गठबंधन के मोर्चे पर बड़ी गलतियां कर रही है कांग्रेस, सहयोगियों को बनाने में रही नाकाम
लोकसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है और सारी पार्टियां चुनाव के लिए अपनी कमर कस रही है। इस बार चुनाव में कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद जताई जा रही है और मुख्य दारोमदार दोनों तरफ के गठबंधनों पर होगा। इसलिए सारी पार्टियां अपने सहयोगियों को साधने पर लगी हुई है और कमजोर कांग्रेस के लिए यह चुनौती सबसे कड़ी है। आइए जानते हैं कि कांग्रेस अब तक अपने सहयोगियों को साधने में कितनी सफल रही है।
यूपी में सहयोगियों को किया नाराज
सबसे पहले शुरुआत दिल्ली की गद्दी के लिए सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश के साथ करते हैं। पहले राज्य में कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच महागठबंधन की चर्चा थी, लेकिन अंत में बसपा और सपा ने कांग्रेस को बाहर छोड़कर गठबंधन कर लिया। यहां मायावती ने कांग्रेस पर भाजपा को हराने के लिए उनकी पार्टी को बर्बाद करने का आरोप लगाया, वहीं अखिलेश मध्य प्रदेश सरकार में अपने विधायक को मंत्री पद न मिलने से नाराज थे।
बिहार में सीट बंटवारे पर अटकी गाड़ी
अगर बिहार की बात करें तो गठबंधन की घोषणा के बावजूद कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अभी तक सीट बंटवारे पर कोई समझौता नहीं कर पाई हैं। इसका मुख्य कारण कांग्रेस की ज्यादा सीट की जिद को माना जा रहा है। वहीं, पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ किसी भी गठबंधन को रूप देने में नाकाम रही है। बिहार में 40 और पश्चिम बंगाल में 42 लोकसभा सीट हैं और दोनों ही राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं।
आंध्र प्रदेश में कमजोर होना पड़ा भारी
कांग्रेस आंध्र प्रदेश में अपनी सहयोगी तेलगू देशम पार्टी (TDP) को भी गठबंधन के लिए बनाने में असफल रही। TDP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू खुद राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन के समर्थक रहे हैं, इसके बावजूद दोनों पार्टियों ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया। इसका एक मुख्य कारण राज्य में कांग्रेस का कमजोर होना रहा है और TDP का मानना है कि कांग्रेस का राज्य में कोई खास प्रभाव नहीं है।
AAP के मनाने के बावजूद कांग्रेस ने किया इनकार
कांग्रेस से अगर किसी एक राज्य को साधने में सबसे बड़ी गलती हुई है, तो वह है राजधानी दिल्ली। दिल्ली में सत्ता पर काबिज AAP कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए उतावली थी, इसके बावजूद कांग्रेस ने गठबंधन से साफ मना कर दिया। 2014 लोकसभा और 2015 विधानसभा चुनाव में दिल्ली में पूरी तरह से साफ होने वाली कांग्रेस का यह कदम दिखाता है कि वह जोश में होश खो रही है और अपनी संभावनाओं को अधिक आंक रही है।
ऐसे कैसे होगा रोज बड़े होते NDA के कुनबे से मुकाबला?
साफ है कि राहुल गांधी की कांग्रेस महाराष्ट्र को छोड़कर किसी भी बड़े राज्य में प्रभावी गठबंधन करने में अभी तक नाकाम रही है। मंडल आंदोलन के बाद उसका सारा वोटबैंक क्षेत्रीय पार्टियों के पास चला गया है और उसका खुद का कोई स्थाई वोटबैंक नहीं बचा। अगर पार्टी सचमुच भाजपा को हराने के लिए गंभीर है तो उसे सहयोगियों को 'थोड़ा नरम' होकर मनाने की कोशिश करनी चाहिए, तभी वह रोज बड़े होते NDA कुनबे का सामना कर पाएगी।