गुजरात में कांग्रेस को झटका, 10 बार के विधायक मोहन राठवा इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल
गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस पार्टी को मंगलवार को बड़ा झटका लगा है। वरिष्ठ नेता और 10 बार के विधायक मोहन सिंह राठवा ने पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। इस दौरान उनके दो बेटों ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। राठवा ने अपने फैसले की घोषणा करते हुए गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष जगदीश ठाकोर को इस्तीफा भेजा था। इसमें उन्होंने कोई कारण नहीं बताया है।
राठवा ने इस्तीफा देने के बाद ली भाजपा की सदस्यता
राठवा ने कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद अपने दो बेटों के साथ भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। उन्हें मध्य गुजरात के प्रभारी भार्गव भट्ट और प्रदेश महामंत्री प्रदीप सिंह वाघेला ने भाजपा की सदस्यता दिलाई। इस दौरान उन्होंने कहा कि उन्हें भाजपा के कार्यालय कमलम में आने का मौका मिला है। यह बड़े सौभाग्य की बात है। उन्हें यह मौका भाजपा नेता और सहकारी क्षेत्र के अग्रणी दिलीप संघाणी के कारण ही मिल पाया है।
चुनाव लड़ने में नहीं है कोई दिलचस्पी- राठवा
राठवा ने कहा, "मेरी किसी भी पार्टी से चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरा किसी से कोई विवाद नहीं है। यह बातें कि कांग्रेस ने मुझे टिकट देने से इनकार कर दिया और इसलिए मैंने पार्टी छोड़ दी, सच नहीं है।" उन्होंने कहा, "मैं अपने बेटों और समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हुआ हूं, क्योंकि मैं चाहता हूं कि मेरी अगली पीढ़ी लोगों के विकास के लिए काम करे। भाजपा विकास के रास्ते पर चल रही है।"
राठवा ने क्या बताया भाजपा में शामिल होने का कारण?
राठवा ने कहा, "वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा राज्य और देश के आदिवासी क्षेत्रों में किए गए कार्यों से प्रभावित हैं। इसी कारण मैंने भाजपा में शामिल हुआ हूं। भाजपा मेरे बेटे को आवश्यक रूप से टिकट देगी।"
क्या है राठवा के कांग्रेस छोड़ने का कारण?
राज्य कांग्रेस प्रमुख जगदीश ठाकोर को भेजे गए अपने इस्तीफे में मध्य गुजरात के वरिष्ठ आदिवासी नेता राठवा ने पार्टी छोड़ने का कोई विशेष कारण नहीं बताया है। हालांकि, यह माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी की तरफ से उनके स्थान पर उनके बेटे को टिकट देने से इंकार कर दिया था। इसी से नाराज होकर उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने का फैसला किया है। भाजपा ने उनके बेटे को विधानसभा चुनाव में टिकट देने का आश्वासन दिया है।
कैसा रहा है राठवा का राजनीतिक सफर?
राठवा छोटा उदयपुर (अनुसूचित जनजाति) निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और 11 बार आदिवासी आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें से 10 बार उन्हें जीत हासिल हुई है। वह साल 1972 में मानेक तड़वी को हराकर जनता पार्टी के टिकट पर जैतपुर विधानसभा सीट से पहली बार विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद साल 1975 में वह उस समय चर्चा में आए जब उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमन भाई पटेल को हराया था।
राठवा को किन चुनावों में मिली थी जीत?
राठवा 1975 में बाबूभाई जशभाई पटेल के नेतृत्व वाली सरकार में मत्स्य पालन मंत्री बने थे। उसके बाद उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर साल 1980 और 198 और 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीता था। वह गुजरात सरकार में पंचायत और वन मंत्री भी रहे हैं। वह साल 1995 में छठी बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने और उसके बाद 1998, 2007, 2012 और 2017 में भी कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी।
2002 के चुनाव में मिली थी एकमात्र हार
विधानसभा चुनाव में उनकी एकमात्र हार 2002 के गुजरात विधानसभा चुनाव में हुई थी। इस चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतरे थे, लेकिन उन्हें भाजपा उम्मीदवार वेछतभाई बारिया से हार का सामाना करना पड़ा था। इसी तरह उन्होंने 1980 और 1984 में छोटा उदयपुर सीट से जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन दोनों ही बार उन्हें हार झेलनी पड़ी थी। वह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार थे।