'रश्मि रॉकेट' रिव्यू: महिला खिलाड़ियों के 'जेंडर टेस्ट' पर तमाचा है तापसी की यह फिल्म
फिल्म 'रश्मि रॉकेट' का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था, जो आखिरकार आज यानी 15 अक्टूबर को खत्म हो गया है। फिल्म दशहरे के खास मौके पर ZEE5 पर रिलीज हो गई है। फिल्म में तापसी पन्नू , प्रियांशु पैन्यूली, अभिषेक बनर्जी, सुप्रिया पिलगांवकर, सुप्रिया पाठक और श्वेता त्रिपाठी जैसे कलाकारों ने अहम भूमिका निभाई है। आकर्ष खुराना के निर्देशन में बनी इस फिल्म के निर्माता रॉनी स्क्रूवाला हैं। आइए जानते हैं कैसी है 'रश्मि रॉकेट'।
एक तेज-तर्रार धावक की कहानी है 'रश्मि रॉकेट'
फिल्म की कहानी गुजरात के कच्छ में पैदा हुई और पली-बढ़ी रश्मि वीरा (तापसी पन्नू) की है, जो बचपन से ही दौड़ने में तेज है। उसकी मुलाकात होती है एक आर्मी अफसर गगन ठाकुर (प्रियांशु पैन्यूली) से। दोनों के बीच प्रेम कहानी, नोक-झोंक दिखाई देती है, लेकिन मुद्दे की बात तब होती है, जब गगन, रश्मि को एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में शामिल होने के लिए प्रेरित करता है। इसके बाद रश्मि प्रदेश से लेकर देश और फिर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीतती है।
एथलेटिक्स एसोसिएशन की साजिश का शिकार हो जाती है रश्मि
कहानी में मोड़ आता है, जब रश्मि एथलेटिक्स एसोसिएशन के षड्यंत्र का शिकार हो जाती है। उसकी रॉकेट रफ्तार देख उसका जेंडर टेस्ट (लिंग परीक्षण) कराया जाता है। रश्मि के रक्त में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन की मात्रा पुरुष एथलीटों से भी अधिक है, जिसके बाद उस पर बैन लग जाता है। अब रश्मि समाज से हारकर दौड़ना बंद कर देगी या खुद को महिला साबित करने के लिए अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
तापसी ने फूंक दी अपने किरदार में जान
'रश्मि रॉकेट' से तापसी ने फिर इस बात का सबूत दे दिया है कि वह बॉलीवुड में लंबी रेस की धावक हैं। उन्होंने महिला खिलाड़ियों के साथ होने वाले अन्याय और खेलों में प्रचलित जेंडर टेस्ट जैसी सालों पुरानी परम्परा के खिलाफ लड़ाई बखूबी लड़ी। फिल्म में तापसी का बस एक ही मूलमंत्र है, "हार जीत तो परिणाम है, कोशिश हमारा काम है।" फिल्म देखने के बाद आप भी यही कहेंगे कि तापसी के अभिनय का कोई तोड़ नहीं।
अभिषेक बनर्जी ने भी जीता दिल
फिल्म में प्रियांशु पैन्यूली ने एक फिलर का काम किया है। अभिनेत्री श्वेता त्रिपाठी असरदार लगीं। सुप्रिया पाठक का गुजराती अंदाज प्रभावित करता है, वहीं जज की भूमिका में सुप्रिया पिलगांवकर भी सटीक काम कर गईं। हालांकि, तापसी के साथ कदम से कदम मिलाए अभिनेता अभिषेक बनर्जी ने, जिन्होंने फिल्म के सेकेंड हाफ में एंट्री की। वकील के किरदार को अभिषेक ने ऐसे निभाया, मानो उन्होंने असल में वकालत की हो। फिल्म के अंत तक उनका जलवा बरकरार रहता है।
कैसा रहा फिल्म का निर्देशन?
'TVF ट्रिपलिंग' और 'मिसमैच्ड' जैसी बेहतरीन वेब सीरीज बना चुके आकर्ष खुराना अपनी इस फिल्म के निर्देशन की कसौटी पर खरे उतरे हैं। खास बात यह है कि वह एक ऐसे विषय पर फिल्म लेकर आए हैं, जिसे इससे पहले कभी किसी ने नहीं छुआ। खेल में घुसी राजनीति पर निर्देशक ने बखूबी बात की। आकर्ष ने महिला खिलाड़ियों की जेंडर टेस्टिंग का मुद्दा तो उठाया ही, साथ-साथ कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए और उनके जवाब भी दर्शकों को दिए।
फिल्म कहां निराश करती है?
फिल्म में कुछ खामियां हैं। शुरुआत में यह बहुत धीमी चलती है। फर्स्ट हाफ आपको बोझिल लग सकता है। हालांकि, सेकेंड हाफ में फिल्म रफ्तार पकड़ती है। फिल्म का संगीत खास नहीं है। अमित त्रिवेदी अगर संगीत के पुराने आजमाए हुए टोटकों से बाहर निकल पाते तो यह बढ़िया हो सकता था। दूसरी तरफ रश्मि की ट्रेनिंग वाले दृश्यों पर भी अगर थोड़ी और मेहनत की गई होती तो यह 'भाग मिल्खा भाग' जैसा मूड बना सकते थे।
देखें या ना देखें?
अच्छी बात यह है कि इस स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म को ज्यादा नाटकीय करने का प्रयास नहीं किया गया। फिल्म बताती है कि किस तरह से टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन के बहाने महिला खिलाड़ियों का करियर बर्बाद हो जाता है। दुनियाभर में नियमित रूप से महिला खिलाड़ियों को जेंडर टेस्ट के रूप में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। एक दमदार विषय के साथ मजबूत सामाजिक संदेश देती यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी। हमारी तरफ से 'रश्मि रॉकेट' को साढ़े तीन स्टार।