ईशा फाउंडेशन को बड़ी राहत, सुप्रीम कोर्ट ने 'महिलाओं को बंधक' बनाने वाला मामला बंद किया
सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने 2 लड़कियों के पिता द्वारा दायर मामले को रद्द कर दिया है, जिसमें पिता ने अपने बेटियों को आक्षम में बंधक बनाए जाने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट के लिए इस तरह की याचिका पर जांच का आदेश देना पूरी तरह अनुचित था। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इस फैसले का असर केवल इसी मामले तक रहेगा।
क्या है मामला?
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि आश्रम में उनकी 2 बेटियों को बंधक बनाकर रखा गया है। कामराज ने कहा था कि ईशा फाउंडेशन ने उनकी बेटियों का ब्रेनवॉश किया, जिसके कारण वे संन्यासी बन गईं और उन्हें विशेष भोजन और दवा दी जा रही है, जिससे उनकी सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो गई है।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा, "पिता की याचिका गलत है, क्योंकि दोनों लड़कियां बालिग हैं और वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। 8 साल पहले मां ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, अब पिता ने दायर की है। हाई कोर्ट ने दोनों बच्चों को पेशी के लिए बुलाया है। दोनों महिलाओं से बात कर उनका बयान दर्ज किया गया है। उनका कहना है कि वे मर्जी से रह रही हैं, जिसके बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंद करनी होगी।"
पुलिस ने कहा- परिजनों के संपर्क में हैं बेटियां
तमिलनाडु पुलिस ने भी मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया। इसमें पुलिस ने कहा, "आश्रम में लोगों को बंधक बनाकर रखने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। इस मामले के संबंध में पुलिस ने पाया कि भिक्षु स्वेच्छा से रह रहे हैं और माता-पिता से नियमित संपर्क में हैं। 2024 में उनके बीच 10 बार फोन पर बात हुई। भिक्षुओं ने पुलिस से कहा कि वे भिक्षुत्व के मार्ग पर योग केंद्र में खुशी से रह रहे हैं।"
पुलिस ने और क्या-क्या जानकारी दी?
पुलिस के मुताबिक, बीते 15 सालों में ईशा फाउंडेशन के नजदीकी पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी के 6 मामले दर्ज किए, जिनमें से एक में लापता व्यक्ति का पता नहीं चल पाया। पिछले 15 सालों में CrPC की धारा 174 के तहत 7 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 2 मामले फोरेंसिक लैब रिपोर्ट के अभाव में जांच के दायरे में हैं। पुलिस ने कहा कि कई भुक्षियों ने पूछताछ के दौरान कहा कि वे स्वेच्छा से रह रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी जांच पर रोक
मद्रास हाई कोर्ट ने 30 सितंबर को कहा था कि पुलिस ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी आपराधिक मामलों की जानकारी सौंपे। हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता के आरोपों की जांच होनी चाहिए, क्योंकि सच जानना बेहद जरूरी है। इसके अगले दिन करीब 150 पुलिसकर्मी आश्रम में जांच करने पहुंचे थे। आश्रम ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच पर रोक लगा दी थी।