कनाडा: लॉन्ग कोविड से परेशान महिला ने मांगी इच्छामृत्यु, कहा- ये जीवन जीने लायक नहीं
कनाडा में लॉन्ग कोविड के कारण शारीरिक और आर्थिक रूप से परेशान एक 55 वर्षीय महिला ने इच्छामृत्यु के लिए आवेदन किया है। डेली मेल के मुताबिक, टोरंटो निवासी ट्रेसी थॉम्पसन 2020 में कोरोना वायरस की चपेट में आई थीं। इसके बाद से वह काम करने में अक्षम हैं। उनकी सारी बचत भी खत्म हो चुकी है। बेहद तकलीफ में जी रहीं ट्रेसी के परिवार में कोई नहीं है और उन्होंने अपने सभी दोस्तों को भी खो दिया है।
दिन में 22 घंटे बिस्तर पर बिताती हैं ट्रेसी
रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेसी न तो खाना बना सकती हैं और न ही कुछ पढ़ और देख सकती हैं। वह परेशान और थके होने के कारण दिन में 22 घंटे तक बिस्तर पर रहती हैं। ट्रे्सी कनाडा के इच्छामृत्यु कार्यक्रम के माध्यम से अपना जीवन समाप्त करना चाहती हैं। उन्होंने डेली मेल को बताया कि इस बीमारी के साथ उनके जीवन की गुणवत्ता लगभग समाप्त हो गई है और यह अच्छा जीवन नहीं है।
कैसे बढ़ती गई बीमारी?
रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेसी को मार्च 2020 में गले में खराश हुई और फिर स्वाद और सूंघने की क्षमता चली गई। कुछ हफ्तों में उनकी सेहत सुधरने की जगह बिगड़ती चली गई। मई में वह डॉक्टरों के पास गईं और उनकी जांच हुई। जांच रिपोर्ट सामान्य आई और उन्हें घर भेज दिया गया। कुछ समय बाद 2021 में सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ होने पर वह फिर अस्पताल पहुंचीं और तब उन्हें लॉन्ग कोविड का पता चला।
क्या होता है लॉन्ग कोविड?
लॉन्ग कोविड एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लोगों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी कई हफ्तों या महीनों तक कोरोना के लक्षण बने रहते हैं। लक्षणों में अत्यधिक थकान, सांस की तकलीफ, सीने में दर्द, याद्दाश्त में कमी, स्वाद और गंध में बदलाव और जोड़ों में दर्द आदि शामिल हैं। एक अध्ययन से पता चलता है कि एक तिहाई लोगों को लॉन्ग कोविड का अनुभव हो सकता है। अभी इसका स्पष्ट कारण अभी सामने नहीं आया है।
कनाडा में क्या है इच्छामृत्यु के लिए कानून?
इच्छामृत्यु के लिए कनाडा में मेडिकल असिस्टेंस इन डाइंग (MAiD) कानून है, जिसे 2016 में लागू किया गया था। इसके तहत असाध्य रोगों और असहनीय पीड़ा से जूझ रहे रोगी इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकते हैं। पिछले साल 2022 में 13, 241 लोगों ने इस कानून के जरिए इच्छामृत्यु चुनी थी, जो 2021 से 31 प्रतिशत अधिक है। ये आंकड़े देश में होने वाली कुल 5 प्रतिशत मौतों के लिए जिम्मेदार है।