जावेद अख्तर ने किया याद, मीना कुमारी के अवॉर्ड्स लेकर देखते थे आइना
क्या है खबर?
जावेद अख्तर आज हिंदी सिनेमा के प्रतिष्ठित गीतकार और लेखक हैं। उनकी लिखी फिल्मों और उनके गीतों के बिना बॉलीवुड की कल्पना भी मुश्किल है।
आज वह हिंदी के सबसे महंगे गीतकारों में से भी एक हैं।
हालांकि, कम ही लोग जानते हैं वह मुंबई गीतकार नहीं निर्देशक बनने की उम्मीद लिए आए थे। तब वह 19 वर्ष के थे।
अब एक खास इंटरव्यू में जावेद ने अपने संघर्ष के दिनों की बातें साझा की हैं।
पहला काम
50 रुपये थी पहली तनख्वाह
बीबीसी हिंदी को दिए एक हालिया इंटरव्यू में जावेद ने बताया कि उन्हें पहली नौकरी 'पाकीजा' के निर्देशक कमाल अमरोही के यहां मिली थी। इसके लिए उन्हें 50 रुपये प्रति महीना पगार मिलती थी। इतने पैसे में वह किराया नहीं दे सकते थे इसलिए स्टूडियो के ही कॉस्ट्यूम रूम में रहा करते थे।
उन्होंने कमलिस्तान स्टूडियो के अपने दिनों को याद करते हुए बताया कि अपना दिल बहलाने के लिए वह वहां कॉस्ट्यूम के बीच समय बिताते थे।
स्टूडियो
स्टूडियो के ही कॉस्ट्यूम रूम में रहते थे जावेद
जावेद ने कहा, "अब 50 रुपये में कमरा लेके कहीं रह नहीं सकता था तो वहीं स्टूडियो में ही सोता था। स्टूडियो में कोई कमरा नहीं दिया गया था मुझे तो कभी कहीं, कभी कहीं रहता था।"
उन दिनों 'पाकीजा' की शूटिंग रुकी हुई थी क्योंकि मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग हो गए थे। स्टूडियो में एक बड़ा सा कॉस्ट्यूम रूम था जहां कपड़े, जूते और गहने थे।
जावेद दिल बहलाने के लिए अकसर अलमारी खोलकर देखा करते थे।
यादें
पहली बार कोई अवॉर्ड छुआ तो वो मीना कुमारी की ट्रॉफियां थीं- जावेद
ऐसे ही एक दिन अलमारी में उन्हें कुछ धूल चढ़ी हुई फिल्मफेयर की ट्रॉफियां मिलीं। ये मीना कुमारी की ट्रॉफियां थीं।
जावेद ने कहा, "जब कमरे में कोई नहीं होता था, तब मैं अंदर से दरवाजा बंद करके, वो ट्रॉफी हाथ में लेके मिरर के सामने खड़ा होता था और कल्पना करता था कि किसी दिन मैं भी यह अवॉर्ड जीतूंगा। जिंदगी में जब पहली बार कोई अवॉर्ड छुआ तो वो मीना कुमारी जी की फिल्मफेयर की ट्रॉफियां थीं।
सलीम-जावेद
सलीम-जावेद की जोड़ी ने बदल दिया सिनेमा का रुख
जावेद ने सलीम खान के साथ मिलकर 1970 के दशक में भारतीय सिनेमा में क्रांति ला दी थी। सलीम और जावेद की जोड़ी ने एक साथ 'शोले', 'जंजीर' और 'डॉन' जैसी कई हिट फिल्में दीं।
यह वही जोड़ी थी, जिसने बॉलीवुड में पटकथा लेखकों को एक नई पहचान दिलाई। इस जोड़ी ने हिंदी सिनेमा का रुख ही मोड़ दिया।
दर्शकों का एक ऐसा भी वर्ग था, जो सलीम-जावेद का नाम सुनकर फिल्म देखने जाया करता था।