सावधान! यूट्यूब पर सबसे ज्यादा देखे गए हर चार कोरोना वायरस वीडियो में से एक गलत
क्या है खबर?
अगर आपने यूट्यूब पर कोरोना वायरस से जुड़ा कोई वीडियो देखा हो तो हो सकता है कि वह गलत हो।
दरअसल, एक स्टडी से पता चला है कि यूट्यूब पर इंग्लिश में मौजूद कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा देखे गए हर चार में से एक वीडियो तथ्यात्मक रूप से गलत है।
हाल ही में कई वेबसाइट्स ने एक वीडियो हटाया था, जिसमें कहा जा रहा था कि कुछ लोगों ने फायदा कमाने के लिए कोरोना वायरस फैलाया है।
जानकारी
सराकारी वीडियो को मिलते हैं कम व्यूज- स्टडी
BMJ ग्लोबल हेल्थ जर्नल में छपी कनाडा के रिसर्चर की स्टडी में कहा गया है कि यूट्यूब पर सरकारों और विश्वसनीय स्त्रोतों ने भी कोरोना वायरस से जुड़े वीडियो अपलोड किए हैं, लेकिन इन्हें बाकी वीडियो की तुलना में केवल 10 प्रतिशत व्यूज मिले हैं।
बयान
क्या कहते हैं स्टडी करने वाले रिसर्चर?
स्टडी करने वाले ओट्टावा यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर ने बताया, "आम लोगों में अलग-अलग स्तर की स्वास्थ्य साक्षरता है। जब हम देखते हैं बड़ी मात्रा में किसी चीज से जुड़ी गलत जानकारी बनाई और फैलाई जा रही है तो यह काफी नुकसान पहुंचा सकती है। कोरोना वायरस संकट के बीच यूट्यूब की पहुंच बढ़ी है। रोजाना अरबों लोग इस पर वीडियो देखते हैं। इसलिए यह देखना जरूरी है कि गलत जानकारी कितने लोगों तक पहुंच रही है।"
स्टडी
स्टडी में शामिल किए गए 75 वीडियो
रिसर्चर ने इस स्टडी के लिए यूट्यूब पर 'कोरोना वायरस' और 'COVID-19' कीवर्ड्स से सर्च करने पर आने वाले शीर्ष 75 वीडियो को चुना। ये सभी वीडियो इंग्लिश में थे और इनकी लंबाई एक घंटे से कम थी।
रिसर्चर ने बताया कि स्टडी में पता चला कि इनमें से 25 प्रतिशत से ज्यादा वीडियो में गलत तथ्य और गलत जानकारियां थीं। इन्हें 62 करोड़ बार देखा जा चुका है।
वहीं कुल में 47 प्रतिशत वीडियो मीडिया संगठनों के थे।
स्टडी
लोगों को आकर्षित नहीं कर पाते सरकारों के डाले वीडियो- स्टडी
रिसर्चर ने कहा, "सबसे ज्यादा देखा जाने वाला वीडियो, जिसे 2 करोड़ व्यूज मिले थे, एक यूट्यूब और टेलीविजन सेलिब्रिटी ने बनाया है। वहीं सबसे ज्यादा देखे गए किसी सरकारी वीडियो को 40 लाख बार देखा गया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारें अपने वीडियो में इंफोग्राफिक, पोस्टर और वेबसाइट्स के आंकड़े देती हैं, जो लोगों को कम आकर्षित करते हैं। साथ ही कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए इन्हें समझना मुश्किल होता है।"
जानकारी
"भारत में विकराल हो सकती है समस्या"
इस बारे में बात करते हुए IIT दिल्ली के प्रोफेसर और पीवी इलावरसन ने कहा कि भारतीय संदर्भ में विस्तृत व्याख्या की जरूरत है। भारत में यह समस्या और विकराल हो सकती हैं क्योंकि यहां ऐसे वीडियो मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर भी भेजे जाते हैं।
बयान
बड़ों के भेजे मैसेज पर भरोसा कर लेते हैं भारतीय- इलावरसन
इलावरसन ने कहा, "अधिकतर भारतीय कभी-कभार ही सूचना पाने के लिए सीधा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जाते हैं। इसकी एक वजह ये है कि वो बड़े या दूसरे लोगों के भेजे मैसेज पर बिना सोचे-समझे भरोसा कर लेते हैं। इसके बाद सूचना को लेकर समझ का अभाव है। कई लोग गलत जानकारी का भेद नहीं कर पाते। इसके अलावा कई बार किसी वीडियो के छोटे हिस्से को काटकर या वीडियो को गलत संदर्भ में पेश किया जाता है।"