राम मंदिर निर्माण के लिए बने विशेष कानून, अब इंतजार नहीं कर सकते- उद्धव ठाकरे
शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सोमवार को कहा कि राम मंदिर निर्माण का काम बिना किसी देरी के शुरू होना चाहिए। अगर मंदिर निर्माण में कोर्ट की वजह से देरी होती है तो इसके लिए विशेष कानून बनना चाहिए। साथ ही मोदी सरकार में भरोसा जताते हुए ठाकरे ने कहा, "जैसे सरकार काम कर रही है, हमारी उम्मीदें बढ़ी हैं कि अयोध्या में जल्द ही मंदिर का निर्माण शुरू होगा। अब इंतजार का कोई मतलब नहीं है।"
विधानसभा चुनावों से पहले आया है ठाकरे का यह बयान
ठाकरे का यह बयान उस वक्त पर आया है जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मुहाने पर है। ठाकरे ने कहा, "हमने राम मंदिर पर विशेष कानून की मांग की है। हमें और इंतजार नहीं करना चाहिए। कोर्ट से इस मामले में देरी हो रही है इसलिए तुरंत एक विशेष कानून बनाया जाना चाहिए।" उन्होंने आगे कहा कि जैसे सरकार ने अनुच्छेद 370 को लेकर तेजी दिखाई थी, वैसा ही इस मामले में भी होना चाहिए।
शिवसैनिकों को तैयार रहने के आदेश- ठाकरे
उन्होंने शिवसैनिकों से मंदिर की नींव की पहली ईंट रखने को तैयार रहने को कहा है। उन्होंने कहा, "हमने शिव सेना कैडर को आदेश दिया है कि अयोध्या में मंदिर की नींव रखने के लिए तैयार रहें। यह मामला हमारे संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के दिनों से चला आ रहा है।" ठाकरे ने कहा कि बाबरी मस्जिद की घटना के समय से हमने कहा है कि वहां मंदिर बनना चाहिए, पूरे देश में मंदिर बनना चाहिए।
अयोध्या मामले में फिर से मध्यस्थता की मांग
अयोध्या मामले में एक फिर से मध्यस्थता की मांग की गई है। सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्वाणी अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल को पत्र लिखकर फिर से मध्यस्थता की कोशिश शुरू करने का आग्रह किया है। मध्यस्थता पैनल ने मेमोरेंडम के जरिए सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है। इस पैनल में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एफएम कलीफुल्ला, सीनियर वकील श्रीराम पंचू और श्री श्री रविशंकर शामिल हैं। बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने यह पैनल बनाया था।
असफल रही थी मध्यस्थता की कोशिशें
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने का सुझाव देते हुए तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल बनाया था। इस पैनल ने बातचीत के जरिए कोर्ट से बाहर इस मामलो को सुलझाने की कोशिश की थी। लगभग पांच महीनों की कोशिश के बाद भी मामले से जुड़े पक्ष किसी समझौते पर नहीं पहुंच पाए। इसके बाद अगस्त से सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच इस मामले पर नियमित सुनवाई कर रही है।
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने की बातचीत की पेशकश
अब तक जमीन के मालिकाना हक जता रहे सुन्नी वक्फ बोर्ड बातचीत के जरिए इस मामले को सुलझाना चाहता है। वहीं निर्वाणी अखाड़े ने भी बातचीत की इच्छा जाहिर की है। हालांकि, यह राम जन्मभूमि विवाद से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा है। यह अखाड़ा उन तीन प्रमुख अखाड़ों में से है जो हनुमान गढ़ी मंदिर की देखरेख करते हैं। निर्वाणी अखाड़े की बात से निर्मोही अखाड़े ने भी सहमति जताई है।
क्या है राम जन्मभूमि विवाद?
अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित स्थल पर खड़ी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था और मुख्य विवाद इससे संबंधित 2.77 एकड़ जमीन को लेकर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में दिए अपने फैसले में विवादित भूमि को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश और रामलला विराजमान के बीच तीन हिस्सों में बांट दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थी।