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    रवांडा हिंसा में 'चुड़ैल' कही जाने वाली इस महिला ने बचाई थी कई लोगों की जान

    रवांडा हिंसा में 'चुड़ैल' कही जाने वाली इस महिला ने बचाई थी कई लोगों की जान

    लेखन प्रदीप मौर्य
    Dec 24, 2018
    08:23 pm

    क्या है खबर?

    दुनिया 1994 को कभी नहीं भूल सकती है। यह वही समय था, जब रवांडा में तुत्सी और हूतू समुदाय के बीच हिंसा भड़की थी।

    हूतू समुदाय द्वारा अंजाम दिए गए उस नरसंहार में लगभग आठ लाख लोग मारे गए थे। उस समय एक निहत्थी महिला ने अपनी जादुई शक्तियों से कई लोगों की जान बचाई थी।

    महिला का जादू ही था, जिसने हथियारबंद लोगों के मन में डर पैदा किया था। जानिए उस साहसी महिला कारूहिंबी (चुड़ैल) के बारे में।

    नरसंहार

    हूतू समुदाय के कई उदारवादी लोग भी मारे गए थे नरसंहार में

    जानकारी के अनुसार उस नरसंहार में कुछ हूतू समुदाय के उदारवादी लोग भी मारे गए थे।

    नरसंहार के लगभग दो दशक बाद चुड़ैल नाम से मशहूर कारूहिंबी ने अपने दो कमरों के घर में 'द इस्ट अफ़्रीकन' से बात करते हुए कहा था कि, "उस नरसंहार के दौरान मैंने इंसान के दिल का कालापन देखा था।"

    यह वही घर था, जहाँ उन्होंने कई लोगों को छुपाया था और उनकी जान बचाई थी। बीते सोमवार को कारूहिंबी की मौत हो गई।

    बेल्जियम

    रवांडा पर था बेल्जियम का शासन

    कारूहिंबी की उम्र कितनी थी, इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार उनकी उम्र 93 साल थी, जबकि वो ख़ुद को 100 साल से ज़्यादा की बताती थीं।

    कहानियों के अनुसार कारूहिंबी का जन्म सन 1925 में एक ओझा के परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि 1994 में हुई घटना के तार उनके बचपन से ही जुड़ने शुरू हो गए थे।

    उस दौर में रवांडा में बेल्जियम का शासन हुआ करता था।

    जानकारी

    हूतू समुदाय की थी कारूहिंबी

    बेल्जियम का रवांडा पर शासन था, इसलिए उसने पूरे रवांडा के लोगों को दो समुदायों में बाँट दिया था। उन्होंने पहचान पत्र जारी करके लोगों को हूतू और तुत्सी समुदाय में विभाजित कर दिया था। कारूहिंबी हूतू समुदाय से ताल्लुक़ रखती थीं।

    तुत्सी समुदाय

    हिंसा में लोग दूसरे समुदाय की अपनी पत्नियों को भी मारने लगे थे

    रवांडा में हूतू समुदाय बहुसंख्यक था, लेकिन तुत्सी समुदाय को उच्च वर्ग का समझा जाता था। इसलिए हर जगह उनका बोलबाला था।

    1994 में हूतू समुदाय के राष्ट्रपति जुवेनाल हेब्यारिमाना का विमान गिरा दिया गया, उसके बाद तुत्सियों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़क गई।

    कारूहिंबी के लिए यह पहली बार था, जब इस तरह की हिंसा भड़की थी। हालात इस क़दर बिगड़ गए थे कि हूतू समुदाय के लोग तुत्सी समुदाय की अपनी पत्नियों तक को मारने लगे थे।

    शरण

    तीन यूरोपीय नागरिकों ने भी ली थी कारूहिंबी के घर में शरण

    हिंसा शुरू होने के बाद मुसामो गाँव में स्थित कारूहिंबी का घर तुत्सियों के लिए सुरक्षित जगह बन गया।

    नरसंहार के समय तुत्सी ही नहीं बल्कि बुरुंडी और तीन यूरोपीय नागरिकों ने भी शरण ली थी। कुछ लोग कहते हैं कि कारूहिंबी ने अपने खेत में गड्ढा खोदकर लोगों को उसमें छुपाया था।

    इन्होंने कई ऐसे बच्चों को भी बचाया था, जिनकी माओं को मार दिया गया था। इन्होंने कितने लोगों की जान बचाई थी, इसकी कोई जानकारी नहीं है।

    चुड़ैल

    मुसामो गाँव के लोग मानते रहे कारूहिंबी को चुड़ैल

    कारूहिंबी ने बताया था कि वो ज़ेवर या किसी अन्य चीज़ को हिलाकर हमलावरों के अंदर डर पैदा करती थीं।

    उनकी यह तरकीब काम कर गई और उनके घर में शरण लेने वाला हर व्यक्ति जीवित बच गया। हिंसा के दौरान कारूहिंबी के बेटे की मौत हो गई थी और उनकी बेटी को ज़हर दे दिया गया था।

    मुसामो गाँव की कथा पर लोग यक़ीन करते रहे और कारूहिंबी को चुड़ैल मानते रहे, जबकि उन्होंने कई बार इसका खंडन किया।

    मेडल

    कारूहिंबी को 2006 में सम्मानित किया गया 'कैंपेन अगेंस्ट जेनेसाइड मेडल' से

    कारूहिंबी ने 2014 में एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि, "मैं सिर्फ़ भगवान में यक़ीन करती थीं। जादुई शक्तियों का छलावा सिर्फ़ उन लोगों का विश्वास मज़बूत करने के लिया किया था, जिनकी जान बचा रही थी।"

    उन्होंने कहा था कि वो न ही कोई ओझा हैं और न ही उनके पास कोई जादुई शक्ति है।

    रवांडा में इनकी चुड़ैल वाली कहानी काफ़ी प्रसिद्ध रही और 2006 में इन्हें 'कैंपेन अगेंस्ट जेनेसाइड मेडल' से सम्मानित किया गया था।

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