होगा काम
इसके अलावा बोडो इलाके में एक मेडिकल इंस्टीट्यूट, एक होटल मैनेजमेंट कैंपस, एक मदर डेयरी प्लांट और एक NIT भी खोली जाएगी। इसके अलावा इलाके में नवोदय विद्यालयों की संख्या भी बढ़ाई जाएगी।
बयान
अमित शाह ने बताया ऐतिहासिक समझौता
समझौते पर हस्ताक्षर के समय मौजूद रहे गृह मंत्री अमित शाह ने इसे ऐतिहासिक समझौता बताया है।
उन्होंने कहा, "यह समझौता असम के लिए और बोडो लोगों के लिए एक सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करेगा। गृह मंत्री होने के नाते में सभी को आश्वस्त करता हूं कि सभी वादों को समय पर पूरा करने में कोई कसर नहीं छो़ड़ी जाएगी।"
उन्होंने बताया कि समझौते के तहत लगभग 1,550 बंदूकधारी कैडर 130 हथियारों के साथ 30 जनवरी को आत्मसमर्पण करेंगे।
पृष्ठभूमि
कौन हैं बोडो और क्या थी उनकी समस्या?
बोडो असम की सबसे बड़ी जनजाति है और ये बोडो भाषा बोलते हैं।
बोडो समुदाय उन पर असमी भाषा और संस्कृति थोपने का विरोध करता रहा है और बोडो लोगों के लिए स्वायत्त इलाके से शुरू हुई उनकी मांग एक समय अलग राज्य 'बोडोलैंड' की मांग तक पहुंच गई थी।
1980 के दशक में उपेंद्र ब्रह्मा के नेतृत्व में ABSU अपनी मांग को जोर-शोर से उठाने और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में कामयाब रहा।
जानकारी
1993 में ABSU के साथ हुआ था बोडो समझौता
1990 में ब्रह्मा की मौत के बाद ABSU का नेतृत्व कमजोर होता चला गया और 1993 में उसने तत्कालीन केंद्र सरकार और असम सरकार के साथ एक समझौता किया।
इस समझौते के तहत 2,200 गांवों का बोडोलैंड स्वायत्त परिषद (BAC) बनाया गया और इसे स्थानीय इलाके से संबंधित वित्तीय शक्तियां दी गईं।
हालांकि कानून व्यवस्था, सुरक्षा और आमदनी संबंधित मामलों में इसे कोई अधिकार नहीं दिए गए।
बदले में ABSU की सैन्य इकाई ने आत्मसमर्पण किया।
जानकारी
बोडो सिक्योरिटी फोर्स ने किया था समझौते का विरोध, बाद में बना NDFB
उग्रवादी संगठन बोडो सिक्योरिटी फोर्स (BSF) ने इस समझौते का विरोध किया था और तभी से सरकार के खिलाफ हथियार उठा रखे थे। बाद में इसने अपना नाम बदल कर NDFB रख लिया, जिसने आज सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।