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    विलुप्त होने की कगार पर हैं ये भारतीय वाद्य यंत्र, पहले नहीं सुना होगा इनका नाम

    विलुप्त होने की कगार पर हैं ये भारतीय वाद्य यंत्र, पहले नहीं सुना होगा इनका नाम

    लेखन सयाली
    May 25, 2025
    06:23 pm

    क्या है खबर?

    भारत में संगीत को भगवान द्वारा तोहफे में दी गई कला माना जाता है। यह कला देश के समृद्ध इतिहास का अहम हिस्सा रही है, जिसमें कई अनोखे वाद्य यंत्र शामिल रहे हैं।

    ये गीतों को और मधुर बना देते हैं और मन को सुकून पहुंचाते हैं। वीणा, सितार, सारंगी और ढोलक जैसे वाद्य यंत्रों के बारे में तो हम सभी जानते हैं।

    हालांकि, कई ऐसे भारतीय वाद्य यंत्र भी हैं, जो विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए हैं।

    #1

    मोरचंग

    मोरचंग धातु से बना एक वाद्य यंत्र होता है, जिसे मुख्य रूप से राजस्थान, दक्षिण भारत और सिंध में बजाया जाता है।

    इसे मुंह से बजाया जाता है और इसमें धातु की एक जीभ बनी होती है, जिसे उंगलियों से झटककर ध्वनि उत्पन्न की जाती है।

    पहले के समय में यह पारंपरिक कार्यक्रमों का हिस्सा जरूर रहता था, लेकिन दुख की बात है कि अब इसे न के बराबर इस्तेमाल किया जाता है।

    #2

    मयूरी

    मयूरी पंजाब का एक तार वाला वाद्य यंत्र है, जिसे ताऊस भी कहते हैं। यह मोर के आकार वाली वीणा है, जिसमें मोर के पंख भी लगाए जाते हैं।

    माना जाता है कि इस वाद्य यंत्र को सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने बनाया था। पहले के समय में गुरबाणी गाते समय सिख लोग इसका इस्तेमाल करते थे।

    हालांकि, समय के साथ इसका उपयोग कम होता चला गया और अब यह यंत्र दिखना ही बंद हो गया।

    #3

    नागफनी

    नागफनी उत्तराखंड का एक पारंपरिक वाद्य यंत्र है, जो तांबे या पीतल से बना होता है।

    इस वाद्य यंत्र का आगे का हिस्सा नाग या सांप के मुंह की तरह दिखता है, इसलिए इसका नाम नागफनी रखा गया।

    आमतौर पर बाबा-साधु इस यंत्र को अपने साथ लेकर घूमते थे। वह इसे धार्मिक और सामाजिक समारोहों बजाया करते थे।

    माना जाता है कि इसका उपयोग युद्ध के दौरान सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए भी होता था।

    #4

    याज्ह

    याज्ह तमिलनाडु का एक प्राचीन तार वाला वाद्य यंत्र है, जो एक प्रकार की वीणा होती है। माना जाता है कि यह वाद्य यंत्र करीब 2,000 साल से भी ज्यादा पुराना है।

    इसमें पतले-पतले तार लगे होते हैं, जिन्हें दोनों हाथों से बजाय जाता है। इसका नाम यालि नाम के एक पौराणिक पशु से प्रेरित हो कर रखा गया था, क्योंकि इसका आकार उस जानवर जैसा ही होता है।

    अब यह यंत्र केवल संग्रहालयों में ही नजर आता है।

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