राजस्थान की प्रचलित लोक कला है पिछवाई, जानिए इसका इतिहास और करने का तरीका
क्या है खबर?
पिछवाई चित्रकला राजस्थान की सबसे मशहूर और चर्चित कला है, जिसे नाथद्वारा शैली भी कहा जाता है।
इसकी शुरुआत नाथद्वारा में की गई थी और इसके जरिए भगवान कृष्ण की जीवन, लीलाओं और धार्मिक कथाओं को दर्शाया जाता है। आपको राजस्थान के मंदिरों की दीवारों पर ये चित्रकला देखने को मिल जाएगी।
आज के लेख में इस दुर्लभ कला का इतिहास, महत्त्व और अन्य महत्वपूर्ण बातें जानिए, साथ ही इसे करने का आसान तरीका भी सीखिए।
विवरण
क्या होती है पिछवाई कला?
पिछवाई एक प्राचीन चित्रकला है, जिसकी मदद से कपड़ों पर सुंदर चित्र बनाए जाते हैं।
'पिछवाई' शब्द का मतलब होता है 'पीछे की ओर लटकना' क्योंकि इन चित्रों को मंदिरों में मूर्ति के पीछे लटकाया जाता है।
ये पेंटिंग भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी लीलाओं को दर्शाती हैं और पुष्टिमार्ग संप्रदाय के लोग इस कला के जरिए श्री कृष्ण के स्थानीय रूप 'श्रीनाथजी' की पूजा के दृश्यों को चित्रित करते हैं।
इतिहास
क्या है इस चित्रकला का इतिहास?
पिछवाई चित्रकला की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आस-पास राजस्थान के नाथद्वारा में हुई थी।
शुरू में इस कला को नाथद्वारा मंदिर में श्रीनाथजी की मूर्ति के पीछे लटकाने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था।
यह कला समय के साथ विकसित होती गई, इसमें बदलाव आते गए और इसे आम लोग द्वारा भी किया जाने लगा।
इस चित्रकला को सबसे पहले वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित पुष्टिमार्ग संप्रदाय के लोगों ने करना शुरू किया था।
तरीका
इस कला में कैसे बनाए जाते हैं चित्र?
पिछवाई पेंटिंग बनाने के लिए सबसे पहले कपड़े को अच्छी तरह साफ करके सुखाया जाता है और पेंसिल से उस पर चित्र बनाया जाता है।
जब कलाकार अपने चित्र से संतुष्ट हो जाता है तब वह ब्रश की मदद से उसमें प्राकृतिक रंग भरना शुरू कर देता है।
ये चित्रकारी आमतौर पर हाथ से बुने कपड़े पर की जाती है, जिसे इमली के बीज के पेस्ट और चूने के मिश्रण से चिकना किया जाता है और रंगा जाता है।
महत्व
क्या है इस चित्रकला का महत्व?
केवल पुष्टिमार्ग परंपरा में ही नहीं, बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में भी पिछवाई चित्रकला को महत्वपूर्ण माना जाता है।
इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से हिंदू देवी-देवताओं की कहानियां व्यक्त करने के लिए किया जाता है। इस कला की मदद से राजस्थानी मंदिरों की दीवारें सजाई जाती हैं।
यह कला राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है और भारत सरकार द्वारा इसके सांस्कृतिक महत्व को मान्यता भी दी गई है।