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    भारतीय हॉकी लेजेंड बलबीर सिंह का सफर, 68 सालों से कोई नहीं तोड़ पाया उनका रिकॉर्ड

    भारतीय हॉकी लेजेंड बलबीर सिंह का सफर, 68 सालों से कोई नहीं तोड़ पाया उनका रिकॉर्ड

    लेखन Neeraj Pandey
    May 25, 2020
    12:01 pm

    क्या है खबर?

    भारतीय हॉकी के लेजेंड बलबीर सिंह सीनियर ने आज सुबह 06:30 बजे मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में 95 साल की उम्र में अंतिम सांस ली।

    8 मई को उन्हें भर्ती कराया गया था और तब से ही वह वेंटिलेटर पर थे।

    लगातार तीन बार भारत को ओलंपिक में गोल्ड जिताने वाले बलबीर को हॉकी सबसे महान सेंटर फॉरवर्ड माना जाता है।

    जानिए बलबीर के भारतीय हॉकी लेजेंड बनने की कहानी।

    परिवार

    स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र थे बलबीर

    बलबीर सिंह सीनियर का जन्म 10 अक्टूबर, 1924 को स्वतंत्रता सेनानी दलीप सिंह के यहां हुआ था।

    उनके पिता देश के लिए संघर्ष कर रहे थे और यही वजह थी कि बलबीर के दिल में भी देश के लिए प्यार काफी ज़्यादा था।

    काफी कम उम्र में ही बलबीर ने 1936 ओलंपिक में भारत की हॉकी में जीत को न्यूजरील पर देखा था और इसके बाद ही उन्हें हॉकी खेलने का जोश चढ़ गया।

    स्कूल

    स्कूल लेवल पर ही हुई प्रतिभा की पहचान

    बलबीर सिख नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ते थे और बहुत बढ़िया हॉकी खेलते थे। खालसा कॉलेज हॉकी टीम के कोच हरबेल सिंह ने बलबीर की प्रतिभा को पहचान लिया था।

    हरबेल ने काफी कोशिश की कि बलबीर अपना स्कूल बदलकर उनके स्कूल में आ जाएं। 1942 में बलबीर के परिवार ने उन्हें खालसा कॉलेज जाने की अनुमति दे दी।

    खालसा कॉलेज जाने के बाद उन्होंने हरबेल सिंह की देखरेख में हॉकी की विशुद्ध ट्रेनिंग शुरु कर दी।

    खिताब

    लगातार तीन साल पंजाब यूनिवर्सिटी को अपनी कप्तानी में खिताब जिताए

    1942-43 में बलबीर को पंजाब यूनिवर्सिटी को रिप्रजेंट करने के लिए चुना गया। उस समय अविभाजित पंजाब, जम्मू- कश्मीर, सिंध और राजस्थान के कॉलेजों से मिलाकर यह टीम बनाई जाती थी।

    इतने सारे कॉलेज और इतने बड़े क्षेत्र के बाद भी लगातार तीन साल तक पंजाब यूनिवर्सिटी की कप्तानी करना वाकई शानदार उपलब्धि थी।

    लगातार तीन साल अपनी कप्तानी में बलबीर ने पंजाब को ऑल इंडिया इंटर-यूनिवर्सिटी खिताब जिताया।

    बलबीर ने अविभाजित पंजाब को नेशनल चैंपियनशिप भी जिताया था।

    चंडीगढ़

    भारत का विभाजन होने के बाद चंडीगढ़ आ गए

    भारत का विभाजन होने के बाद लोगों को काफी ज़्यादा दिक्कतें होने लगी थी और इससे बलबीर का परिवार भी बच नहीं सका।

    उनके परिवार ने चंडीगढ़ जाने का निर्णय लिया और बलबीर उनके साथ ही चले आए। यहां आने के बाद वह पंजाब पुलिस में शामिल हो गए।

    बलबीर ने पंजाब पुलिस में जाने के बाद भी अपनी हॉकी नहीं छोड़ी और वह 1941 से लेकर 1961 तक पंजाब पुलिस की टीम के कप्तान रहे।

    जानकारी

    पद्मश्री से नवाजे जाने वाले पहले खिलाड़ी

    बलबीर सिंह खेल जगत में किए गए योगदान के लिए भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' हासिल करने वाले पहले व्यक्ति हैं। उन्हें 1957 में भारत सरकार ने यह अवार्ड दिया था।

    ओलंपिक गोल्ड

    भारत को लगातार तीन ओलंपिक में गोल्ड मेडल जिताया

    1948 में लंदन में हुए ओलंपिक के फाइनल में भारत में ग्रेट ब्रिटेन को 4-0 से हराया था जिसमें से भारत के लिए पहले दो गोल बलबीर सिंह ने किए थे।

    1952 में फिनलैंड के हेल्सिंकी ओलंपिक में भारत ने गोल्ड मेडल जीता और टूर्नामेंट में भारत के 13 में से नौ गोल बलबीर ने दागे।

    1956 ओलंपिक में बलबीर ने पहले मुकाबले में ही पांच गोल दागे और भारत ने लगातार तीसरा गोल्ड मेडल जीता।

    जानकारी

    बलबीर के नाम है एक ओलंपिक मैच में सबसे ज़्यादा गोल दागने का रिकॉर्ड

    1952 ओलंपिक में नीदरलैंड के खिलाफ भारत की 6-1 की जीत में बलबीर ने पांच गोल अकेले दागे थे। एक ओलंपिक मुकाबले में सबसे ज़्यादा व्यक्तिगत गोल्स का उनका यह रिकॉर्ड अभी तक कोई खिलाड़ी तोड़ नहीं सका है।

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