फिल्म 'पटना शुक्ला' रिव्यू: रवीना टंडन का दिखा दम, पर कहानी रह गई कम
क्या है खबर?
विवेक बुड़ाकोटी के निर्देशन में बनी 'पटना शुक्ला' पिछले कुछ दिनों से चर्चा में थी। फिल्म में रवीना टंडन मुख्य भूमिका में है और दिवंगत अभिनेता सतीश कौशिक भी इस फिल्म का हिस्सा हैं।
अरबाज खान के प्रोडक्शन में बनी इस फिल्म का ट्रेलर दर्शकों को काफी पसंद आया था और तभी से दर्शक फिल्म की रिलीज की राह देख रहे थे। अब आखिरकार 29 मार्च को फिल्म डिज्नी+ हॉटस्टार पर स्ट्रीम हो गई है।
आइए जानें कैसी है फिल्म।
कहानी
परीक्षा में हुए झोल की कहानी
कहानी परीक्षा में हुए एक घोटाले की है, जिसमें रवीना वकील तन्वी शुक्ला की भूमिका में हैं, जो छोटे-मोटे मामले सुलझाती हैं।
उसकी वकालत की डिग्री की कोई कद्र नहीं करता। उसका खुद का पति भी उसे हल्के में लेता है।
उसे लगता है कि उसकी पत्नी बस पकौड़े बनाना जानती है, लेकिन जब एक गरीब छात्रा उसके पास अपना एक केस लेकर आती है तो तन्वी साबित कर देती है कि वो 'घर की मुर्गी दाल बराबर' नहीं है।
कहानी
न्याय की लड़ाई और शिक्षा में घोटाले का काला सच
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे पैसे देकर लोग विहार विश्वविद्यालय से मार्कशीट बदल लेते हैं, जिसका खामियाजा एक गरीब छात्रा रिंकी कुमारी (अनुष्का कौशिक) को भुगतना पड़ता है।
रिंकी को न्याय दिलाने में तन्वी अपनी जान झोंकती दिखती है। उसका घर टूट जाता है, पति की नौकरी छीन जाती है, लेकिन वह अन्याय से दबी आवाज के लिए लड़ना नहीं छोड़ती।
अब तन्वी ये केस जीत पाती है या नहीं, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
अभिनय
अभिनय के इम्तिहान में अव्वल अंकों से पास रवीना
मां, बेटी, पत्नी और एक वकील की भूमिका रवीना ने अदाकारी की लंबी लकीर खींच दी है। उधर सतीश फिल्म में एक याद की तरह हैं और जज के रूप में उनकी अदाकारी आंखें नम कर जाती हैं।
रवीना के पति बने मानव विज और अनुष्का का अभिनय काबिल-ए-तारीफ है।
उधर भ्रष्ट नेता के रूप में जतिन गोस्वामी ने भी अपने किरदार के साथ पूरा इंसाफ किया है, लेकिन इन सब कलाकारों के बीच रवीना इस फिल्म की रीढ़ हैं।
निर्देशन
यहां चूके निर्देशक
विवेक बुड़ाकोटी ने निर्देशन की कमान संभाली है और कहानी भी उन्हीं की कलम से निकली है।
उन्होंने रोल नंबर की हेरा फेरी और परीक्षा के परिणाम में हुई धांधली का मुद्दा बढ़िया चुना, लेकिन कहानी पर उनकी पकड़ बड़ी ढ़ीली रही। मतलब ये कि फिल्म को जैसे-तैसे बड़ी सरलता से पर्दे पर परोस दिया गया।
अगर इसे मनोरंजक अंदाज में पेश किया जाता या थोड़ा-बहुत ड्रामा या ट्विस्ट फिल्म में डाले गए होते तो इसे देखने में मजा आजा।
खामियां
कमियां ये भी खलती हैं
रवीना ने बेशक साबित कर दिया कि फिल्म चलाने के लिए 'एक बंदी ही काफी' है, लेकिन तन्वी शुक्ला से वो जिस तरह से 'पटना शुक्ला' बनती हैं, उनके किरदार में वो 'क्रांति' की कमी कहीं न कहीं खलती है। उनकी भाषा पर भी निर्देशक ने ज्यादा काम नहीं किया।
कहानी और लेखन में गहराई की कमी अहम मुद्दे पर बनी 'पटना शुक्ला' को पटरी से उतार देती है।
फिल्म समझ में तो आती है, लेकिन गहराई में नहीं उतरती।
जानकारी
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
लगभग ढाई घंटे की इस फिल्म का संगीत कुछ खास नहीं है। सैम्युल शेट्टी और आकांक्षा नंद्रेकर के संगीत निर्देशन में बना कोई भी ऐसा गाना नहीं है, जो याद रह जाए या जिसे आप गुनगुनाते रह जाएं। सिनेमैटोग्राफर ने अपना काम ठीक-ठाक किया है।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- देखिए ये फिल्म कई छात्र-छात्राओं की जिंदगी की कहानी बयां करती है। यह खासकर उनके लिए है, जिन्हें लगता है उनके नंबर अच्छे आने चाहिए, लेकिन वो परीक्षा में हुई धांधली का शिकार हो जाते हैं। ये फिल्म इसी मुद्दे को छूती है। फिल्म को देखने की सबसे बड़ी वजह रवीना हैं, जिनका एक-एक दृश्य दर्शनीय है।
क्यों न देखें?- अगर आप मनोरंजन के मकसद से फिल्म देखने वाले हैं तो इससे दूर ही रहिए।
न्यूजबाइट्स स्टार- 2.5/5