
GST सुधार से पहले NDA और UPA सरकारों ने कौन-कौन से बड़े आर्थिक फैसले लिए थे?
क्या है खबर?
इस दिवाली या उससे पहले सरकार GST की संरचना में बड़ा सुधार करने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर करों को सरल बनाने की बात कही थी। उम्मीद है कि इलेक्ट्रॉनिक सामान और फर्नीचर जैसी चीजों पर टैक्स घटने से लोगों की खरीदारी बढ़ेगी। आइए जानते हैं GST से पहले UPA और NDA सरकारों में पिछले कुछ सालों में आर्थिक सुधार के लिए कौन-कौन से बड़े फैसले लिए गए हैं।
#1
UPA सरकार के आर्थिक सुधार
मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली UPA सरकार ने 2004 से 2014 के बीच कई बड़े सुधार किए। 2005 में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) अधिनियम लाया गया, जिससे निवेश और निर्यात को बढ़ावा मिला। इसी साल नरेगा कानून लागू किया गया, जिसके तहत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार गारंटी मिला। इन नीतियों ने रोजगार और निवेश बढ़ाने में मदद की। इस अवधि में GDP की तिमाही वृद्धि दर लगभग 8 प्रतिशत दर्ज हुई थी।
#2
वैश्विक संकट और खुदरा क्षेत्र में FDI
UPA सरकार के समय 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट का असर भारत पर भी पड़ा। हालांकि, 2009-10 में थोड़ी सुधार की स्थिति दिखी। 2011 में खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत FDI की घोषणा की गई, लेकिन राजनीतिक विरोध के कारण इसे देर से मंजूरी मिली। दूसरी UPA सरकार को नीतिगत अड़चनों और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। इसके कारण बाद के वर्षों में भारत की विकास दर धीमी हुई और निवेशकों का भरोसा भी प्रभावित हुआ था।
#3
मोदी सरकार के सुधार और कल्याणकारी योजनाएं
2014 में मोदी सरकार आने के बाद कई नई योजनाएं शुरू हुईं। इनमें जन धन योजना, मुद्रा योजना, स्वच्छ भारत और प्रधानमंत्री आवास जैसी पहलें शामिल रहीं। 2016 में सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लचीली मुद्रास्फीति नीति लागू की। 2017 में GST लागू किया गया, जो स्वतंत्रता के बाद सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार था। 2014 से 2025 के बीच भारत की GDP वृद्धि औसतन 6.2 प्रतिशत दर्ज की गई।
#4
नई नीतियां और चुनौतियां
NDA सरकार ने 2019 में कॉर्पोरेट टैक्स घटाया और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की। कोविड-19 महामारी के दौरान आत्मनिर्भर भारत पैकेज पेश किया गया। सरकार ने श्रम और कृषि सुधारों का प्रस्ताव रखा, लेकिन किसान आंदोलन के चलते कृषि कानून वापस लेने पड़े। मौजूदा समय में भारत वैश्विक चुनौतियों और अमेरिकी टैरिफ नीतियों से जूझ रहा है। हालांकि, सुधारों की यह यात्रा अभी भी जारी है।