भारतीय IT कंपनियों के लिए H-1B वीजा मंजूरी में भारी गिरावट, एक दशक में सबसे कम
क्या है खबर?
अमेरिका की ओर से मानदंड़ों में किए गए बदलाव के चलते वित्त वर्ष में भारतीय IT कंपनियों के लिए H-1B वीजा स्वीकृति में भारी गिरावट देखने को मिली है। 2025 में प्रारंभिक रोजगार के लिए केवल 4,573 नए आवेदनों को ही मंजूरी मिली है। यह 2015 की तुलना में लगभग 70 फीसदी की गिरावट और 2024 की तुलना में 37 फीसदी की कमी दर्शाता है। यह स्वीकृतियों के मामले में पिछले एक दशक का सबसे खराब वर्ष रहा।
कारण
इस कारण आई मंजूरी में गिरावट
नेशनल फॉउंडेशन फार अमेरिकन पॉलिसी (NFAP) के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कम्पनियों में केवल टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) ही नए H-1B अनुमोदन प्राप्त करने वाले शीर्ष 5 नियोक्ताओं में अपना स्थान बनाए रखने में सफल रही। विश्लेषक इस भारी गिरावट का कारण कड़ी आव्रजन नीतियों, वीजा आवेदनों की कड़ी जांच और नियुक्ति पैटर्न में व्यापक बदलाव को मानते हैं। अमेजन, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों ने अपनी मजबूत कानूनी और प्रशासनिक पकड़ के जरिए स्वीकृतियों में दबदबा बनाया है।
बदलाव
बदल सकता है भारतीय कंपनियों का बिजनेस मॉडल
इस भारी गिरावट से भारतीय IT क्षेत्र के व्यावसायिक मॉडल के नए सिरे से आकार लेने का खतरा है, जो लंबे समय से प्रतिभाओं को तैनात करने और अमेरिकी ग्राहकों को सर्विस देने के लिए H-1B वीजा पर निर्भर रहा है। कम वीजा उपलब्ध होने के कारण, कंपनियों को अमेरिका स्थित प्रोजेक्ट्स में कर्मचारियों की नियुक्ति में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। वे स्थानीय नियुक्ति या दूरस्थ मॉडल की ओर रुख कर सकती हैं।
दबदबा
अमेरिकी कंपनियों का बढ़ेगा दबदबा
साथ ही वीजा आवंटन में दिग्गज अमेरिकी तकनीकी कंपनियों का प्रभुत्व दर्शाता है कि वे वैश्विक प्रतिभाओं तक अपनी पहुंच मजबूत कर रही हैं, जिससे उनके और पारंपरिक आउटसोर्सिंग कंपनियों के बीच की खाई और चौड़ी हो सकती है। NFAP विश्लेषण वैश्विक तकनीकी प्रतिभा बाजार के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देता है। इससे भारतीय IT कंपनियों, प्रवासी पेशेवरों और दुनियाभर में नियुक्ति पैटर्न पर दूरगामी प्रभाव पड़ते नजर आ रहे हैं।
H-1B
क्या है H-1B वीजा?
H-1B एक गैर-अप्रवासी वीजा है, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां दक्ष कर्मचारियों को नौकरियां देती हैं। ये तकनीकी, वैज्ञानिक और व्यावसायिक विशेषज्ञता रखने वाले पेशेवरों को दिया जाता है। यह वीजा 3 साल के लिए होता है और इसके बाद 3 साल के लिए रिन्यू किया जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 21 सितंबर से वीजा के लिए शुल्क 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दिया है। पहले यह शुल्क करीब 6 लाख रुपये था।