कागज की नांव से लेकर बारिश में भीगने तक, मानसून की यादें ताजा करेंगे ये पल
क्या है खबर?
मानसून के दौरान आसमान से गिरती बारिश की बूंदों में भीग जाना किसे अच्छा नहीं लगता। यह वह मौसम है, जिसका सभी लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है।
बरसात पेड़-पौधों को हरा-भरा कर देती है और वातावरण ठंडी हवाओं और मिट्टी की भीनी खुशबु से महक उठता है।
जब-जब बारिश होती है तो बचपन के वो दिन याद आ जाते हैं, जब हम कागज की नांव बनाकर तैराया करते थे। चलिए उन सुहाने दिनों को फिर जीते हैं।
#1
कागज की नाव बनाना
मानसून की सबसे सुहानी याद वही है, जब हम अपने नन्हें-नन्हें हाथों से कागज की नाव बनाया करते थे। ये नाव कोमल तो होती थीं, लेकिन उनमें हमारी रचनात्मकता और सपने सवारी किया करते थे।
बारिश धीमी पड़ते ही सभी बच्चे अपनी-अपनी नाव पानी में तैरने के लिए लेकर आ जाते थे। सभी की दौड़ आयोजित होती थी और सबसे दूर तक जाने वाली नाव विजेता हो जाती थी।
अब अपने बच्चों के साथ कागज की नाव बनाकर खेलें।
#2
बरसात में भीगते हुए नाचना
बचपन में सभी की मां बारिश में भीगने से मना किया करती थीं, लेकिन हम उनकी बात कहां माना करते थे। बूंदे पड़ते ही हम सीधे छत पर या घर से बाहर भाग जाया करते थे।
सभी दोस्तों के साथ मिलकर बारिश में भीगना और उछल-कूद मचाना आज भी याद आता है। उस समय सभी परेशानियां भूलकर हम सड़क पर पड़े पानी में भी तैराकी करने का नाटक कर लिया करते थे।
आज की बारिश वैसी कभी नहीं लग सकती।
#3
चाय और पकौड़ों का आनंद लेना
जैसे ही बादल काले पड़ने लगते थे और बाहर ठंडी-ठंडी हवाएं चलने लगती थीं, सभी की फरमाइशें शुरू हो जाती थीं।
मां एक तरफ चाय चढ़ा देती थीं और दूसरी ओर आलू-प्याज के कुरकुरे पकौड़े तलना शुरू कर देती थीं।
बाहर गिरती बूंदों को देखते-देखते गप्पे लड़ाना, चाय की चुस्कियां लेना और गर्मा-गर्म पकौड़े खाना सबसे शानदार अनुभव हुआ करता था।
आज भी चाय और पकौड़े तो मिल जाते हैं, लेकिन उनमें पहले सी बात नहीं रहती।
#4
मोमबत्ती की रोशनी में खेलना
पुराने दिनों में बारिश होते ही लाइट काट दी जाती थी, जो कि अब नहीं होता। जैसे ही बत्ती जाती थी, पूरे घर में अंधेरा छा जाता था।
इस दौरान मोमबत्तियां पूरे घर को रोशन करने का काम करती थीं और डर को कम करती थीं।
जैसे ही माता-पिता मोमबत्ती जलाते थे, सभी भाई-बहनों का खेलना-कूदना शुरू हो जाया करता था।
हम सभी इस दौरान लूडो और सांप-सीढ़ी जैसे खेल खेलकर या कहानियां सुनकर समय बिताते थे।
#5
स्कूल में रेनी डे हो जाना
मानसून के दौरान स्कूल जाना किसी चुनौती से कम नहीं लगता था। जगह-जगह पानी भरा रहता था, जिसमें चलने से यूनिफार्म मैली हो जाया करती थी।
हालांकि, जब सुबह उठकर तैयार होने के बाद 'रेनी डे' होता था तो ऐसा लगता था मानो सारी खुशियां मिल गई हों।
फिर तो हम सीधे टीवी पर कार्टून लगाकर बैठ जाते थे, टिफिन में ही लंच किया करते थे और यूनिफार्म पहने-पहने ही गहरी नींद में सो जाया करते थे।