सुप्त पदांगुष्ठासन: जानिए इस योगासन के अभ्यास का तरीका, इसके लाभ और अन्य महत्वपूर्ण बातें
सुप्त पदांगुष्ठासन चार शब्दों (सुप्त, पद, अंगुष्ठ और आसन) के मेल से बना है। इसमें सुप्त का मतलब लेटना, पद का मतलब पैर, अंगुष्ठ का अर्थ पैर का अंगूठा और आसन का मतलब मुद्रा है। अगर आप रोजाना सुप्त पदांगुष्ठासन का अभ्यास करते हैं तो इससे आपको कई तरह के स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं। चलिए आज आपको इस योगासन के अभ्यास का तरीका और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
सुप्त पदांगुष्ठासन कैसे किया जाता है?
सबसे पहले योगा मैट पर पीठ के बल सावधान मुद्रा में लेट जाएं और फिर सांस भरते हुए अपने दाएं पैर को ऊपर उठाएं। ध्यान रखें कि इस दौरान आपके दोनों पैर घुटने से न मुड़ें। इसके बाद सांस छोड़ते हुए अपने दाएं हाथ से अपने दाएं पैर के अंगूठे को पकड़ने की कोशिश करें। इस मुद्रा में कुछ सेकेंड रहने के बाद इसी प्रक्रिया को अपने बाएं पैर से दोहराएं। कुछ मिनट बाद यह आसन छोड़कर थोड़ा विश्राम करें।
अभ्यास के दौरान जरूर बरतें ये सावधानियां
अगर आपको रीढ़ की हड्डी या फिर सिर से संबंधित कोई समस्या है तो आपको इस योगासन का अभ्यास करने से बचना चाहिए। अगर इस योगासन का अभ्यास करते समय आपके हाथ या फिर पैर में दर्द होता है तो भी इस योगासन का अभ्यास न करें। इसके अलावा अगर आपको पेट संबंधित कोई समस्या है या आपकी कोई सर्जरी हुई है तो भी इस योगासन का अभ्यास न करें।
सुप्त पदांगुष्ठासन के रोजाना अभ्यास से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ
इस आसन से पैरों का ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है और हैमस्ट्रिंग की मांसपेशियों की क्षमता बढ़ती है। यह पैरों की अतिरिक्त चर्बी और दौड़ने के बाद होने वाली थकान को कम करता है। यह आसन साइटिका की समस्या को भी दूर करता है। इस आसन से ब्लड प्रेशर की समस्या से भी राहत मिल सकती है। यह आसन आकर्षक एब्स बनाने में भी मदद करता है। इससे शरीर की मुख्य मांसपेशियों को भी मजबूती मिलती है।
सुप्त पदांगुष्ठासन के अभ्यास से जुड़ी खास टिप्स
इस आसन का अभ्यास करते समय सिर को जमीन से बिल्कुल भी न उठाएं। अगर आसन का अभ्यास करते समय आप पैरों को सीधा ऊपर उठाने में असमर्थ हों तो घुटने से मोड़ते हुए पैरों को ऊपर उठाएं। अगर पैरों को 90 डिग्री तक नहीं उठा सकते तो सुविधानुसार अधिकतम ऊपर उठाकर बेल्ट या फिर दुपट्टे आदि की मदद से अपनी ओर खीचें। इस योगासन के अभ्यास के दौरान अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगाएं।