आखिर क्यों अहमदाबाद की पिच को खराब नहीं बताया जाना चाहिए? जानें कारण
भारत और इंग्लैंड के बीच अहमदाबाद में खेला गया डे-नाइट टेस्ट दो दिन के भीतर ही समाप्त हो गया। दो दिन के भीतर ही टेस्ट समाप्त होने के कारण पिच को लेकर बयानबाजी का दौर जारी है। तमाम दिग्गजों का कहना है कि यह पिच टेस्ट क्रिकेट के लिए आदर्श नहीं थी और इसे खराब करार दिया जा रहा है। आइए जानते हैं कुछ कारण कि क्यों इस पिच को खराब नहीं कहा जाना चाहिए।
पूरे दो दिन भी नहीं चल सका मुकाबला
पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड पहले दिन ही 112 के स्कोर पर सिमट गया था। पहले दिन का खेल खत्म होने तक 99/3 का स्कोर बनाने वाली भारत की पहली पारी भी दूसरे दिन 145 पर सिमट गई। इसके बाद इंग्लिश टीम दूसरी पारी में केवल 81 रन ही बना सकी और भारत ने 49 रनों के लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लिया। दूसरे दिन का खेल खत्म होने से 98 मिनट पहले ही मैच समाप्त हो गया था।
1935 के बाद खेला गया यह सबसे छोटा टेस्ट
नए मोटेरा स्टेडियम (नरेन्द्र मोदी स्टेडियम) को भारत में खेले गए सबसे छोटे टेस्ट मैच के लिए याद किया जाएगा। 1935 के बाद यह खेला गया सबसे छोटा टेस्ट मैच है। तेज गेंदबाजों को केवल दो विकेट ही मिले और 30 में से 28 विकेट स्पिनर्स ने अपने नाम किए। भारत के लिए अक्षर पटेल ने सबसे अधिक 11 विकेट हासिल किए जिसमें पहली पारी में छह और दूसरी पारी में पांच विकेट आए।
पिच को लेकर ऐसी रही दिग्गजों की राय
हरभजन सिंह, युवराज सिंह, माइकल वॉन और वीवीएस लक्ष्मण सहित कई पूर्व खिलाड़ियों ने गुरुवार को कहा कि मोटेरा की टर्निंग पिच टेस्ट क्रिकेट के लिये आदर्श नहीं है। भारतीय कप्तान विराट कोहली का मानना है कि पिच मैच के लिए सही थी लेकिन दोनों टीमों के बल्लेबाजों ने खराब खेल दिखाया। इंग्लिश कप्तान जो रूट का मानना है कि यह ICC को निर्धारित करना है कि पिच मैच के लायक है या नहीं।
बल्लेबाजों के शॉट सिलेक्शन पर उठ रहे हैं सवाल
यह बात तो सच है कि मोटेरा की विकेट पर बल्लेबाजी करना आसान नहीं था। हालांकि, ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि स्पिनर्स के खिलाफ बल्लेबाजों ने गलत शॉट खेले। इस पिच पर गिरने के बाद लगातार गेंद के कोण में बदलाव नहीं हो रहा था और बल्लेबाजों ने ही लगातार गलत लाइन खेलकर अपने विकेट गंवाए। 30 में से 21 विकेट स्पिनर्स की सीधी गेंदों पर गिरे थे।
गुलाबी गेंद से भी हुई बल्लेबाजों को परेशानी
शॉट सिलेक्शन और गेंद के कोण के अलावा गुलाबी गेंद ने भी बल्लेबाजों को परेशान किया। गुलाबी गेंद में लैकर की मात्रा अधिक होती है और इसकी सीम भी काफी कड़ी होती है जिससे स्पिनर्स की गेंद स्किड होती है। अधिकतर बल्लेबाज स्पिन की उम्मीद कर रहे थे और इसी कारण बैकफुट से खेल रहे थे। गेंदें सीधी रह रही थी और अत्यधिक उछाल तथा शॉर्प टर्न की मौजूदगी देखने को नहीं मिली।
क्रिकेट एनालिस्ट सारंग भालेराव का आंकलन
काफी कठिन हो गई हैं टेस्ट खेलने की परिस्थितियां
एक साल पहले भारतीय टीम को न्यूजीलैंड में 2-0 से टेस्ट सीरीज गंवानी पड़ी थी। सीरीज में तेज गेंदबाजों का दबदबा रहा था और केवल रविचंद्रन अश्विन इकलौते स्पिनर थे जो सबसे अधिक विकेट लेने वाले गेंदबाजों की टॉप-10 लिस्ट में शामिल थे। यहां तक कि इंग्लैंड की सीम लेती परिस्थितियों की भी पूरे विश्व में सराहना होती है। ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका की पिचों में आखिरी दो दिन दरारें पड़ती हैं, लेकिन इन्हें भी प्रतियोगी माना जाता है।