कथक की दुनिया के बेताज बादशाह बिरजू महाराज से जुड़ीं ये बातें नहीं जानते होंगे आप
क्या है खबर?
लखनऊ के कथक घराने में पैदा हुए पंडित बिरजू महाराज अब इस दुनिया में नहीं रहे। दिल का दौरा पड़ने से रविवार देर रात उनका निधन हो गया। ना सिर्फ देश, बल्कि दुनियाभर से लोग उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
बिरजू महाराज ने अपने नृत्य से दुनियाभर में भारत का नाम रोशन किया है। बिरजू महाराज के बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं, जिनसे आप शायद अब तक नावाकिफ हों।
आइए जानते हैं उनसे जुड़ीं कुछ अनसुनी बातें।
कौशल
सात साल की उम्र में पहली बार दिखाया था अपना नृत्य कौशल
बचपन में नाचते-नाचते बिरजू महाराज गिर पड़ते थे तो मां प्यार से उठाकर कहती थीं, "अभी तू छोटा है। जब बड़ा हो जाएगा, तब नाचना।"
बिरजू महाराज ने अपने पिताजी अच्छन महाराज, चाचा शम्भू महाराज व लच्छू महाराज से कथक की तालीम हासिल की थी।
पिताजी नवाब रामपुर के दरबार में राज्य नृतक थे। जब बिरजू सात साल के थे तो रामपुर दरबार में नवाब रजा अली के सामने पहली बार उन्होंने अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया था।
संघर्ष
नौ साल की उम्र में बिरजू महाराज के सिर से उठ गया था पिता का साया
बिरजू महाराज उस वक्त महज नौ साल के थे, जब उनके पिताजी का देहान्त हो गया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "पिताजी के गुजर जाने के बाद हमारे परिवार पर संकट के बादल छा गए। हम लखनऊ से कानपुर चले गए।"
उन्होंने कहा, "फिर मेरी बहन कपिला दीदी हमें दिल्ली ले गईं। मेरा संघर्ष जारी रहा। दो साल तक साइकिल पर चला। फिर तीन और पांच नंबर की बस से धक्के खाता रहा। जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव देखे।"
फिल्में
कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए किया डांस कोरियोग्राफ
बिरजू महाराज ने कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए डांस कोरियोग्राफ किया था। उन्होंने सत्यजीत रे की लखनऊ की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में दो गीत गाए और कोरियोग्राफी भी की।
फिल्म 'देवदास' के गीत 'काहे छेड़े मोहे' की कोरियोग्राफी कर बिरजू महाराज ने खूब वाहवाही बटोरी।
फिल्म 'डेढ़ इश्किया', 'उमराव जान' और संजय लीला भंसाली की फिल्म 'बाजीराव मस्तानी' के गीत 'मोहे रंग दे लाल' में भी उनकी शानदार कोरियोग्राफी भला कौन भुला पाएगा?
उसूल
इन शर्तों पर कोरियोग्राफी करते थे बिरजू महाराज
बिरजू महाराज ने ज्यादा फिल्मों में कोरियोग्राफी नहीं की। इस पर उनका जवाब था, "मेरी कुछ शर्तें हैं, जिनके पालन के बिना मैं कोरियोग्राफी नहीं करता। सबसे पहली बात है ड्रेस। अगर कास्टयूम आपत्तिजनक है तो मैं तुरंत मना कर देता हूं। फिल्म और गीत में क्लासिक टच होना भी जरूरी है।"
उन्होंने कहा था, "गीत के बोल भी शास्त्रीय होने चाहिए। डबल मीनिंग लिरिक्स से मैं परहेज करता हूं। इसके अलावा नृत्यांगना को भी डांस में निपुण होना चाहिए।"
शुरुआत
13 साल की उम्र में नृत्य सिखाने लगे थे बिरजू
दुनियाभर में भ्रमण करने के बाद बिरजू महाराज ने हजारों परफॉर्मेंस दीं और कथक छात्रों के लिए सैकड़ों वर्कशॉप आयोजित कीं। बिरजू महाराज कई सालों तक नई दिल्ली के कथक केंद्र के प्रमुख बने रहे।
1998 में अपने रिटायरमेंट तक उन्होंने दिल्ली में अपना खुद का नृत्य विद्यालय कलाश्रम खोल दिया था।
बिरजू महाराज ने नई दिल्ली स्थित संगीत भारती और भारतीय कला केंद्र में 13 साल की उम्र में नृत्य सिखाना शुरू कर दिया था।
जानकारी
न्यूजबाइट्स प्लस (दिलचस्प बात)
कम ही लोग जानते हैं कि कारों को लेकर बिरजू महाराज में एक गजब की दीवानगी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया था कि अगर उन्हें कथक की दुनिया में पहचान ना मिलती तो कारों को लेकर उनका प्रेम उन्हें कार मैकेनिक बना देता।
पुरस्कार
बिरजू महाराज की झोली में कई सम्मान
बिरजू महाराज को पद्म विभूषण सम्मान, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, कालीदास सम्मान, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय व खैरागढ़ विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
उन्हें लता मंगेशकर, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, संगम कला अवार्ड मिला। कमल हासन की फिल्म 'विश्वरूपम' में कोरियोग्राफी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार तो 'बाजीराव मस्तानी' के 'मोहे रंग दो लाल' गाने की कोरियाग्राफी के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
2015 में बिरजू महाराज को वाजिद अली शाह पुरस्कार से नवाजा गया।