सतीश कौशिक: हरियाणा के छोटे से गांव से निकल बॉलीवुड पहुंचने तक, जानिए अभिनेता का सफरनामा
हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार सतीश कौशिक भले ही आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन अपने प्रशंसकों के दिलों में अपनी फिल्मों और सरल स्वभाव के जरिए वह हमेशा जिंदा रहेंगे। न सिर्फ उन्होंने एक शानदार अभिनेता और कॉमेडियन बनकर दर्शकों का दिल जीता, बल्कि बतौर निर्देशक भी कई बेहतरीन फिल्में दीं। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के छोटे से गांव धनौंदा में 13 अप्रैल, 1956 को जन्मे सतीश का फिल्मी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। उनके सफरनामा पर एक नजर।
बॉलीवुड का सपना देखा और साकार भी किया
सतीश ने 1972 में दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से ग्रेजुएशन की। वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा और फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के छात्र भी रहे। बॉलीवुड में करियर शुरू करने से पहले उन्होंने थिएटर में काम किया। उन दिनों ग्रामीण पृष्ठभूमि के युवाओं के लिए बॉलीवुड का सपना देखना भी गनीमत होता था। सतीश ने इसे साकार कर दिखाया। कालेज की पढ़ाई के दिनों में गांव में अकेले सतीश थे, जो उस समय अंग्रेजी समाचार पत्र पढ़ते थे।
1979 में मायानगरी का किया रुख
अगस्त 1979 में सतीश मुंबई चले गए, उस समय उनकी उम्र 41 साल थी। सतीश के पिता हैरिसन लॉक्स में बतौर सेल्समैन कार्य करते थे। उस समय महेंद्रगढ़ जिला काफी कमजोर स्थिति में था। हरियाणा में हिंदी फिल्मों को लेकर ज्यादा क्रेज भी नहीं था। इन परिस्थितियों में सतीश के लिए बालीवुड में करियर चुनना अपने आप में बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती को न केवल उन्होंने स्वीकार किया, बल्कि अदाकारी के आसमान में खुद को प्रकाशमान कर दिखाया।
फिल्मों में आने से पहले की कैशियर की नौकरी
फिल्मों में अपनी जगह बनाने के लिए सतीश को काफी पापड़ बेलने पड़े। यहां तक की मुंबई में गुजर-बसर करने के लिए उन्होंने कैशियर की नौकरी भी की। फिल्में नहीं मिलीं, इसलिए उन्होंने कैशियर की नौकरी ढूंढ़ ली, जिसके लिए सतीश को महीने के 400 रुपये मिलते थे। सुबह काम पर चले जाते सतीश शाम को काम से वापस आने के बाद सीधा पृथ्वी थिएटर पहुंचते थे। यहीं से फिल्म जगत से जुड़े लोगों के साथ उनका संपर्क बनने लगा।
1983 में फिल्मी दुनिया में पहला कदम
1983 में आई शेखर कपूर की फिल्म 'मासूम' से बतौर सहायक निर्देशक उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपना सफर शुरू किया। उसी साल आई फिल्म 'जाने भी दो यारों' से भी वह बतौर सहायक निर्देशक जुड़े और यही वो फिल्म थी, जिसके जरिए उन्होंने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की। सतीश ने 1993 में फिल्म 'रूप की रानी चोरों का राजा' से बतौर निर्देशक बॉलीवुड में अपना सफर शुरू किया। यह फिल्म फ्लॉप रही, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
अपनी लाजवाब कॉमेडी से बने सबके चहेते
अपने करियर में सतीश ने करीब 100 फिल्मों में काम किया। उनमें प्रतिभा कूट-कूटकर भरी हुई थी। वह अपनी शानदार कॉमेडी के लिए प्रशंसकों के मुरीद रहे। फिल्म अभिनेता के रूप में उन्हें 1987 में आई फिल्म 'मिस्टर इंडिया' के किरदार 'कैलेंडर' से पहचान मिली थी। इसके बाद उन्होंने 1997 में 'दीवाना मस्ताना' में पप्पू पेजर का किरदार निभाया था। सतीश ने फिल्म 'राम-लखन' और 'साजन चले ससुराल' के लिए दो बार बेस्ट कॉमेडियन का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता था।