अमेरिकी संसद की शक्तिशाली समिति की मांग, कश्मीर में लगी पाबंदियां खत्म करे भारत
क्या है खबर?
अमेरिकी संसद की एक शक्तिशाली समिति ने भारत सरकार से कश्मीर में लगी पाबंदियों को हटाने की मांग की है।
समिति ने कहा है कि संचार पर लगी पाबंदियां घाटी के लोगों पर विनाशकारी प्रभाव डाल रही हैं और अब कश्मीरियों को बाकी भारतीय नागरिकों के समान अधिकार और सुविधाएं देने का वक्त आ गया है।
बता दें कि कश्मीर में 4 अगस्त की रात से ही इंटरनेट और फोन सेवाओं पर रोक सहित अन्य पाबंदियां लगी हुई हैं।
ट्वीट
'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट ट्वीट करते हुए पाबंदियां हटाने की मांग
कश्मीर में पाबंदियों के कारण समय पर इलाज न मिलने और स्वास्थ्य समस्याओं पर 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की रिपोर्ट को ट्वीट करते हुए अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति ने ये बातें कही हैं।
ट्वीट में लिखा है, "कश्मीर में संचार पर भारत का प्रतिबंध आम कश्मीरियों के जीवन और कल्याण पर विनाशकारी प्रभाव डाल रहा है। अब समय आ गया है कि भारत ये प्रतिबंध हटा ले और कश्मीरियों को अन्य भारतीय नागरिकों के समान अधिकार और सुविधाएं दे।"
पाबंदियां
अनुच्छेद 370 पर फैसले से पहले लगाई गई थीं पाबंदियां
बता दें कि 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 और राज्य के बंटवारे पर फैसले से एक रात पहले भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कई तरह की पाबंदियां लगी दी थीं।
इनमें इंटरनेट और फोन सेवाओं पर रोक, केबल टीवी पर प्रतिबंध और यातायात में पाबंदी आदि शामिल थे।
बाद में धीरे-धीरे इन पाबंदियों को हटाया गया और जम्मू से अब सभी तरह की पाबंदियां हट चुकी हैं, लेकिन कश्मीर में कुछ पाबंदियां अभी भी बाकी हैं।
कश्मीर में पाबंदियां
इंटरनेट और फोन सेवाओं पर रोक अभी भी जारी
कश्मीर में यातायात और लैंडलाइन सेवाओं पर लगी पाबंदियां भले ही हटा दी गई हो, लेकिन इंटरनेट और फोन सेवाओं पर पाबंदी अभी भी जारी है।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, इंटरनेट सेवाओं से प्रतिबंध हटाने पर पाकिस्तान घाटी के लोगों को भड़काने की कोशिश कर सकता है और इससे आतंकियों के बीच संवाद तेज हो जाएगा।
इसी कारण इंटरनेट पर रोक को खत्म नहीं किया जा रहा है।
जानकारी
भारत सरकार का दावा, नहीं चली एक भी गोली, किसी की मौत नहीं
भारत सरकार का ये भी कहना है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं और सितंबर के महीने में एक भी गोली नहीं चलाई गई। सरकार ने एक-दो छोटे विरोध प्रदर्शनों की बात स्वीकार की है, लेकिन किसी के मरने की बात से इनकार किया है।