सोनिया गांधी से मिलीं AAP विधायक अलका लांबा, कांग्रेस में वापस जाने की अटकलें तेज
क्या है खबर?
आम आदमी पार्टी (AAP) छोड़ने का ऐलान कर चुकीं विधायक अलका लांबा मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलीं, जिसके बाद उनके वापस कांग्रेस में जाने की अटकलें तेज हो गई हैं।
सोनिया से मुलाकात के बाद लांबा ने उन्हें धर्मनिरपेक्ष विचारधारा की एक बहुत बड़ी नेता बताया।
बता दें कि दिल्ली के चांदनी चौक से विधायक लांबा ने AAP प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मतभेद के बाद पार्टी छोड़ने का ऐलान किया था।
ट्वीट
लांबा ने कहा- लंबे समय से लंबित थी सोनिया गांधी के साथ चर्चा
मंगलवार को सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अलका लांबा ने उनके साथ तस्वीर शेयर करते हुए ट्वीट किया।
उन्होंने लिखा, 'श्रीमति सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष ही नहीं UPA की चेयरपर्सन भी हैं और सेकुलर विचारधारा की एक बहुत बड़ी नेता भी। देश के मौजूदा हालात पर उनसे लंबे समय से चर्चा लंबित थी। आज मौक़ा मिला तो हर मुद्दे पर खुल कर बात हुई। राजनीति में ये विमर्श का दौर चलता रहता है और चलते रहना चाहिए।'
पृष्ठभूमि
इस वजह से शुरू हुआ अलका लांबा और AAP का टकराव
पिछले साल दिसंबर दिल्ली विधानसभा में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लिए जाने से संबंधित प्रस्ताव के पेश होने के बाद से ही अलका और AAP शीर्ष नेतृत्व में मतभेद चल रहे हैं।
अलका ने कहा था कि वह पूर्व प्रधानमंत्री का सम्मान करती हैं और इसलिए उन्होंने प्रस्ताव का विरोध किया था।
बिना पार्टी लाइन जानें मुद्दे पर मीडिया से बातचीत करने के लिए पार्टी ने अलका पर पाबंदी लगा दी थी।
टकराव
दो बार लांबा को AAP विधायकों के व्हाट्सऐप ग्रुप से निकाला गया
घटना के बाद अलका लांबा को दो बार AAP विधायकों के व्हाट्सऐप ग्रुप से निकाल दिया गया और उन्हें पार्टी में किनारे कर दिया गया।
इस लंबे चले टकराव के बाद लांबा ने 26 मई को 2020 में AAP छोड़ने का ऐलान किया था।
अपने इस ऐलान से पहले लांबा ने अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापस जाने की इच्छा भी जताई थी।
तब उनके कांग्रेस के कुछ नेताओं से मिलने की खबरें भी सामने आईं थीं।
राजनीतिक सफर
कांग्रेस में छात्र नेता के तौर पर की थी लांबा ने शुरूआत
बता दें कि अलका लांबा ने 1994 में छात्र नेता के तौर पर कांग्रेस से शुरूआत की थी।
इसके बाद वह 2002 में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की महासचिव बनीं।
2003 वह कांग्रेस की टिकट पर मोती नगर सीट से भारतीय जनता पार्टी नेता मदनला खुराना के खिलाफ विधानसभा चुनाव भी लड़ीं, लेकिन हार गईं।
AAP के उभार के बाद 2013 में उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया था और 2015 में चांदनी चौक से विधायक चुनी गईं।