#NewsBytesExplainer: भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म 'पथेर पांचाली' कैसे बनी? जानिए पूरी कहानी
फिल्म 'पथेर पांचाली' ने भारतीय सिनेमा को एक नई शैली और दृष्टिकोण से परिचित कराया। इसी के साथ शुरू हुआ प्रसिद्ध फिल्मकार सत्यजीत रे का फिल्मी सफर और यही वो फिल्म थी, जिसे बनाने के लिए उन्होंने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। आज इस फिल्म काे याद करने की खास वजह यह है कि इसकी उम्र अब 68 साल हो चली है। 26 अगस्त के दिन फिल्म दर्शकों के बीच आई थी। आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
रे को पहली फिल्म ने दिलाई अंतरराष्ट्रीय ख्याति
'पथेर पांचाली' भारतीय सिनेमा के महान फिल्मकार सत्यजीत रे के करियर की पहली फिल्म थी और दिलचस्प बात यह है कि अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने न सिर्फ देश, बल्कि दुनियाभर में खूब नाम कमा लिया था। जब यह फिल्म बनी थी तो ना आज की तरह सुविधा थी और ना ही फिल्मकार के पास उतना पैसा था। बावजूद इसके आज भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री एक भी ऐसी फिल्म नहीं पाई है, जो 'पथेर पांचाली' की टक्कर ले सके।
कहां से आया 'पथेर पांचाली' का विचार?
रे शुरुआत में ब्रिटिश विज्ञापन एजेंसी में बतौर जूनियर विजुअलाइजर काम करते थे। इसी दौरान उन्हें विभूति भूषण बंदोपाध्याय के उपन्यास 'पथेर पांचाली' को चित्रित करने का मौका मिला। इस उपन्यास ने उनके दिल में एक गहरी छाप छोड़ी थी। इसी बीच रे ने फिल्म बनाने की ठानी थी। 1950 में रे लंदन चले गए थे। वहां उन्होंने करीब 100 फिल्में देखीं। उन फिल्मों को देख वह इतने प्रभावित हुए कि उनके मन में निर्देशक बनने की इच्छा जाग उठी।
भारत लौटने तक तैयार किया फिल्म का खाका
विदेश में अपने 6 महीनों के प्रवास दौरान रे ने इतालवी फिल्म निर्देशक विटोरियो डी सिका की 'द बायसाइकल थीफ' सहित कई फिल्में देखीं, जिसने उन पर गहरा प्रभाव डाला। इसने उनका विश्वास बढ़ाया कि नवोदित कलाकारों और वास्तविक स्थानों पर शूटिंग के साथ यथार्थवादी सिनेमा बनाना संभव है। 1950 के अंत में जब उन्होंने भारत वापसी की यात्रा की, तब तक उन्होंने 'पथेर पांचाली' का पूरा खाका तैयार कर लिया था। तकनीशियनों का काम उन्होंने अपने दोस्तों को दिया।
2 साल तक चली निर्माता की खोज
रे की फिल्म पर कोई भी निर्माता पैसे लगाने को तैयार नहीं था। निर्माता की तलाश में 2 साल गुजर गए। थक-हारकर उन्होंने खुद फिल्म पर पैसे लगाए। फिल्म के लिए रे ने अपनी पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए। अपनी बीमा पॉलिसी बेची और दोस्तों-रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए। वह रविवार को शूट करते थे, क्योंकि तब भी विज्ञापन एजेंसी में काम कर रहे थे। 1953 में रे को निर्माता राणा दत्ता मिले, जिन्होंने उनकी थोड़ी मदद की।
अंत में कैसे हुई पैसों की व्यवस्था?
बिना तनख्वाह के रे ने अपने काम से 1 महीने की छुट्टी ली और फिल्म की शूटिंग शुरु कर दी। पैसों की कमी के चलते कई बार शूटिंग रुकी। करीब 4 हजार फीट बनी फिल्म को जितने भी निर्माताओं को रे ने दिखाया, सभी ने ठेंगा दिखा दिया। फिर आखिरकार किसी की सलाह से पश्चिम बंगाल सरकार से संपर्क किया गया और पैसों की व्यवस्था हुई। इसके बाद फिल्म बनकर तैयार हुई और 26 अगस्त, 1955 को पर्दे पर आई।
नेहरू हो गए थे मंत्रमुग्ध
26 अगस्त, 1955 में जब 'पथेर पांचाली' कोलकाता में रिलीज हुई तो 2 हफ्ते मामूली प्रदर्शन किया, लेकिन तीसरे हफ्ते फिल्म की कमाई में उछाल आया और सिनेमाघर दर्शकों से खचाखच भर गए। जब स्पेशल स्क्रीनिंग में फिल्म देश के प्रधानमंत्री रहे जवाहरलाल नेहरू ने देखी तो वह इतने प्रभावित हुए कि आधिकारिक प्रविष्टि के रुप में फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाए जाने की व्यवस्था की, जहां फिल्म ने 'बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट' का विशेष पुरस्कार जीता।
कहानी और कलाकार
जरूरत, शर्म और इज्जत, ये शब्द मिलकर इस फिल्म को बनाते हैं। इसमें इंसानी जरूरतों और उससे उत्पन्न लाचारी की झलक मिलती है। एक गरीब परिवार के जीवन को दर्शाती इस फिल्म में सुबीर बनर्जी, कानु बनर्जी, करुणा बनर्जी और उमा दासगुप्ता जैसे कलाकार थे।
कई दिग्गज हस्तियों ने पढ़े फिल्म की तारीफ में कसीदे
ब्रिटिश फिल्म इतिहासकार पनैलपी ह्यूस्टन ने 'पथेर पांचाली' देख 1963 में कहा था, "रे का सिनेमा ही आगे चलकर भारत का सिनेमा होगा।" जापान के महान निर्देशक अकिरा कुरोसावा ने कहा, "रे की फिल्में ना देखना ऐसा है, जैसे आप बिना चांद और सूरज को देखे दुनिया से चले जाएं।" क्रिस्टोफर नोलन ने कहा, "मुझे 'पथेर पांचाली' देखने का मौका मिला। ये फिल्म कला का बेहतरीन नमूना है। ये अब तक बनाई गईं सभी फिल्मों में सबसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म है।"
फिल्म ने देश-विदेश में जीते ढेरों पुरस्कार
'पथेर पांचाली' को वैंकूवर फिल्म समारोह में 5 पुरस्कार मिले थे। हालांकि, इससे पहले ही यह कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ चुकी थी। कान्स सहित गोल्डन ग्लोब जैसे कई बड़े पुरस्कार इसे पहले ही मिल चुके थे। दुनियाभर की कालजयी फिल्मों में 'पथेर पंचाली' ने कई बार अपना नाम दर्ज कराया। टाइम मैगजीन ने पिछले दिनों बीते 100 सालों की दुनिया की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची जारी की। उसमें भी भारत की सिर्फ यही फिल्म शामिल थी।