हॉकी विश्व कप: नीलम संजीप ने कैसे तय किया अंधेरे गांव से भारतीय टीम का सफर?
क्या है खबर?
हॉकी विश्व कप में शु्क्रवार को भारतीय टीम स्पेन के खिलाफ अपना सफर शुरू करने जा रही है। 46 साल बाद भारतीय हॉकी टीम के पास अपनी सरजमीं पर खिताब जीतने का मौका होगा।
विश्व कप का आयोजन ओडिशा में किया जा रहा है और यहीं के खिलाड़ी नीलम संजीप खेस टीम का हिस्सा हैं।
उनकी कहानी बहुत प्रेरणादायक है। पांच साल पहले तक उनके गांव में बिजली तक नहीं थी।
आइए इस डिफेंडर के संघर्ष पर एक नजर डालते हैं।
हॉकी
पांच साल पहले तक संजीप के गांव में नहीं थी बिजली
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 24 साल के संजीप ने 21 साल की उम्र में पहली बार राउरकेला में स्थित अपने गांव कादोबहाल में बिजली की चमक देखी थी। आज वह 21 हजार दर्शक क्षमता वाले बिरसा मुंडा स्टेडियम में स्पेन के खिलाफ डेब्यू कर सकते हैं।
उन्होंने एक ऐसे मैदान पर हॉकी खेलना शुरू किया था जिसमें घास तक नहीं थी। उस मैदान के दोनों गोलपोस्ट पर फटा हुआ नेट लगा हुआ है।
कहानी
खेत में काम करने के बाद हॉकी खेलते थे नीलम
नीलम खेस बताते हैं, " सात साल की उम्र में मैं स्कूल ब्रेक में भाई के साथ हॉकी खेलता था। घर आने के बाद आलू और फूलगोभी की खेत में काम करता था। पहले मैं टाइम पास के लिए खेलता था, लेकिन बाद में यह शौक बन गया।"
उन्होंने कहा, "मैं डिफेंडर इसलिए बना क्योंकि अन्य लोग फॉरवर्ड के तौर पर खेलना और गोल करना पसंद करते थे। हमारे गांव में कोई बड़ा सपना नहीं देखता, क्योंकि करंट नहीं था।"
विश्व कप
2010 में सब बदल गया
साल 2010 में नीलम को सुंदरगढ़ में स्पोर्ट्स हॉस्टल के लिए चुना गया था।
उन्होंने कहा, "तभी मुझे पता चला कि आप हॉकी खेलकर पैसा कमा सकते हैं। इज्जत भी मिलती है। इसलिए मैंने कड़ी मेहनत की और फिर जब मैंने 2012 में लंदन ओलंपिक देखा तो मैंने खुद के लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया कि भारत के लिए खेलना है।"
उन्होंने कहा, "मेरे माता-पिता ने हॉकी स्टिक खरीदने और अन्य आवश्यकताओं के लिए पैसे तक उधार लिए थे।''
डिफेंडर
वीरेंद्र लाकड़ा ने किया सपोर्ट
स्थानीय कोच तेज कुमार सेस ने उन्हें डिफेंडिंग की कला सिखाई। जब उन्हें अपने पहले राष्ट्रीय शिविर के लिए चुना गया तो हॉकी के स्टार खिलाड़ी बीरेंद्र लाकड़ा ने उन्हें अपने साथ ले लिया।
नीलम ने कहा, "उन्होंने मुझे अपने भाई के रूप में देखा और मुझे बहुत सी चीजें सिखाईं जो मैं आज जानता हूं। जैसे- टैकल करना, पोजिशनिंग करना, मैदान पर दबाव की स्थिति से कैसे बाहर निकलना है। ये सब उन्होंने ही सिखाया है।"