अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: देश की 5 वीरांगनाएं, जिन्होंने आजादी दिलाने के लिए किया था सबकुछ न्योछावर
क्या है खबर?
दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं के अधिकारों और समानता का प्रतीक होता है।
जब बात भारत की स्वतंत्रता की आती है तो महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज करना संभव ही नहीं है।
हमारे देश में ऐसी कई वीरांगनाएं हुईं, जिन्होनें आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए और आखरी सांस तक लड़ती रहीं।
ये महिलाएं अपनी वीरता और बलिदान के जरिए इतिहास के पन्नों में अमर हो गई हैं।
#1
रानी लक्ष्मी बाई
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भारत की सबसे वीर स्वतंत्रता सैनानियों में से एक थीं। साल 1857 के विद्रोह के दौरान अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अंग्रेजों को धूल चटा दी थी।
उनके पति राजा गंगाधर राव के निधन के बाद जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने का प्रयास किया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने उनका डटकर मुकाबला किया।
उन्होंने 7 दिन तक वीरतापूर्वक युद्ध किया और वीर गति को प्राप्त हुईं।
#2
झलकारी बाई
झांसी में केवल रानी लक्ष्मीबाई ही नहीं, बल्कि झलकारी बाई की गौरव गाथा गई जाती है। वह हमेशा से निडर और साहसी थीं और उन्होंने बचपन में एक बाघ को अकेले मार गिराया था।
उनका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक से हुआ था और वह उनकी दुर्गा दल नामक महिला शाखा की सेनापति बन गई थीं।
वह रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं और उन्होंने अंग्रेजी शाशकों को चकमा देते हुए झांसी की रानी की जान बचाई थी।
#3
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू को 'भारत की कोकिला' के नाम से जाना जाता है। वह एक कवियित्री थीं और भारत की स्वतंत्रता की कट्टर समर्थक थीं।
महात्मा गांधी और अन्य सेनानियों के साथ मिलकर उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सरोजिनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थीं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के मार्ग को प्रभावित किया था। उनके योगदान को भारत कभी भी भुला नहीं पाएगा।
#4
बेगम हजरत महल
अवध की रानी बेगम हजरत महल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुए विद्रोह की एक महत्वपूर्ण नेता थीं।
अपने पति के निर्वासित होने के बाद उन्होंने देश को बचाने के लिए साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों का विरोध करने के लिए सेनाएं भी जुटाई थीं।
उन्होंने अपने बेटे को नवाब घोषित किया था और सत्ता अपने हाथों में ही रखी थी। उन्होंने नेपाल में अपनी अंतिम सांस ली थी, जहां विद्रोह को कुचलने के बाद उन्होंने अपने दिन बिताए थे।
#5
रामदेवी चौधरी
रमादेवी चौधरी 1921 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं थीं। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर वे लोगों को असहयोग आंदोलन में शामिल करने के लिए घर-घर गई थीं।
उन्होंने नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया था और स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष के दौरान कई बार जेल भी गईं थीं।
आजादी के बाद भी उन्होंने सामाजिक कार्यों में शामिल होना जारी रखा और आदिवासियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए।