
H1B वीजा शुल्क वृद्धि से भारतीय IT कंपनियों पर असर पड़ने की संभावना नहीं, जानिए कारण
क्या है खबर?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H1B वीजा से जुड़े नियमों में बदलाव कर वीजा शुल्क बढ़ाकर 1 लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) कर दिया गया है। यह वीजा अमेरिकी कंपनियों को IT और STEM क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों को रखने की सुविधा देता है। पहले भारतीय IT कंपनियां इस पर काफी निर्भर थीं, लेकिन अब उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी है। इन रणनीतियों के कारण भारतीय कंपनियों पर इस फैसले का असर पड़ने की संभावना कम है।
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भारतीय कंपनियों पर क्यों नहीं पड़ेगा असर?
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS), इंफोसिस, HCL टेक, विप्रो और टेक महिंद्रा ने अमेरिका में स्थानीय कर्मचारियों की संख्या बढ़ा दी है। TCS और इंफोसिस में अब 50 से 60 प्रतिशत से ज्यादा कर्मचारी स्थानीय हैं। HCL टेक और विप्रो की निर्भरता तो 20 प्रतिशत तक ही रह गई है। इन कंपनियों ने अमेरिकी डिलीवरी सेंटर और उप-ठेकेदारी पर जोर दिया है, जिससे वीजा नियमों का असर कम हो गया है।
#2
कम निर्भरता से कम असर
इन भारतीय कंपनियों के लिए H1B वीजा पर निर्भरता घटकर अब काफी कम रह गई है। उदाहरण के तौर पर TCS को हर साल केवल 3,000 से 4,000 वीजा की जरूरत होती है। अगर वीजा की उपलब्धता कम भी हो, तो वे काम को भारत या अन्य जगहों पर स्थानांतरित कर सकती हैं। इससे अमेरिकी नियमों में बदलाव का बड़ा असर नहीं पड़ेगा और उनकी सेवाएं सुचारु रूप से चलती रहेंगी।
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अमेरिकी कंपनियों पर ज्यादा दबाव
विडंबना यह है कि अब H1B वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिकी टेक कंपनियां कर रही हैं। बड़ी अमेरिकी फर्में AI इंजीनियरों और डाटा वैज्ञानिकों जैसे उच्च-भुगतान वाले विशेषज्ञों के लिए इन वीजाओं पर निर्भर हैं। इस कारण वीजा शुल्क में बढ़ोतरी से उन्हें अधिक खर्च उठाना पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय IT कंपनियों की रणनीति और स्थानीय भर्ती उन्हें लंबे समय तक स्थिर बनाए रखेगी, जबकि अमेरिकी कंपनियों को ज्यादा चुनौती झेलनी होगी।