लैपटॉप के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाएगी सरकार, बोली- सिर्फ निगरानी कर रहे
क्या है खबर?
केंद्र सरकार ने अगस्त में कहा था कि लैपटॉप, पर्सनल कंप्यूटर (PC) और सर्वर के आयात को एक नवंबर से लाइसेंस व्यवस्था के तहत रखा जाएगा। अब सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने कहा कि वो आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाने जा रही है और केवल आयात की निगरानी करेगी।
बता दें कि आयात से जुड़े फैसले की व्यापारिक जगत में खूब आलोचना की जा रही थी।
बयान
अक्टूबर अंत तक नया आदेश जारी कर सकती है सरकार
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बर्थवाल ने कहा कि भारत लैपटॉप आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाएगा।
उन्होंने कहा, "सरकार केवल यह चाहती है कि आयातकों पर कड़ी नजर रखी जाए।"
विदेश व्यापार महानिदेशालय के संतोष कुमार सारंगी ने कहा कि सरकार उद्योग के साथ परामर्श कर रही है और लैपटॉप आयात पर एक नया आदेश अक्टूबर के अंत तक जारी किया जाएगा।
हालांकि, नए आदेश के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है।
आदेश
सरकार ने अगस्त में जारी किया था प्रतिबंध का आदेश
सरकार ने 3 अगस्त को लैपटॉप और कम्प्यूटर के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।हालांकि, 5 अगस्त को एक नए आदेश में सरकार ने कहा था कि इन वस्तुओं के आयात को 1 नवंबर से वैध लाइसेंस के आधार पर अनुमति दी जाएगी।
हालांकि, कई शर्तों के साथ कुछ आयात नियमों में छूट भी दी गई थी। निजी इस्तेमाल और रिसर्च आदि के लिए लैपटॉप, टैबलेट आदि मंगाने पर कोई रोक नहीं लगाई गई थी।
वजह
क्यों प्रतिबंध लगा रही थी सरकार?
सरकार ने लगातार बढ़ते व्यापार घाटे के बीच ये फैसला लिया था। दरअसल, मई और जून में व्यापार घाटा 1,65,000 करोड़ से अधिक हो गया था।
अप्रैल-जून में भारत का आयात 2022-23 की पहली तिमाही की तुलना में 12.7 प्रतिशत कम हो गया था, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक सामानों के आयात में सालाना आधार पर 6.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
इस आयात का ज्यादातर हिस्सा चीन से आता है।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान सबसे ज्यादा आयात किए जाने वाली वस्तुओं की सूची में तीसरे नंबर पर हैं। पहले नंबर पर पेट्रोल और फिर सोना है।
फरवरी 2021 से अप्रैल 2022 के बीच 50 हजार करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम आयात किए गए थे। ऐसे आयटम का सबसे ज्यादा आयात चीन से किया जाता है।
वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 70 हजार करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक आयटम आयात हुए थे, इनमें चीन की हिस्सेदारी 40 हजार करोड़ रुपये थी।