निराश करती है अभिषेक बच्चन की फिल्म 'द बिग बुल', पढ़िए रिव्यू
क्या है खबर?
डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई कूकी गुलाटी के निर्देशन में बनी फिल्म 'द बिग बुल' के प्रोडक्शन का काम अजय देवगन और आनंद पंडित ने संभाला है।
फिल्म का दारोमदार अभिषेक बच्चन उर्फ हेमंत शाह के कंधों पर है, जिसे अपने सपनों की ताबीर शेयर बाजार में नजर आती है।
1992 के 5,000 करोड़ के स्टॉक मार्केट घोटाले से प्रेरित इस फिल्म में किरदार भले ही बदल गए पर कहानी वही है।
आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
स्क्रिप्ट
कैसी है फिल्म की कहानी?
'द बिग बुल' हेमंत शाह नाम के आदमी की कहानी है, जो रईस बनना चाहता है और 9 से 6 की नौकरी करके उब चुका है।
पैसे कमाने की होड़ में वह देश का सबसे बड़ा स्टॉक ब्रोकर बन जाता है।
हालांकि, जब तिजोरी भरने के लिए इस्तेमाल किए गए हेमंत के हथकंडे सामने आते हैं तो उसके पतन की कहानी शुरू हो जाती है और शेयर मार्केट के शहशांह का अंत एक बुरे सपने पर जाकर खत्म होता है।
मौका
...जब हेमंत के हाथ लगती है शेयर बाजार की बड़ी टिप
हेमंत शाह मुंबई की एक चॉल में रहता है, जिसके सपने आसमान छू लेने जैसे हैं। वह एक लड़की से प्यार करता है, पर लड़की का पिता कई शर्ते उसके सामने रख देता है।
सपने और प्यार को पाने की उसकी चाह को हवा तब मिलती है, जब एक दिन शेयर मार्केट की बड़ी टिप उसके हाथ लगती है।
इसके बाद क्या होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
एक्टिंग
ठीक-ठाक रहा अभिषेक का अभिनय
'द बिग बुल' एक अभिनेता के तौर पर अभिषेक को आगे ले जाने का एक प्रयास है।
फिल्म देखने के बाद आप यह भी नहीं कहेंगे कि अभिषेक ने अपने किरदार के लिए मेहनत नहीं की, पर फिल्म में कई जगह अभिषेक का अभिनय लड़खड़ाता दिखाई देता है।
इस फिल्म में अभिषेक को ही चौके-छक्के लगाने थे। पूरा मैदान उनके लिए खाली था। ऐसे में वह चाहते तो अपने किरदार को और गहराई से निभा सकते थे।
अभिनय
कैसा रहा अन्य कलाकारों का काम?
इलियाना डिक्रूज ने यूं तो फिल्म में पत्रकार मीरा राव की भूमिका निभाई है, पर उन्हें देख पत्रकार वाली फीलिंग नहीं आई।
हेमंत के भाई बने विरेन यानी सोहम शाह ने भी अपने किरदार का सुर नहीं पकड़ा।
हेमंत की प्रमिका और पत्नी के किरदार में निकिता दत्ता बेशक खूबसूरत लगीं, पर उनका भी असल किरदार पीछे छूट गया।
दूसरी तरफ सौरभ शुक्ला, राम कपूर और समीर सोनी के लिए फिल्म में करने के लिए कुछ था ही नहीं।
निर्देशन
क्या निर्देशन की कसौटी पर खरे उतरे कूकी गुलाटी?
निर्देशक कूकी गुलाटी फिल्म की भारी-भरकम कहानी को बड़ी ही खूबसूरती से ढाई घंटे में परोसने में में सफल रहे, जो कि एक कठिन काम था।
एक आम आदमी की यह कहानी आपको आकर्षित तो करेगी, पर यह इससे कहीं बेहतर हो सकती थी, बशर्ते अगर पटकथा में थोड़ी मेहनत और की जाती। साथ ही फिल्म की कास्टिंग भी थोड़ा सूझ-बूझ से होती।
फिल्म में अगर वास्तविकता पर ज्यादा ध्यान दिया जाता तो यह और बढ़िया हो सकती थी।
जानकारी
औसत है फिल्म का संगीत
फिल्म को संगीत संदीप शिरोडकर ने दिया है, जो कि औसत है। सही मायने में देखा जाए तो फिल्म में जो इक्के-दुक्के गाने हैं, वो सिर्फ कहानी से ध्यान भंग करते हैं। ऐसा लग रहा है कि फिल्म में जबदरस्ती गानों को ठूंसा गया है।
समीक्षा
देखें या ना देखें?
अगर आप इस कहानी से नावाकिफ हैं तो यह फिल्म देख सकते हैं।
हालांकि, फिल्म देखने के बाद आप सोचेंगे कि हेमंत हीरो था या विलेन या वह ऐसा आदमी था, जो केवल एक अच्छी जिंदगी जीना चाहता था।
फिल्म के प्रमोशन में कहा गया था कि 'कल से बड़ा सोचो', पर बड़ा सोचने पर क्या कोई हेमंत जैसा अंजाम चाहेगा? यह फिल्म ऐसे ही कई सवाल छोड़ गई।
हमने इस फिल्म को पांच में से डेढ़ स्टार दिए हैं।