भारतीय राज्यों में पहनी जाने वाली 5 लोकप्रिय पारंपरिक पगड़ियां
भारत में पगड़ी पहनने की परंपरा बहुत पुरानी है। यह न केवल एक फैशन स्टेटमेंट है, बल्कि संस्कृति और पहचान का प्रतीक भी है। अलग-अलग राज्यों में पगड़ी बांधने के अलग-अलग तरीके होते हैं, जो वहां की संस्कृति और परंपराओं को दर्शाते हैं। पगड़ी पहनने का तरीका भी खास होता है, जो पहनने वाले को एक विशिष्ट पहचान देता है। इस लेख में हम कुछ प्रमुख पारंपरिक पगड़ियों के बारे में जानेंगे।
राजस्थानी की मोठड़ा
राजस्थान की पगड़ी को मोठड़ा कहा जाता है, जो अपनी रंग-बिरंगी और आकर्षक डिजाइन के लिए जानी जाती है। यहां की पगड़ियों में ज्यादातर चमकीले रंगों का उपयोग होता है, जो राजस्थान की जीवंतता को दर्शाता है। इसे बांधने का तरीका भी खास होता है, जिसमें कई बार कपड़े को मोड़कर सिर पर लपेटा जाता है। यह न केवल सिर को धूप से बचाता है, बल्कि पहनने वाले को एक शाही लुक भी देता है।
पंजाबियों की पग
पंजाब में पगड़ी को दस्तार और पग कहा जाता है। यहां की पगड़ियां सादगी और गरिमा का प्रतीक होती हैं। इन्हें बांधना आसान होता है और ये दिखने में बेहद सुंदर लगती हैं। पंजाबी पुरुष अक्सर सफेद या हल्के रंगों की पगड़ियां पहनते हैं, जो उनकी पोशाक के साथ मेल खाती हैं। इसे बांधते समय कपड़े को सिर पर गोल-गोल घुमाया जाता है, जिससे यह अच्छी तरह से फिट हो जाती है।
महाराष्ट्र की फेटा
महाराष्ट्र में फेटा नामक विशेष प्रकार की पगड़ी पहनी जाती है, जिसे खासतौर पर उत्सवों और समारोहों में पहना जाता है। फेटा आमतौर पर लाल या भगवा रंग का होता है और इसे बड़े ही गर्व से पहना जाता है। इसे बांधते समय कपड़े को माथे के चारों ओर कसकर लपेटा जाता है, जिससे यह मजबूती से टिकता रहता है और पहनने वाले को एक विशिष्ट पहचान मिलती है।
गुजरात की साफा
गुजरात में साफा नामक विशेष प्रकार की पगड़ी पहनी जाती है, जो सरलता और सौंदर्य दोनों का संगम होती है। साफा आमतौर पर हल्के रंगों का होता है और इसे बांधना भी काफी आसान होता है। इसमें कपड़े को सिर पर गोल-गोल घुमाकर बांधा जाता है, जिससे यह आरामदायक महसूस होती है और पहनने वाले को एक खास पहचान देती है।
दक्षिण भारत की मुंडास
दक्षिण भारत में मुंडास नामक पारंपरिक टोपियां पहनी जाती हैं, जो वहां की संस्कृति का अहम हिस्सा होती हैं। मुंडास आमतौर पर सफेद या हल्के पीले रंग का होता है, जिसे सिर के चारों ओर कसकर बांधा जाता है। यह न केवल धूप से बचाव करता है, बल्कि पहनने वाले को एक विशिष्ट पहचान भी देता है। इस तरह विभिन्न राज्यों की पारंपरिक पगड़ियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखती हैं और हमें एक अनूठी पहचान भी देती हैं।