'नादानियां' रिव्यू: कलाकार ही नहीं, इस फिल्म के तो लेखक और निर्देशक भी नादान
क्या है खबर?
पिछले कुछ सालों में शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान से लेकर अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा तक कई स्टार किड्स ने फिल्मी दुनिया में कदम रखा है।
अब नंबर लगा है सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान की, जिन्होंने निर्माता करण जौहर की फिल्म 'नादानियां' से अभिनय जगत का रुख किया है।
उनकी यह फिल्म आज यानी 7 मार्च को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है।
'नादानियां' कैसी है, जानने के लिए पढ़िय ये रिव्यू।
कहानी
क्या है कहानी?
इसकी कहानी एक मध्यम वर्गीय परिवार के लड़के अर्जुन मेहता (इब्राहिम) और रईस लड़की पिया जयसिंह के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक एक गलतफहमी के चलते एक-दूसरे के करीब आते हैं।
पैसेवाली पिया 25,000 रुपये हफ्ते पर अर्जुन को अपना किराया वाला बॉयफ्रेंड बना लेती है। दोनों के बीच नोक-झोंक और असहजता के बावजूद दोस्ती हो जाती है।
फिर इस फर्जी प्रेम कहानी का क्या अंजाम होता है, यह भी बता दिया तो फिल्म देखने के लिए कुछ बचेगा नहीं।
एक्टिंग
इब्राहिम और खुशी का खराब अभिनय और कमजोर केमिस्ट्री
इब्राहिम और खुशी ने फिल्म का बेड़ागर्क करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अभिनय की कसौटी पर दोनों ही कमजोर दिखाई पड़ते हैं। शुरू से लेकर आखिरी तक हाव-भाव सपाट, ऊपर से डायलॉग डिलिवरी इतनी खराब।
न तो दोनाें की एक्टिंग अच्छी है और ना ही उनकी केमिस्ट्री दमदार है। खासकर फिल्म की सबसे कमजोर कड़ियों में एक खुशी की अदाकारी है, जिनमें आत्मविश्वास की भारी कमी है। उन्हें देखकर तो बस यही लगता है कि इनसे ना हो पाएगा।
जानकारी
चमके सहायक कलाकार
दीया मिर्जा और जुगल हंसराज, इब्राहिम के माता-पिता तो वहीं महिमा चौधरी और सुनील शेट्टी खुशी के माता-पिता बने हैं। फिल्म में बस इन्हीं 4 कलाकारों के दृश्य सधे हुए हैं और इन्होंने मुख्य या कहें कमजोर कलाकारों को बचाने की पूरी कोशिश की है।
निर्देशन और लेखन
निर्देशक और लेखक ने भी किया बंटाधार
फिल्म की निर्देशक शॉना गौतम हैं, जिन्होंने अपनी पहली फिल्म 'नादानियां' से यह साबित कर दिया है कि वह अभी निर्देशन के लिए तैयार नहीं हैं। कहानी, पटकथा और निर्देशन हर मोर्चे पर फिल्म का डिब्बा पूरी तरह गोल है।
फिल्म की कहानी को रीवा, राजदान कपूर, इशिया मोइत्रा और जेहान हांडा ने मिलकर लिखा है, जिन्होंने इसे खराब बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
कहानी देख आप यही कहेंगे कि निर्देशक या लेखक की ऐसी कौन-सी मजबूरी थी।
खामियां
कमियां कम नहीं
लगता है मानों स्टार किड को लॉन्च करने के लिए ये फिल्म बनाई गई है। न कहानी में दम है, ना ही कलाकारों में और बची-खुची कसर संगीत ने पूरी कर दी।
खुशी तो कैमरे के सामने आने के लिए तैयार ही नहीं हैं। इसकी बानगी 'लवयापा' में दिख चुकी थी।
कुल मिलाकर अब समझ आया कि क्यों ये फिल्म बिना किसी खास प्रचार के रिलीज हो गई।
हालांकि, अच्छी बात यह है कि फिल्म जल्दी खत्म हो जाती है।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- अगर पूरा रिव्यू पढ़ने के बाद भी आप 'नादानियां' देखकर नादानी करना चाहते हैं तो आप अपने 2 घंटे खराब कर सकते हैं। वैसे कम से कम सीनियर कलाकारों के लिए तो आप इस फिल्म को एक मौका दे ही सकते हैं।
क्यों न देखें?- अगर एक नई कहानी के मकसद से फिल्म देखने वाले हैं तो ठगे रह जाएंगे और बस यही बोलेंगे कि आखिर कैसे निर्माताओं को ऐसी नादानियां सूझती हैं?
न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5