महाराष्ट्र: कैसे उद्धव गुट के विधायकों का अयोग्य घोषित न होना भाजपा के लिए फायदेमंद?
क्या है खबर?
महाराष्ट्र के विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों की सदस्यता बरकरार रखी और शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बताया।
स्पीकर ने शिवसेना (शिंदे गुट) के पक्ष में फैसला सुनाने के बावजूद शिवसेना (उद्धव गुट) के विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं की।
आइए जानते हैं कि कैसे शिवसेना (उद्धव गुट) के विधायकों की सदस्यता रद्द न करना भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
फैसला
सबसे पहले जानते हैं मामला क्या है और स्पीकर ने क्या फैसला दिया
वर्ष 2022 शिवसेना में टूट हुई, शिंदे गुट ने 40 विधायकों के साथ भाजपा के साथ सरकार बनाई। फिर उद्धव ठाकरे और शिंदे में 'असली शिवसेना' की लड़ाई शुरू हुई।
दोनों गुटों ने एक-दूसरे के विधायकों को अयोग्य करार देने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की।
इसी मामले में स्पीकर ने शिंदे गुट की तरफ से उद्धव गुट के 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने को खारिज कर कहा कि आरोपों के समर्थन में कोई सबूत पेश नहीं किये हैं।
अयोग्य
उद्धव गुट की शिवसेना के अयोग्य घोषित होने से क्या होता?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों ने कहा कि शिवसेना (उद्धव गुट) के विधायकों को यदि स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराया जाता तो इससे भाजपा की छवि खराब होती। इससे लोकसभा चुनाव से पहले ही उद्धव को पीड़ित कार्ड खेलने का मौका मिल जाता।
सूत्रों ने कहा कि शिवसेना एक ऐसी पार्टी है जो भावनाओं पर टिकी हुई है और उद्धव के विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने से आम जनता के बीच उनके प्रति सहानुभूति पैदा होती।
सहानुभूति कार्ड
उद्धव के प्रति लोगों में बढ़ी है सहानुभूति
भाजपा और महा विकास अघाड़ी (MVA) के सर्वेक्षणों में सामने आया कि उद्धव को अपने नेतृत्व वाली MVA सरकार के विभाजन और उसके पतन के बाद से जनता की सहानुभूति मिली है।
एक सूत्र ने कहा कि चुनाव आयोग (EC) द्वारा शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद उद्धव ने पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी खो दिया। इससे उनके लिए लोगों में सहानुभूति बढ़ गई और लोग इसके लिए भाजपा को जिम्मेदार मानते हैं।
शिवसेना
उद्धव का सहानुभूति कार्ड भाजपा पर पड़ सकता था भारी
सूत्र ने कहा, 'उद्धव उस भावना के मूल में हैं जो सेना को बांधे हुए है। उनके साथ कोई भी अन्याय समर्थकों और कार्यकर्ताओं को प्रभावित करता। अगर स्पीकर ने उद्धव गुट विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया होता, तो उद्धव को उस सहानुभूति को और भुनाने का मौका मिल जाता जो उन्होंने हासिल की है। अक्सर, सेना के प्रति सहानुभूति वोटों में तब्दील हो जाती है।'
अगर ऐसा होता तो इसका सीधा असर भाजपा के वोटबैंक पर पड़ता।
उद्धव
उद्धव फिर भी खेल सकते हैं अन्याय का दांव
सूत्र ने बताया कि उद्धव अभी भी सहानुभूति कार्ड खेल सकते हैं क्योंकि स्पीकर ने शिंदे गुट को असली शिवसेना बताया है। फैसले से ठीक पहले शिवसेना (उद्धव गुट) का सुप्रीम कोर्ट जाना भी उनके पक्ष में होगा क्योंकि वह पार्टी के साथ अन्याय का दांव खेलकर लोगों से वोट मांग सकते हैं।
बता दें कि उद्धव ने सुप्रीम कोर्ट मे एक हलफनामा दायर कर अयोग्यता के फैसले से पहले शिंदे और स्पीकर की मुलाकात पर आपत्ति जताई थी।
शिंदे गुट
शिंदे गुट के अयोग्य घोषित न होने से भाजपा की बची लाज
रिपोर्ट के अनुसार, स्पीकर द्वारा अगर शिंदे गुट के विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया जाता तो भाजपा के लिए यह एक शर्मनाक स्थिति बन जाती।
विश्लेषकों का कहना है कि शिंदे गुट की अयोग्यता से यह संदेश भी जनता के बीच जाता कि शिंदे के नेतृत्व वाला विद्रोह असंवैधानिक था और इसलिए जिस सरकार का वह हिस्सा था वह अवैध थी। इससे भाजपा को राज्य और देश भर में मुंह की खानी पड़ती।
लाभ
आगामी चुनावों शिवसेना में टूट से भाजपा को कैसे होगा लाभ?
साल 2019 में जब राज्य में जब विधानसभा चुनाव हुए थे तब समीकरण अलग थे।
वर्तमान में स्थिति अलग है। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) दोनों में ही 2 फाड़ हो चुके हैं। दोनों दलों की आपसी मतभेद के बीच भाजपा अपनी स्थिति को मजबूत करने में जुटी है।
इस बार शिवसेना और NCP के 2 गुट आमने-सामने होंगे जिससे वोट बंटने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता जिससे भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
बता दें कि 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में बहुमत का आंकड़ा 145 का है। 2019 के चुनावों में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं।
शिवसेना ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन बनाया था।
साल 2022 में शिवसेना में बड़ी बगावत के बाद पार्टी में 2 फाड़ हो गई और सरकार गिर गई।
इसके बाद भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) ने मिलकर सरकार बनाई।