
शिबू सोरेन का राजनीतिक सफर कैसा रहा और झारखंड के गठन में कैसे निभाई थी भूमिका?
क्या है खबर?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह 81 साल की उम्र में निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गगांराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके बेटे और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन की जानकारी दी है। शिबू पिछले लंबे समय से बीमार चल रहे थे। आइए जानते हैं कि उनका राजनीतिक सफर कैसा रहा और उन्होंने झारखंड के गठन में किस तरह से अहम भूमिका निभाई थी।
परिचय
कैसा रहा शिबू का शुरुआती सफर?
शिबू सोरेन का जन्म बिहार के हजारीबाग में 11 जनवरी] 1944 को हुआ था। वह दिशोम गुरु के नाम से मशहूर थे। उनके पिता सोबरन मांझी आदिवासी समुदाय से थे और काफी पढ़े-लिखे थे। बतौर शिक्षक उन्होंने अपने समुदाय के लोगों से महंगा ब्याज लेकर उधार देने वाले महाजनों के खिलाफ आवाज उठाई। इसी के चलते उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद कॉलेज में पढ़ रहे शिबू ने आदिवासी समुदाय को एकजुट कर महाजनों के खिलाफ खड़ा कर दिया।
गठन
शिबू ने 1972 में किया JMM का गठन
शिबू को 1971 में बांग्लादेश की आजादी ने खासा प्रभावित किया। इसके बाद 4 फरवरी, 1972 को उन्होंने कॉमरेड एके राय और विनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर राजनीतिक दल के रूप में JMM का गठन कर दिया। इस संगठन ने अलग झारखंड राज्य बनाने की मांग उठाते हुए आंदोलन को तेज कर दिया। उनका यह आंदोलन 28 साल तक जारी रहा और साल 2000 में आखिरकार बिहार से अलग होकर झारखंड एक नया राज्य बन गया।
राजनीति
कैसा रहा शिबू का राजनीतिक सफर?
साल 1972 में JMM के गठन के बाद शिबू ने लोगों ने जोर-शोर से प्रचार करना शुरू कर दिया और लोगों को अलग राज्य की मांग के लिए एकजुट किया। आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव का ऐलान हुआ और शिबू ने बिहार की दुमका सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि, इस चुनाव में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार बेटेश्वर हेम्ब्रम के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, इसके बाद भी शिबू ने हार नहीं मानी।
जीत
इस तरह शुरू हुआ था शिबू की जीत का सिलसिला
साल 1980 में जनता दल की सरकार गिरने के बाद फिर से लोकसभा चुनाव हुए थे। शिबू ने उसमें भी चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया। इस बार लोगों ने उनका साथ दिया और वह पहली बार संसद पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने 1986, 1989, 1991 और 1996 में हुए चुनावों में लगातार जीत दर्ज की। हालांकि, 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के बाबूलाल मरांडी ने उन्हें हराकर उनकी लगातार जीत के सिलसिले को तोड़ दिया।
लड़ाई
शिबू ने पत्नी को भी चुनाव मैदान में उतारा
बाबूलाल मरांडी से हार के बाद शिबू ने अगले चुनाव में अपनी पत्नी रूपी सोरेन को उतार दिया, लेकिन इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, साल 2004, 2009 और 2014 के चुनावों में शिबू ने वापसी करते हुए फिर से लगातार जीत दर्ज की। इस दौरान शिबू सबसे ज्यादा बाद सांसद का चुनाव जीतने वाले नेताओं में गिने जाने लग गए। वह दुमका सीट से लगातार 8 बार चुनाव जीतने में सफल रहे थे।
पद
अपने सफर में इन पदों पर आसीन रहे शिबू
शिबू साल 1986 में JMM के महासिचव बने और 8 जुलाई, 1998 से 18 जुलाई, 2001 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इसी तरह वह 10 अप्रैल, 2002 से 2 जून, 2002 तक राज्यसभा के सदस्य रहे, मई 2004 से 10 मार्च, 2005 तक केंद्र में कोयला मंत्री रहे, लेकिन जुलाई 2004 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह 2 मार्च, 2005 से 11 मार्च, 2005 तक झारखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली।
अन्य
इन पदों पर भी रहे थे शिबू
शिबू 29 जनवरी, 2006 से 28 नवंबर, 2006 तक फिर से केंद्रीय कोयला मंत्री बने, लेकिन 26 नवंबर 2006 को केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद 31 अगस्त, 2009 को कोयला और स्टील की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य बने, 23 सितंबर, 2009 को वेतन और भत्तों की संयुक्त समिति के सदस्य बने, 7 अक्टूबर, 2014 में खाद्य आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों की स्थायी समिति के सदस्य बने और स्टील मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे।